‘मां’ के स्नेहिल स्मरण से हम सबके मन-प्राण अनोखी पुलक से भर जाते हैं। अनेकों अहसास, अगणित अनुभूतियां और असंख्य भावनाएं अंतःकरण के आंगन में बरबस बरस पड़ती हैं। यादों के सघन घन बार-बार अंतर्गगन में उमड़ते हैं और मां के प्यार का जीवन-जल मुरझाए प्यासे प्राणों पर उड़ेल देते हैं ऐसा लगता है कि अपनी मां सुदूर किसी लोक में नहीं, अपने पास है, एकदम पास। उसके आंचल का छोर हमें छू रहा है। उसके आशीषों की छांव में अपना जीवन सुरक्षित है।
मां ! तुम्हारे सिवा हम बच्चों का और है भी कौन! जब तब समय कुसमय हम सब सिर्फ तुम्हें ही पुकारते हैं। जीवन की हर चोट, हर दुःख दर्द में हे मां! हमें केवल तुम्हारी याद आती है। आंसू भरी आंखों और पीड़ा से विकल हमारे जीवन के लिए तुम्हारी याद ही एकमात्र औषधि है। हमें अच्छी तरह से मालूम है कि हमारी कमियों-कमजोरियों, बेवकूफियों, नादानियों को एक तुम्हीं अनदेखा करके हमको अपना सकती हो।
मां ! तुम्हारी क्षमा अपार है। इसकी न तो कोई सीमा है और न ही शर्तबंदी। क्षमा ही तुम्हारा स्वभाव है। क्षमा तुमसे ऐसे बहती है जैसे फूल से गन्ध और दीए से रोशनी बहती है। जैसे पहाड़ों से जल झरता है, मेघों से वर्षा होती है। हे क्षमास्वरूपिणी मां ! सृष्टि के हर स्थूल-सूक्ष्म विधान में प्रत्येक छोटी-बड़ी गलती या अपराध के लिए कोई-न-कोई सजा निश्चित है। सृजेता के कठोर कर्मफल विधान से सभी बंधे हैं। यहां तक कि स्वयं सृजेता भी कर्मफल की हस्तरेखाओं को स्वीकार करता है, परंतु हे क्षमामयी! तुम्हारी क्षमा शक्ति से जीवन के महापातक भी पल में विनष्ट होते हैं। यह सृष्टि के समस्त विधानों से अनंत गुना समर्थ है।
मां! यह एकाक्षर महामंत्र ही हमारा प्राण है। मां! मां!! जपते हुए हमारे ऊपर तुम्हारी कृपा-किरणों की वृष्टि हुई है। जीवन में अलौकिक अनुभूतियों के अनेकों सुअवसर आए हैं। तुम्हारी लीला–कथा का पुण्य स्मरण भी इन्हीं में से एक है। हे मां ! अब ऐसी कृपा करो कि यह पुण्य कथा तुम्हारे ही अमित प्रभाव से हम सब बच्चों को तुम्हारी अविरल भक्ति का वरदान देते हुए मातृतत्त्व का बोध करा सके।