कहीं ! हमें भी सनकने का रोग तो नहीं?

September 1994

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मनोवैज्ञानिकों के अनुसार चिंता और उन्माद की तरह सनक भी एक प्रकार का मनोविकार है। जब यह अपने पूरे उभार पर होती है। तो व्यक्ति को इस कदर आवेशग्रस्त करती ओर विश्वासों की इतनी गहरी भूमिका में उतार देती है कि वह बेचारा संभव असंभव का भी भेद भूल जाता है अपनी तर्क शक्ति गँवा बैठता और जो कुछ भी सनक ने उसे मान बैठने के लिये कहा था, उन्हीं पर पूरा विश्वास करने लगता है।

घटना अमरीका की है। हैराल्ड बनी नामक एक उच्च शिक्षित व्यक्ति वाशिंगटन में अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता था। वह एक धार्मिक प्रकृति वाला व्यक्ति था। नियमित रूप से गिरजा घर जाना और व्यवसाय से बचे समय का उपयोग समाज सेवा में करना उसकी सामान्य दिनचर्या थी। वह दो करोड़पति कंपनियों का चेयरमैन था भौतिक विज्ञान में उच्च शिक्षा प्राप्त होने के कारण वह अक्सर विज्ञान विशय पर नई नई बातें सोचता रहता।

इसी कारण से कई छोटे बड़े आविष्कार भी किये।

एक बार उसके मन में अंतर्ग्रही यात्रा करने की कल्पना आयी। वह कोई ऐसा यान विकसित करने का विचार करने लगा। जिसमें विभिन्न ग्रहों की सैर की जा सके। दिन रात ग्रह नक्षत्रों की कल्पना में डूबे रहने के कारण वह चिंतन की इस गहराई में उतर गया। जहाँ उसे ऐसा प्रतीत होने लगा, जैसे शुक्र ग्रह के बारे में वह न केवल बहुत कुछ जानता ही है। वरन् कितनी ही बार वहाँ की यात्रा भी कर आया है। शुक्र के राजकुमार का वह मित्र है और ऐसा अंतरिक्ष यान बनाने की विधि जान चुका है जिससे विभिन्न आकाशीय पिंडों की यात्रा सरलता ओर सुगमता पूर्वक कम खर्च में की जा सके।

राजकुमार यूसीलस उसका परम स्नेही है और एक ऐसी कंपनी बनाने में उसकी सहयोग प्राप्त कर चुका है। जो उसके कल्पित “मैगनेटिक” फलक्स मोड्लर” सिद्धान्त पर आधारित सस्ते सरल और सुविधाजनक यान यात्रा बनाया करेगी। वर्दी ने अपनी कल्पना जगत की इस कंपनी का नाम ......................वह स्वयं की संसार का प्रथम शुक्र ग्रह का यात्री जानने लगा और अपनी दो यात्राओं का विस्तृत विवरण ................शुक्र ग्रह में दो सप्ताह भी लिखी। वह 118 पृष्ठों वाली थी उसकी सीमित प्रतियां ही छपवाई गई क्योंकि विशय अत्यंत गोपनीय था और उसके लीक हो जाने का खतरा था। उसके विचार में यदि ऐसा हुआ तो उसे भारी घाटा उठाना पड़ सकता है और जिस आविष्कार में अरबों खरबों की संपत्ति कमायी जानी है। उससे वह वंचित रह सकता है।

बर्नी अपनी सनक में पूरी तरह खो गया था कल्पना और यथार्थता का भूला देने वाली उसकी मनः स्थिति बन गई थी। उसने आवेश में आकर अपने 1 लाख 61 हजार डालर के शेयर बेच डाले। आश्चर्य यह कि जिसे आत्मविश्वास के साथ सहयोगियों से उसने बातें की उससे प्रभावित होकर अनेक सुसंपन्न लोग उसे पर विश्वास करने लगे और उसके इस महत्वाकांक्षी अभियान में सम्मिलित हो गये। सनक का स्वरूप इतना बढ़ चढ़ और योजनाबद्ध हो सकता है इसका दूसरा उदाहरण कदाचित ही की मिलें।

बर्नी की सेक्रेटरी एजेंलिका भी इस योजना में शामिल हो गई। उसे क्या पता था कि जिस कार्य के लिये वह इतना भाग दौड़ कर रही हे वह एक सनकी मस्तिष्क की कभी भी पूरी न हो सकने वाली बेतुकी योजना है।

एक दिन बर्नी पर और भी विचित्र सनक सवार हुई। उसने शुक्र ग्रह से अपनी सेक्रेटरी को राजकुमार यूसीलस की ओर से फोन कराया कि इस ग्रह पर आकर बर्नी बीमार पड़ गये है और अपने साथियों के नाम अमुक संदेश नोट कराते हैं। जो उन तक पहुँचा दिया जाय। सेक्रेटरी ने वैसा ही किया। इसके पश्चात् कुछ दिन बाद उसके मरने का समाचार आ गया।

सेक्रेटरी ने सोचा इतनी महत्वपूर्ण योजना को अधूरी न रहने दिया जाय। इसके सफल हो जाने से अमरीका का भाग्य बदल सकता है अतः उसने तत्कालीन राष्ट्रपति आइजन हावर से मिलकर संपूर्ण योजना समझा दी और बर्नी की दो शुक्र यात्राओं से लेकर अंतरिक्ष यान बनाने और ब्रह्माण्ड भ्रमण करने की उसकी आकाँक्षा बता दी। और सलाह दी कि वे स्वयं इस कार्य को हाथ में ले और आगे बढ़ायें।

राष्ट्रपति ने इस रोमाँचक एवं अद्भुत समझे जाने विवरण से तनिक भी प्रभावित न होते हुये संपूर्ण प्रकरण को सी. आय. ए. के अधिकारियों को सौंप दिया। पुलिस ने छान बीन की तो शुक्र पर मरा हुआ बर्नी धरती पर ही अर्धविक्षिप्त अवस्था में जीवित पाया गया। वह वाशिंगटन से बहुत दूर इलिन्वाय राज्य में एक साइनबोर्ड बनाने वाले के यहाँ पेट भरने जितने वेतन पर मजबूरी कर रहा था। उसकी स्थिति फटेहाल भिखारियों जैसी हो गई थी। पुलिस ने उसे झूठी अफवाहें फैलाने और धोखाधड़ी करने के मामले में गिरफ्तार कर लिया।अदालत में उसके विरुद्ध मुकदमा दायर किया, जहाँ उसे दस साल की सजा सुनाई गईं वह अपनी पूरी सजा भी नहीं काट सका और कालकोठरी में मर गया।

हम कल्पना तो करे और योजनाएं भी बनाये पर ऐसी नहीं जिसके लिये स्वयं को ही मृत घोषित करना पड़े सनकी तो अर्धमृतकों की तरह जीते हैं। हमें जीवितों की तरह जीना चाहियें और कुछ ऐसा कर गुजरना चाहिये जो समाज के लिये अनुकरणीय साबित हो ऐसा तभी संभव है जब मस्तिष्क को शांत सजग रखते हुए बार बार इस बात पर विचार करे कि जो कुछ किया जा रहा है वह अतिरंजित स्तर का उन्माद तो नहीं।


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