आत्मबल सम्पन्न ही जीवन संग्राम जीतते हैं

May 1995

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

जीवन-समर जीतने उपयोगी और महान् कार्य करने के लिए अपने आत्म विश्वास को प्रज्वलित रखना बहुत आवश्यक है। क्योंकि किसी भी महान् ध्येय की पूर्ति तभी होती है, जब मनुष्य के सारे गुण और सारी शक्तियाँ नियंत्रित और नियोजित होकर कार्य में संलग्न होती हैं। शक्तियों का नियोजन तथा केन्द्रीयकरण का कार्य आत्म-विश्वास के उठते ही सारी शक्तियाँ स्वतः उठ खड़ी होती है और स्वतः ही पंक्तिबद्ध होकर कार्य का सम्पादन करने के लिए तत्पर हो जाती हैं। ऐसे प्रबुद्ध पुरुषार्थी के लिए कौन-सा ध्येय कौन-सा उद्देश्य और कौन-सा लक्ष्य दुःसाध्य हो सकता है। वह तो असम्भव को सम्भव और असाध्य को साध्य बना सकने में समर्थ और सफल हो जाता है। उपनिषद्कार के कथनानुसार मनुष्य अमृत की लड़ी है। उसका प्राण, उसका जीवन नित्य नई आभा लिए आता रहता है। मनुष्य प्रेरणा का केन्द्र है, प्रकाश धारण करने वाला स्तंभ है, वह साक्षात् प्रकाश रूप है, वह प्रकाश है, ज्योति है और अमर आलोक है। मनुष्य में यह सब है तो, किन्तु इसका अनुभव वह तब ही कर सकता है, जब ज्वलन्त आत्म-विश्वास से ओत−प्रोत हो। अन्यथा वह माँस का एक पिण्ड और मिट्टी की एक मूर्ति मात्र ही है। अदम्य आत्मविश्वास ही मनुष्य को साधारण जीव से असाधारण देवपुरुष बनाता है। स्वामी विवेकानन्द ने ठीक ही कहा- 'विश्वास! विश्वास! अपने में विश्वास, ईश्वर में विश्वास अपने आत्मदेव की शक्तियों में विश्वास ही मानव जीवन की सफलता और महानता का रहस्य है।' आत्मविश्वास का वास्तविक अर्थ है- अपनी आत्म-सत्ता में विश्वास करना। अपने को माँस पिण्ड रूप शरीर न मानकर आत्मा मानना और उसी के प्रकाश से प्रेरित होना आत्मविश्वास का ही रूप है। जो अपनी आत्मा की अजेय सत्ता में विश्वास करता है, अपने जीवन की सार्थकता, महत्ता और उपयोगिता को स्वीकार करता है, उसे अनुभव करता है, वही आत्म-विश्वासी होता है। इस प्रकार का सच्चा आत्म विश्वास ही किसी बड़े लक्ष्य का लम्बा रास्ता तय कर सकता है और वही उस पर आई आपत्तियों, संकटों तथा विपत्तियों से टक्कर ले सकता है।

शिक्षा, साधन सम्पन्नता आदि की कोई भी सुविधा मनुष्य को न तो महान् बना सकती है और न उसके व्यक्तित्व में तेज का समावेश कर सकती है। संसार में ऐसे लाखों मनुष्य मौजूद है, जिन्हें साधन सुविधाओं की जरा भी कमी नहीं है तथापि वे मलिन व्यक्तित्व के साथ तुच्छ तथा हेय स्थिति में पड़ें जीवन काटा करते हैं। यदि साधन सुविधायें ही मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास और उसकी महानता का आधार होती तो अवश्य ही हर साधन सम्पन्न व्यक्ति को महान तथा तेजस्वी होना चाहिये। किन्तु ऐसा होता कदापि नहीं। तेजस्विता और महानता का विकास साधनों में नहीं, अपने प्रति महानता, उदात्तता तथा आत्म सत्ता का विश्वास रखने में है। आलोकित पदार्थ के होने पर ही ऊष्मा उत्पन्न होती है। इसी प्रकार जब मनुष्य विश्वासपूर्वक अपने आत्मस्वरूप के निकट आता है, तभी वह प्रकाशित तथा ज्योतिष्मान बनता है। एक मात्र जड़ पदार्थों का सम्पर्क उसे आलोकित अथवा प्रकाशित नहीं कर सकता।

