समर्पण के सुमन (Kavita)

May 1995

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शिष्य हैं गुरुदेव के, गुरु-ऋण चुकाना चाहिये। अब समर्पण के सुमन, उनको चढ़ाना चाहिए॥1॥

किस तरह पूजन करें, करके दिखाया है हमें। किस तरह ऋण को चुकायें, यह बताया है हमें॥

बस यही पूजन, हमें करके दिखाना चाहिये। अब समर्पण के सुमन, उनको चढ़ाना चाहिये॥2॥

चल पड़े थे वे गुरु-आदेश का संबल लिये। कर दिया जीवन समर्पित, लोक मंगल के लिए॥

बस हमें भी अब यही साहस जुटाना चाहिए। अब समर्पण के सुमन, हमको चढ़ाना चाहिए॥3॥

पात्र बनने के लिए, गुरुदेव ने संयम किया। और फिर उस पात्र में, अनुदान गुरुवर का लिया॥

पात्र बनने के लिए, खुद को तपाना चाहिये। अब समर्पण के सुमन, उनको चढ़ाना चाहिए॥4॥

जो मिला अनुदान, उसमें तप स्वयं का जोड़ कर। बाँटने पीड़ितजनों को, चल पड़े वे दौड़ कर॥

विश्व पीड़ा शमन में, खुद को खपाना चाहिये। अब समर्पण के सुमन, उनको चढ़ाना चाहिये॥5॥

ज्ञान बाँटा जिन्दगी भर, विश्व के अज्ञान को। भर दिया सद्भावना से, अभावों से त्राण को।

ज्ञान-अमृत आज जन-जन को चखाना चाहिए। अब समर्पण के सुमन, उनको चढ़ाना चाहिये॥6॥

बस वही सामर्थ्य, गुरुवर! आप हम को दीजिये। ऋण चुकायें आपका, इस योग्य हम को कीजिये॥

अब हमें संवेदनाओं का खजाना चाहिए। अब समर्पण के सुमन, हमको चढ़ाना चाहिये॥7॥

- मंगल-विजय


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