उपयोगिता-अनुपयोगिता का अंतर (Kahani)

May 1995

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एक बार सन्त ने राजा को अपनी कुटिया पर आमन्त्रित किया। समयानुसार वे पहुँचे भी। आतिथ्य के उपरान्त सन्त ने आश्रम की छोटी-छोटी वस्तुओं का दिखाना आरम्भ कर दिया। सस्ती और सामान्य वस्तुएँ देखने में राजा को रुचि नहीं थी तो मेरी वे शिष्टाचार वश उन्हें उपेक्षापूर्वक जैसे-तैसे देखते रहे। देर तक जिसकी उपयोगिता बताई गई वह आटा पीसने की हाथ-चक्की। राजा की अरुचि अब अधिक मुखर होने लगी वे बोले -'वह तो घर-घर में रहती है। एक दो रुपये मूल्य की होती है। इसमें क्या विशेषता?' राजा का विवेक जगा और वे उपयोगिता-अनुपयोगिता का अंतर समझने लगे।


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