लिया प्रभु! तुमने हर युग में अवतार (Kavita)

May 1995

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कभी राम बन कभी कृष्ण बन, आये बारम्बार। लिया प्रभु, हर युग में अवतार॥

जब-जब की नर, ने मनमानी। कम हो गये-संत मुनि ज्ञानी॥

घुटने लगीं धर्म की साँसें। गड़ी मनुजता के पग फांसें॥

तब-तब दौड़े और बाँटा, धरती को प्यार दुलार॥ लिया प्रभु, हर युग में अवतार॥

बढ़े कष्ट भय नर के आगे। बुद्ध बने-वह हरने भागे॥

चली गुलामी की फिर आँधी। पीर मिटायी बनकर गाँधी॥

सत्य अहिंसा, विश्वप्रेम पर झुकता है संसार। लिया प्रभु, हर युग में अवतार॥

आज बढ़ी पाशविक दुष्टता। जीवन में है व्याप्त भ्रष्टता॥

भीत, त्रसित, कुंठित-मानवता-कहीं न दिखती है पावनता॥

बदले-मन मस्तिष्क दिया है प्रज्ञा का हथियार। लिया प्रभु, हर युग में अवतार॥

की है तप साधना निराली। नये सृजन की रास सम्हाली॥

मानव में देवत्व जगाने। स्वर्ग धरा पर ही ले आने॥

सत्साहित्य लिखा, व कर दिया पंथ नया तैयार। लिया प्रभु, हर युग में अवतार॥

-मायावर्मा


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