निराश व्यक्ति की कई शक्तियाँ जगाना तो दूर उल्टे उसकी जागरूक शक्तियाँ, कार्य क्षमताएँ, आगे देख सकने की दृष्टि तथा परिस्थितियों का अध्ययन कर सकने वाली सूझ बूझ तक समाप्त हो जाती है। ऐसे निराश व्यक्ति में न तो साहस शेष रहता है और न समाज में कोई व्यक्ति उसकी सहायता करने के लिए उत्साहित होता है। निराशा एवं दुर्दैव का साथ माना गया है। निराशा का अन्धकार आते ही मनुष्य को दुर्दैव का प्रकोप धर दबाता है।

यदि हम आशापूर्ण दृष्टिकोण से अपने अन्दर बैठे महापुरुष पर विश्वास लेकर आगे बढ़ते हैं तो हमारे सामने ऐसे मार्ग आप खुलते चले जायेंगे, जिन पर चल कर अभीष्ट लक्ष्य तक आसानी से पहुँचा जा सकता है। लक्ष्य सिद्धि का विश्वास और उसकी दुरूहता अथवा दूरी की अकल्पना मनुष्य के मार्ग को बहुत कुछ सुखद एवं सरल बना देती है। विश्वास से जिस मनोबल का जन्म होता है उसमें बड़ी प्रेरक एवं सृजनात्मक शक्ति होती है। वह मनुष्य को भय, शंकाओं एवं संदेहों से दूर रख कर उमंग एवं उत्साह से भरपूर बनाये रहता है। इतने संबलों का भंडार लेकर चलने वाला ऐसा कौन-सा अभागा यात्री होगा जो अपने लक्ष्य तक पहुँचे बिना बीच में ही थक कर बैठ जाये।

अपने भीतर सोये महापुरुष अथवा विशिष्ट व्यक्ति को जगाने के निमित्त कर्म न करके जो व्यक्ति प्रमाद, आलस्य अविद्या अथवा अकर्मों में लगे रहते है, वे साधारण से भी अधिक सामान्य स्थिति में तो उतर सकते है किन्तु असाधारण स्थिति की ओर कदापि नहीं बढ़ सकते। विशिष्ट व्यक्तित्व के लिए जिन कठोर कर्मों तथा अखण्ड पुरुषार्थ की आवश्यकता है, उनकी पूर्ति भोग विलास से भरी और ढीली पीली जिन्दगी में नहीं की जा सकती। जिन महत्वाकांक्षियों को अपनी विशिष्टता में विश्वास और समाज में सम्मानपूर्ण स्थान की लगन होती है वे नियम संयम से आबद्ध एवं व्यक्तिगत जीवन को स्वीकार कर परिश्रम के लिए दिन को दिन और रात को रात नहीं समझते। उन्हें घाम का ताप, शीत का कम्पन और वर्षा की बूँदें प्रभावित नहीं कर पातीं और न ही उनको पथ में कोई प्रलोभनपूर्ण अवरोध ही विरमा पाता है।

एक बार चल कर यदि वे विश्राम करते है, तो अपने लक्ष्य की छाया में, अपने उद्देश्य की तलहटी में और मंजिल की मीनार पर। बीच में उनके लिए विश्राम का कोई भी स्थल नहीं होता और न भटका देने वाले प्रवजक विश्राम भवनों की मरु-मरीचिका में वे विश्वास ही करते हैं उन्हें तो लगन, उमंग और उत्साह का ऐसा नशा चढ़ा रहता है, जो जीवन में पूर्णता प्राप्त किये बिना उतरता ही नहीं।

आत्म-विश्वास मनुष्य को तुच्छता से महानता की ओर अग्रसर करता है। सामान्य से असामान्य बना देता है। स्वेट मार्डेन ने कहा है- 'आत्मविश्वास की मात्रा हममें जितनी अधिक होगी उतना ही हमारा सम्बन्ध अनन्त जीवन और अनन्त-शक्ति के साथ गहरा होता जायेगा।' जब चारों ओर विपत्तियों के काले बादल मँडराते हों, जब सागर में कहीं भी जीवन नैया को खड़ा करने का किनारा न मिल रहा हो, भयंकर तूफान उठ रहा हो, नाव अब डूबे तब डूबे की स्थिति में हो तो कैसे उद्धार हो सकता है? आत्मविश्वास ही ऐसी स्थिति में मनुष्य को बचा सकता है। इसी तथ्य को व्यक्त करते हुए कार्लाइल ने लिखा है- 'आत्मविश्वास में वह शक्ति है, जो सहस्रों विपत्तियों का सामना कर उनमें विजय प्राप्त करा सकती है।'

