ज्ञान का संबल दुखों से दिलाये मुक्ति

September 1994

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>

दार्शनिक एवं विद्वज्जन संसार को विषवृक्ष की उपमा देते चले आये है। उनके विचार में यहाँ आपत्तियाँ भी कम नहीं है। जो कुछ भी है सभी यंत्रवत चल रहा है। वे कहते हैं कि दूर रहते और न चाहते हुये भी कष्ट कठिनाइयाँ आती है, व्यक्ति उलझनों में फँसता है व फिर उन प्रतिकूलताओं से लड़कर अपने लिये सुख -सुविधा की स्थिति तैयार करना उसके जीवन भर का एक क्रम हो जाता है। कष्ट उनसे मोर्चा लेना सुख सुविधाओं के लिये प्रयास करना और फिर दुखों का क्रम आरंभ हो जाना यह उनके अनुसार एक चक्रव्यूह है जिसमें हर व्यक्ति को फँसना और एक एक करके उसकी जटिलताओं से जूझते हुये बाहर आना पड़ता है। सारा जीवन इसी प्रयत्न में बीत जाता है। जब पीछे मुड़कर देखते हैं तो हर व्यक्ति यह कहता पाया जाता है कि सारा जीवन कठिनाइयों में बीत गया। न सुख मिला न शांति। मस्तिष्क को तो सुखों की तृष्णा के अंबार से लाद लिया गया।

योगवशिष्ठ के अनुसार इस दुख को जो व्यक्ति अनुभव करता है, यदि ठीक से समझ लिया जाय तो सही अर्थों में हर व्यक्ति को जीवन कैसे जिया जाना चाहिये था यह समझ में आ जाय। योगवशिष्ठ के विद्वान ऋषि लिखते हैं कि अपने ही अज्ञानवश हम समग्र संसार को जिस समष्टि रूप में वह है उसमें न लेकर सारे जीवन के क्रियाकलापों को प्रकृति की माया के साथ न तौलकर जीवन भर उसे अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करते हैं। यही हमारी सबसे बड़ी गलती है।

यह संसार वस्तुतः इतना बड़ा है कि हम उसे अपने अनुकूल बना ही नहीं सकते। अपने इसी अज्ञान का फल हमें दुखों के रूप में मिलता है। हम यदि यह मानते कि हम उतने छोटे है कि संसार की राजी में राजी मिलाकर सुखी हो लें तो शायद यह संभव था पर हमने अहंकारवश बड़ा बनना चाहा। हमने यदि ज्ञान का रास्ता पकड़ा होता तो यह अहंकार हमारे पल्ले न बँधता। विद्वानों ने सही कहा है कि यह संसार समुद्र से भी मुक्त हो जाता है। भीगी लकड़ियों को आग नहीं जला पाती, उसी प्रकार ज्ञान से भीगे मनुष्य को ये साँसारिक दुख कभी भी वेदना किसी भी स्थिति में नहीं दे सकते।


<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118