हमारी उपासना उस स्तर की हो जैसा की रामकृष्ण नामक पुजारी की थी जो काली की उपासना कर उनसे चर्चा कर उनके हाथों भोजन पाकर परमहंस पद को प्राप्त कर गया। हमारी लगन परमसत्ता के प्रति मीरा के स्तर की हो जो बिना कोई कर्मकाण्ड या मंत्र के श्रीकृष्ण की दीवानी बनकर उन्हीं में समाकर उनका प्रतिरूप बन गई। यही तत्त्वज्ञान पूजा अवधि में अतः करण में से स्वयं ही उद्भूत होता रहे व लगता रहे कि महाप्रज्ञा-आद्यशक्ति अन्तरात्मा में बैठकर हमें अंतर्जगत् व ब्राह्मीसत्ता सत्यों और तथ्यों से अनायास ही परिचित करा रही है, तो उपासना सफल होती चली जाती है। ऐसी साधना से परमसत्ता का प्यार भरा यथार्थवादी शिक्षण अनायास ही अमृतपान की तरह उपलब्ध होता चला जाता है। यही साधना से सिद्धि का मूलभूत तत्त्वदर्शन है। इसी को समझकर इस क्षेत्र में उतरा जाना चाहिए।