बात तब की है जब रूस पर आक्रमण कर नेपोलियन की सेनाएँ तबाही मचा रही थीं। उन दिनों रूसी सेना की कमान जनरल कान्ट टोरस्काफ सँभाले हुए थे। इस मध्य एक दिन जनरल की पत्नी को पूर्वाभास हुआ कि वह किसी सराय के एक कमरे में बैठी हुई है। अचानक कमरे में एक बूढ़ा व्यक्ति प्रवेश करता है। वह पहचान जाती है कि यह उसका पिता है। कुछ क्षण पश्चात् पिता का स्वर उभरता है- "लो, अपने पुत्र को संभालो। अब इसे तुम्हें ही पालना होगा। जनरल टोरस्काफ स्वर्ग सिधार चुके हैं, फ्राँसीसी सेनाओं ने बोरोडिनो में उनका वध कर डाला है।
पूर्वाभास जब कई-कई बार हुआ, तो पत्नी ने टोरस्काफ को इसकी सूचना दी। पहले तो इस पर उसने कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। बाद में उसके मस्तिष्क में ये विचार कौंधा कि क्यों न नक्शे में इस स्थान को खोजा और देखा जाय कि आखिर यह है कहाँ? पति पत्नी ने उस क्षेत्र का मानचित्र पलट डाला, पर उक्त स्थान कहीं नहीं मिला।
दिन बीतने लगे, दोनों के मस्तिष्क से वह घटना विस्मृत हो गई। उधर लड़ाई भीषण होती जा रही थी। इसी मध्य 7 सितम्बर 1892 को मास्को के निकट फ्रांसीसी सेनाओं को जबरदस्त मुँह की खानी पड़ी। उसमें दोनों पक्षों के काफी सैनिक मारे गये। रूसी सेना का नेतृत्व टोरस्काफ कर रहे थे। उनकी पत्नी तब तक निकटवर्ती सराय में रह रहीं थी। जब वे कमरे में अकेली थीं, तभी उसके पिता जंगल से पुत्र की कलाई थामे आए और उसे सौंपते हुए पुत्री से कहा- 'जनरल अब इस संसार में नहीं रहे, बोरोडिनो के युद्ध में मारे गये अब संतान की देख-भाल तुम्हें ही करनी पड़ेगी। लो इसे संभालो।'
पूर्वाभास को यथार्थ में परिवर्तित होते देख, टोरस्काफ की पत्नी स्तम्भित रह गई। मरणस्थल भी ठीक वही था, जो दोनों को मानचित्र में कही नहीं मिला था।
यह प्रसंग पूर्वाभास का है, जिसमें घटनायें यदा-कदा समय से पूर्व ही प्रतिभासित हो जाती हैं, और वास्तविकता की इतनी सच्ची जानकारी दे जाती हैं जिसे देखकर आश्चर्य होता है। प्रारम्भ से ही वैज्ञानिकों के लिए यह कौतूहल का विषय रहा है, कि भौतिक घटनाक्रम मानसिक धरातल पर किस तरह उतर आते हैं और समय से पहले उनका प्रकाशन कैसे होता है? इस पर लम्बे काल से शोध-अनुसंधान होते रहे हैं। उनसे प्राप्त तथ्यों से सुनिश्चित हो गया कि घटनायें जब घटती हैं, तो वे उनकी प्रथम अभिव्यक्ति नहीं होती। इसे प्रत्यक्षीकरण कह सकते हैं, पर वास्तविक प्रकटीकरण तो काफी समय पूर्व हो जाता है। यह सत्य है तब वह अगोचर स्तर का अव्यक्त और अप्रत्यक्ष बना रहता है, किन्तु घटनाक्रम का गर्भाधान तभी हो जाता है, ऐसा विशेषज्ञों का मत है। जिस प्रकार बीजवपन के साथ ही वह वृक्ष नहीं बन जाता, दूध को जमकर दही बनने, और कर्म के फल के रूप में आवश्यकतानुसार छोटा-लम्बा समय लगता है, ठीक उसी प्रकार घटनाक्रमों की वास्तविक सत्ता कि शुरुआत उसके इन्द्रियगोचर बनने से काफी समय पूर्व हो जाती है। इसे अब विज्ञानवेत्ता भी भली-भाँति स्वीकारने लगे हैं। उनका तर्क है कि यदि ऐसा नहीं होता तो, समय से पहले उनका आभास होना सम्भव नहीं होता। दूसरे शब्दों में कहें, तो हर व्यक्ति वस्तु और घटना की अपनी एक सूक्ष्म अनुकृति होती है। मानसिक धरातल पर यदा-कदा सत्ताएँ अवतरित होकर समय से पूर्व उनकी जानकारी देती हैं- इसे स्वीकारने में वैज्ञानिकों को अब कोई आपत्ति नहीं रही।
