अखण्ड ज्योति का ‘गायत्री अंक’

March 1948

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ऐसी अलभ्य सामग्री आज तक कहीं से भी प्रकाशित नहीं हुई है।

वेद हिन्दूमात्र के मान्य धर्मग्रन्थ हैं। इन वेदों का उद्भव गायत्री मंत्र से हुआ है इसीलिए उसे ‘वेदमाता’ कहते हैं। एक शब्द में यों कह सकते हैं कि हिन्दू संस्कृति और मानव धर्मशास्त्र का मूल स्त्रोत गायत्री है। इसकी महिमा को आदि ऋषियों से लेकर स्वामी दयानन्द, महात्मा गान्धी तक ने एक स्वर से, एक समान श्रद्धा से, स्वीकार किया है।

इस महामन्त्र की विशद, वैज्ञानिक, तर्क, प्रमाण और कारणों समेत ऐसी सविस्तार व्याख्या अब तक कहीं से भी प्रकाशित नहीं हुई जिसके आधार पर धार्मिक जनता अपने इस ‘बिंदु में सिन्धु’ के समान भरे हुए प्रथा, ज्ञान का अवगाहन कर सके। इस कमी की पूर्ति के लिए अखण्ड ज्योति 1 मई को अपना ‘गायत्री अंक’ प्रकाशित कर रही है।

गायत्री साधना की गुप्त विधियों को इसमें प्रकट किया गया है जिनके आधार पर वेदपाठी पंडित से लेकर साधारण साक्षर व्यक्ति तक समान सुविधा के साथ उन साधनाओं के द्वारा अलौकिक लाभों को प्राप्त कर सके।

इस अंक में रहने वाली पाठ्य सामग्री का कुछ परिचय लेखों की निम्न सूची से लग सकेगा-

(1) गायत्री का तात्विक सूक्ष्म स्वरूप एवं इस ब्रह्मशक्ति द्वारा सृष्टि की उत्पत्ति।

(2) गायत्री उपासना का वैज्ञानिक तत्व ज्ञान।

(3) गायत्री का आराधना से अन्तरंग जीवन में असाधारण परिवर्तन।

(4) गायत्री से षट् चक्रों का जागरण और 24 गुप्त शक्तियों का विकास।

(5) गायत्री साधना से अलौकिक चमत्कारी सिद्धियों की प्राप्ति।

(6) ऋतम्भरा बुद्धि और सतोगुण की बुद्धि का सर्व-सुलभ राजपथ।

(7) गायत्री संध्या, गायत्री यज्ञ, गायत्री तप और गायत्री अनुष्ठान की विधियाँ।

(8) गायत्री साधना संबंधी आवश्यक नियमोपनियम।

(9) गायत्री की कृपा से प्राप्त होने वाले असाधारण लाभों की विवेचना।

(10) वेदमाता गायत्री किस प्रकार चारों वेदों का ज्ञान अपने में धारण किये हुए है।

(11) गायत्री के प्रत्येक शब्द में भरे हुए गूढ़ ज्ञान के एक-एक समुद्र का दिग्दर्शन।

(12) गायत्री में से सर्वांगपूर्ण मानव धर्म शास्त्र का प्रकाश।

(13) गायत्री द्वारा इसी जीवन में, इसी लोक में सर्वतोमुखी स्वर्गीय सुखों का अवतरण।

(14) गायत्री योग द्वारा ब्रह्म निर्वाण, निर्विकल्प समाधि, मुक्ति एवं परमात्मा की प्राप्ति।

(15) गायत्री उपनिषद्-भाषा टीका समेत।

स्मरण रहे अखंड ज्योति की उतनी ही प्रतियाँ छपती हैं जितने उसके ग्राहक होते हैं। जो सज्जन शीघ्र ही ग्राहक न बन जायेंगे उन्हें इस अंक के लिए उसी प्रकार पछताना पड़ेगा और एक एक कॉपी के लिए बीस बीस गुना मूल्य देना पड़ेगा जैसा कि पिछले विशेषांकों के बारे में अनेकों पाठकों को करना पड़ा है।

आप आज ही 2।।) मनीआर्डर से भेजकर अखंड ज्योति के ग्राहक बन जाइए। विलम्ब करना एक अमूल्य अवसर को हाथ से खो देना है।

व्यवस्थापक-

‘अखण्ड ज्योति’ कार्यालय, मथुरा

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