देवसंस्कृति, दिग्विजय के उपक्रम में ऋषि युग्म के दिव्य संरक्षण में अग्निपरीक्षा की कसौटी पर उतरते हुए 25 भव्य आश्वमेधिक आयोजन कर डाले एवं अब अपने सामने लक्ष्य के रूप में गुरुभूमि आँवलखेड़ा (जनपद आगरा -उ. प्र.) में इस प्रथम चरण की पूर्ण आहुति के प्रयास की तैयारी कर रहे हैं। सारे देश में युग सन्धि की जोर शोर से तैयारी चल रही है। साथ ही अब तक हो चुके 25 अश्वमेधों में से भारत के 22 एवं शेष विश्व के इन आयोजन का अनुयाज भी सक्रिय रूप ले रहा है।
देवसंस्कृति घर-घर पहुँचाने के मूलमंत्र का आरम्भ हुआ अपना दिग्विजय अभियान कितना सफल हुआ, यह इसी से अनुमान लगाया जा सकता है। विश्व राष्ट्रीय एकता संगठन शक्ति एवं समर्थता का एक ही आधार है गायत्री रूप सद्ज्ञान यज्ञीय जीवन का यही लक्ष्य तक प्रयास कार्यक्रम इसी लक्ष्य को लेकर बनाए गये थे।
प्रयाज प्रशिक्षण -शान्तिकुंज से एक-एक दिन का प्रयाज प्रशिक्षण कार्यक्रमों का निर्धारण लेकर कई टोलियाँ 20 अप्रैल को भारत के कोनों-चारों दिशाओं को प्रस्थान कर चुकी हैं। इन्हें एक-एक दिन के प्रशिक्षणों में स्थानीय कार्यकर्ताओं का आँवलखेड़ा पूर्णाहुति के लक्ष्यों की जानकारी, समय साधन-साधना दान के स्वरूप का बोध व तब-तब किए जाने वाले हर कार्य का स्वरूप को समझाया जाएगा। प्रायः 15 अप्रैल से पूर्व ये सभी टोलियाँ अपना-अपना लक्ष्य पूरा कर शान्तिकुंज वापस लौट आएँगी गोष्ठी प्रत्येक स्थान पर अपराह्न 1 से 5 के बीच होगी व न्यूनतम 250 कार्य कर्ताओं की उपस्थित में सम्पन्न होगी। इन गोष्ठियों में आँवलखेड़ा यज्ञ से जुड़ी व्यवस्थाओं का विस्तार तथा क्षेत्रीय ये प्रव्रज्या के स्वरूप का विवेचन एवं सभी जिज्ञासाओं का यथोचित समाधान कर दिया जायेगा।
ग्रामीण चिकित्सा सेवा -
मिशन द्वारा चिकित्सक समुदाय का आह्वान कर अनुरोध किया गया है कि वे प्रतिभा दान-समयदान व औषधि दान द्वारा प्रथम वर्ष के 70,000 गाँव की चिकित्सा सेवा का संकल्प पूरा करने में हमारी सहायता करें। ग्रामीण परिकर में स्वास्थ्य- पोषण- आहार- स्वच्छता सम्बन्धी जानकारी चिकित्सा व नेत्रदान यज्ञ आदि आयोजित कर स्वस्थ समाज की संरचना करने का लक्ष्य जो मिशन का है। उसे हम आँवलखेड़ा प्रारम्भिक स्थिति में व बाद में फिर 100 मील की परिधि में आने वाले गाँव को लेकर करना चाहते हैं। भारी मात्रा में साधनों की, वाहनों की, चिकित्सकों की, औषधियों की, वैक्सीन व हैल्थ एजुकेटर्स पैरामेडिकल स्टॉफ आदि की इसमें आवश्यकता पड़ेगी। जहाँ सरकारी तन्त्र प्रभावी है। वहाँ अपने परिजन उनमें सहायक भूमिका निभाएँगे।
मात्र समय दान - अंशदान ही अपेक्षित
इस मिशन की परम्परा प्रारम्भ से जो रही है, गुरुसत्ता के महाप्रयाण के बाद भी हम उसी को निभा रहे हैं। अब से लेकर आँवलखेड़ा आयोजन के बाद 1996 के अनुयाज कार्यक्रम जो अक्टूबर के अंत तक चलेगा, सभी भावनाशील व यह समझा जा रहा है कि इस समय आड़े समय में कोई मुँह नहीं गाँव-गाँव मिशन को पहुँचाने साक्षरता विस्तार के लिए राष्ट्र को गरीबी के पाश से मुक्त करा भारतीय संस्कृति के रंग में रंगने के लिए ये डेढ़ साल की आयोजनों से मुक्त की गई है। जिन्हें हम पुल कर जन्मभूमि पर उनकी झोली में डाल सकें यह कार्य छोटे-छोटे यज्ञों से संस्कारों से अनुप्राणित परीक्षा जगत के माध्यम से संपन्न होगा आने वाली सन्धि काल की वेला में सुरक्षा रूपी कवच सबके चारों ओर रहे व हम आत्मिक प्रगति करते हुए अपने- अपने घरों को संस्कार मंदिर बनाते हुए अखण्ड यशस्वी राष्ट्र का निर्माण कर सकें यही युग देवता हमसे अपेक्षा रखता है। आशा है हमारे परिजन इन विषम वेला में अवसर न चूककर अपनी भागीदारी बड़ चढ़कर दिखायेंगे।
*समाप्त*