हम सत्य को प्राप्त करें

March 1948

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(पं. चन्द्रशेखर जी शास्त्री)

उपनिषद् का वचन है “यदमिदम किंचत् सत्यम्” ( All this is truth) सत्य सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक और जीवन है। सत्य स्वयं चेतन है, स्वयमास्ति है। जो अनन्त है हमेशा से रहा है, अब भी है, और भविष्य में भी रहेगा। जो एक रस रह कर न कभी बदलता है न बिगड़ता है न व्यय होता है। न उत्पन्न होता है, न बढ़ता है, न नाश होता है। न उसका बचपन होता है न यौवन और न जरा। सत्य सभी जगह ठसाठस भरा हुआ है। सत्य निर्भय है, पवित्र है और सर्वश्रेष्ठ है। शोक तथा दुःख से रहित आनन्द स्वरूप है। सत्य ही शक्ति है, सत्य ही मोक्ष है और सत्य का ज्ञान ही बन्धन मुक्ति है। सत्य ही विजय है। जब संसार शून्य में शयन करता है तब भी सत्य अपने गुणों से स्थिर, शाँत, पूर्ण और जागृत रहता है। सत्य ही सर्वगुण है, पूर्ण अस्तित्व है, मान्य है, जागृति या चेतनता है। यह सारा संसार सत्य से बना, सत्य में स्थित और सत्य में ही पुनः लय हो जायेगा। सत्य ही ईश्वर है।

सत्य की सिद्धि जीवन का अमृत है। मनुष्य परोक्ष और अपरोक्ष गति से इसी सत्यामृत की चाह में दौड़ता आया है। संसार में जितने भी कार्य हो रहे हैं यदि उनमें गहराई तक घुसकर देखा जाय तो सभी इसी अपने ‘अहम्’ की क्षुधा या तृषा का निवारण करने के लिए पाये जायेंगे। हम चाहे उन कार्यों को जानें या न जानें, व्यक्तिगत करें या सामूहिक परन्तु यथार्थ यह है कि उनका लक्ष्य इसी पूर्ण सत्य की सिद्धि करना है। वही अमृत है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118