उपलब्ध तथ्यों से यह भी विदित हुआ है कि कोई भी घटना तरंग के रूप में घटित होती है। उसे प्रयास पूर्वक मानसिक स्तर पर ग्रहण किया जा सकता है अथवा मानसिक बिम्ब के रूप में उक्त घटना को एक मस्तिष्क से दूसरे मस्तिष्क तक संचारित संप्रेषित किया जा सकता है। वैज्ञानिकों ने इस तथ्य को पकड़ा और इसी पृष्ठभूमि पर अनुसंधान को आगे बढ़ाया। उन्होंने देखा कि दिमाग जब अधिक शान्त और अनावश्यक कल्पनाओं से मुक्त जैसी स्थित में रहता है, तो संप्रेषण कि क्रिया अधिक सरल और सफल होती है, सक्रियता कि स्थिति में वह मंद हो जाती है। इसे देखते हुए शोधकर्मी विज्ञानवेत्ताओं ने एक प्रयोग किया। उन्होंने दो व्यक्तियों में से एक के सो जाने पर, दूसरे को पहले तक कोई ऐसी सूचना मानसिक स्तर पर भेजने को कहा, जिसकी जानकारी पहले को नहीं थी। व्यक्ति जब प्रगाढ़ निद्रा में था, तो प्रयोग सम्पन्न हुआ। उसे मध्य रात्रि में उठकर अपने अभिन्न मित्र को स्मरण करने के लिए कहा गया। अनेक बार संदेश देने के पश्चात् सम्प्रेषण रोक दिया गया। दूसरे दिन जब इस संदर्भ में उससे पूछ-ताछ की गई तो उसने स्वीकार किया कि मध्यरात्रि में अकस्मात् उसकी नींद खुल गई और न जाने उसे अपने अमुक दोस्त की याद आने लगी।
शोधार्थियों ने इस दौरान यह भी अनुभव किया कि यदि सम्प्रेषण उच्च मानसिक धरातल पर सम्पादित नहीं हुआ हो, तो संदेश अपने लक्ष्य तक पहुँचने में सफल नहीं हो पाता। दूसरी ओर सूचना ग्रहण करने वाला भी समान भूमिका में नहीं हुआ तो भी जानकारी अग्राह्य स्तर की बनी रहती है। इसलिए पूर्वाभास अक्सर शान्त मानसिक अवस्था के दौरान होते देखे जाते हैं।
अनेक वर्ष पूर्व रूसी परा मनःशास्त्रियों ने इस संदर्भ में एक अत्यन्त रोचक प्रयोग किया। अलमाअता के अनुसंधानकर्ताओं ने इसके लिए कई ऐसी महिलाओं का चयन किया, जिनके बच्चे 1 से 2 वर्ष के थे। सभी को एक बड़े कमरे में इतनी दूरी पर रखा गया कि उनकी दृष्टि से परे दूरस्थ कमरे में स्थित बच्चों की आवाज भी उनको सुनाई न पड़े। इसके पश्चात् हर बच्चे के शरीर से थोड़ा-थोड़ा रक्त निकाला गया। ऐसा करते समय माताओं पर बड़ी सूक्ष्म दृष्टि रखी गई और उनकी गतिविधियों का गहन अध्ययन किया गया। अध्येता यह देख रह चकित रह गये कि माँ और शिशु एक अदृश्य संपर्क सूत्र से परस्पर जुड़े हुए थे।
जिस भी बच्चे का खून लिया गया उसकी माता एक अजीब बेचैनी अनुभव करने लगी। कई तो उठकर टहलने भी लगीं। जब उनसे इस अनुभव के बारे में पूछा गया तो सब ने इसे स्वीकार किया कि किन्हीं अज्ञात कारणों से इस दौरान परेशानी महसूस करती रहीं। क्या यह परेशानी उनकी संतानों से पृथक कर दिये जाने के कारण थी? सभी ने इसके उत्तर में यही कहा, शायद नहीं।
इजराइल की एक संस्था-साइकिकल रिसर्च सोसाइटी इस विषय में लम्बे काल तक शोध करती रही है।
दीपक जल रहा था। घृत चुकने को आया। लौ क्षीण हो चली। वायु के झोंकों ने देखा अब दीपक पर विजय पाना आसान है तो वे वृन्द-वृन्द मिलकर तेज आक्रमण करने लगे। अन्धकार नीचे दबा पड़ा था-अट्ठहासकर हँसा और बोला-दीपक अब तो तुम्हारा अन्त आ गया अब कुछ ही देर में यहाँ हमारा साम्राज्य होगा।
दीपक मुस्कराया और बोला-बन्धु यह देखना काम विधाता का है, मेरा ध्येय है कि प्रकाश के लिए निरन्तर जलना सो अन्त समय उससे विमुख क्यों होऊँ, यह कह कर वह एक बार इतने वेग से जला कि वहाँ का सम्पूर्ण अंधकार सिमट कर रह गया, भले ही दूसरे क्षण दीपक का अस्तित्व स्वयं भी शेष न रहा हो।
इतना जान लेने के उपरान्त भविष्य के गर्भ में छिपी जानकारियों को करतलगत करने की प्रक्रिया स्पष्ट हो जाती है। इस प्रकार पूर्वाभास वस्तुतः अन्तराल के परिष्कार के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़ा संयोग है। जो परिमार्जन के इस उपक्रम को जिस अनुपात में अपनाते हैं,उतने ही अंशों में भविष्य-ज्ञान के अधिकारी बनते हैं।