बढ़ी हुई धर्म ग्लानि को, अधर्म के अभ्युत्थान को, हटाने के लिए, साधुता के परित्राण और दुष्कृतों के विनाश के लिए युग पुरुष म॰ गान्धी का अवतरण हुआ था। उन्होंने राजनीतिक स्वाधीनता का सफल संग्राम ही नहीं लड़ा वरन् मानव जीवन के हर क्षेत्र में अनीति के विरुद्ध नीति का युद्ध छेड़ा था। जिन उद्देश्यों को लेकर देवदूत पृथ्वी पर आते हैं उन्हीं को लेकर वे भी आये थे। अपने देश काल की स्थिति के अनुसार युग पुरुषों को कार्य करना पड़ता है, बापू ने भी वैसा ही किया था। उनकी कार्यशैली अपने ढंग की थी-अनोखी थी-पर थी देश काल की परिस्थितियों के अनुकूल।
बापू का महाप्रयाण-उनके निज के लिए बहुत ही गौरवमय हुआ, परन्तु हम सबके लिए वह बहुत ही लज्जाजनक और खेद पूर्ण है। जिस समय इस महामानव का, ब्रह्मकल्प ऋषि का, खून बहा उस समय आत्मवान् व्यक्तियों ने अनुभव किया कि इस महापाप से धरती माता डर रही है, काँप और कराह रही है। ऐसी ब्रह्महत्या एक लम्बे अतीत के पश्चात यह हुई थी।
इसे रक्त तर्पण का लोम हर्षक समाचार सुन कर ‘अखण्ड ज्योति’ कार्यालय में क्षुब्धता आ गई। आचार्यजी ने पूरे तेरह दिन उपवास रखा और इन दिनों साधारण काम-काज बन्द रखकर विविध प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान होते रहे। अन्तिम दिन बापू की भस्मी मथुरा में श्रीयमुना जी में विसर्जित होने पर साधारण कार्य चालू किये गए।
अखण्ड ज्योति परिवार के अधिकाँश सदस्य महात्मा गाँधी की प्रवृत्तियों के समर्थक रहे हैं। कई बातों में मतभेद रहते हुए भी उनके मूलभूत सिद्धान्तों में इस परिवार की अगाध श्रद्धा रही है। तदनुसार हमारे पास जो समाचार इस मास आये हैं उनसे पता चलता है कि हजारों पाठकों ने व्यक्तिगत तथा सामूहिक रूप से इस महाप्रयाण के उपलक्ष में धार्मिक व्रत अनुष्ठान किए। बापू की श्रद्धाँजलियों के रूप में अखंड ज्योति के पाठकों के करीब 700 लेख हमारे पास प्रकाशनार्थ आये हैं। उन्हें छापना तो असंभव है पर इन लेखों से यह सहज ही पता चल जाता है कि सत्यनिष्ठा के पक्ष में हमारा परिवार कितना श्रद्धान्वित है।
बापू चले गए पर उनकी अमर ज्योति कभी बुझने वाली नहीं है। आइए हम उसके प्रकाश में आगे बढ़ें और दैवी तत्वों को अन्तर तथा बाह्य जगत में प्रचुर परिमाण में-बढ़ाने के लिए शक्ति भर प्रयत्न करें यही हमारी सच्ची श्रद्धाँजलि हो सकती है।
गायत्री अंक की सूचना।