आत्मविश्वास- परमात्मा पर विश्वास करना है, जिसकी शक्ति अजेय है, अनन्त है। जो अपने आप पर विश्वास करता है, अपनी बागडोर उसके हाथों सौंप देता है, उस पर संसार विश्वास करता है। संसार भर में नेतृत्व शासन पथ प्रदर्शन वे ही करते है, जिन्हें अपने आप पर महान् विश्वास होता है। अपने ऊपर अपार विश्वास रखकर ही वे संसार को प्रभावित करते है। आत्म विश्वास के बल पर एक मनुष्य अफ्रीका के जंगलों में से भी भयंकर जंगली शेर को पकड़ लाता है। हिंसक जन्तुओं के बीच खड़ा होकर उन्हें नचाता है। लेकिन आत्म-विश्वासहीन व्यक्ति शहर के बीच एक कुत्ते से भी डर जाता है। बन्दर भी उसे भयभीत कर देता है। वस्तुतः सभी मनुष्यों का शरीर एक-सा ही होता हैं किन्तु जिस व्यक्ति के चेहरे से, आँखों से आत्मविश्वास का अपार तेज प्रवाहित होता है, जिसके हृदय में आत्मविश्वास का सम्बल है, उसके समक्ष हिंसक जन्तु भी पालतू-सा बनकर दुम हिलाने लगता है। उसका वह तेज ही दूसरों पर जादू सा सा असर डाल देता है।

शायद हमने अपने अन्दर यह पता लगाने का प्रयत्न कभी नहीं किया कि वहाँ कोई विचारक, कलाकार,नेता, समाज-सेवक कोई बड़ा व्यापारी अथवा कोई महान् व्यक्ति तो छिपा नहीं बैठा है? हाँ, हमने अवश्य ही इस बात में प्रमाद बरता है। अन्यथा हम आज इस साधारण स्थिति में न पड़ें होते। अवश्य ही अब तक हम समाज-सेवा कला अथवा वाणिज्य के माध्यम से अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाकर मानव जीवन को काफी दूर तक सफलता की ओर बड़ा चुके होते, किन्तु पछताने से क्या होता है। जब कि यथार्थ का बोध हो जाय हमें अपने अन्दर की प्रसुप्त सामर्थ्य को जगाने हेतु तत्पर हो स्वयं को आत्म-विश्वास सम्पन्न बना लेना चाहिए।

विश्वास रखा जाना चाहिए कि संसार के प्रत्येक मनुष्य के भीतर कोई-न-कोई महान् पुरुष सोया पड़ा रहता है। हमारे अन्दर भी है। यदि ऐसा न होता तो एक साधारण ही नहीं दीन-हीन मजदूर का एक अपढ़ पुत्र अब्राहम लिंकन संसार का महान् व्यक्ति न हो पाता। एक साधारण जिल्दसाज की नौकरी करने वाला लड़का माइकल फैराडे संसार का आश्चर्यजनक वैज्ञानिक न होता। साधारण वकील के स्तर से महात्मा गाँधी विश्व-वंद्य बापू न हो पाते और दो पैसे की रोटी पर जीवन चलाने वाले स्वामी रामतीर्थ अध्यात्म क्षेत्र के महारथी और एक कारखाने में छोटी-सी नौकरी करने वाला लड़का फोर्ड संसार का महानतम उद्योगपति एवं धनकुबेर न हो पाता।

मनुष्यों का यह आश्चर्यजनक विकास और चकित कर देने वाली उन्नति प्रमाणित करती है कि किसी भी मनुष्य के विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता कि आगे चल कर वह जीवन के किस शिखर पर पदार्पण करेगा। संसार के सारे मनुष्यों में वे सारी क्षमताएँ तथा विफलतायें सन्निहित रहती हैं, जो किसी एक में भी हो सकती हैं और जो उन्नति पथ पर किसी का संवहन करने वाली होती हैं। आवश्यकता केवल अपने अध्यवसाय द्वारा उन्हें जगाने और काम में लाने की होती है। शक्तियों का उपयोग शक्तियों को बढ़ाता है, और बढ़ी हुई शक्तियाँ मनुष्य को उत्तरोत्तर उन्नति की ओर अग्रसर करती रहती हैं।

मनुष्य जब अपने को कर्तव्य कर्मों की शान पर चढ़ाता है, आत्मबल का उपार्जन कर स्वयं को परिश्रम एवं पुरुषार्थ की आग में तपाता है तो उसके भीतर सोया पड़ा नेता समाज, सुधारक, धर्म प्रचारक, वैज्ञानिक, कलाकार, संत अथवा उद्योगपति जागकर ऊपर उभर आता है। यही सबकी सफलता का जीवन संग्राम में जीतने का एक मात्र आधार है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118