जग जननी। दुख हरनी माता। दुख-संताप हरो।
जगत के दुख संताप हरो। हमारे सब; संताप हरो।
सुख पाये; पर शांति न पायी; तन-मन में; व्याकुलता छायी;
अंतःकरण उदार नहीं है; मानवता से प्यार नहीं है, माँ। व्याकुल मानव का अब तो, तीनों ताप हरो।
जगत के, दुख संताप हरो। हमारे सब, संताप हरो।
हर लो माँ। अभिमान हमारा, धन -साधन का, ध्यान हमारा,
पर मन में, निर्मलता भर दो, वाणी में, पावनता भर दो, क्षुद्र स्वार्थ संकीर्ण हृदय का माँ। अभिशाप हरो।
जगत के, दुख संताप हरो। हमारे सब, संताप हरो।
निज संस्कृति से, प्यार हमें हो, भावों पर अधिकार, हमें हो, अपने को हम, हीन न मानें दुर्बल अथवा दीन, न मानें ग्लानि हृदय की हर लो माता। पश्चाताप हरो।
जगत के, दुख संताप हरो। हमारे सब, संताप हरो।