मातृ सत्ता से (Kavita)

September 1994

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जन्म दिन पर माँ। तुम्हें, परिवार का शतशत नमन। है इसी आँचल चले रक्षित, हमारा यह बालपन॥

बन मनुज आये जगत में पर नहीं कुछ ज्ञात था। बन मनुज आये जगत में, पर नहीं कुछ ज्ञात था।

बन गया था-किंतु माँ। मुकलित हृदय जलजात था॥ इसे तुमने ही खिलाया दे कृपा की शुचि किरण॥

साधना करना सिखाया, निकट बैठाकर हमें। प्राण पुलकित सा लगा, वह ऊष्मा पाकर हमें॥

दिव्य चेतनता जगायी, कर दिये परिशुद्ध मन॥ दिव्य दृष्ट-युग पुरुष की, तुम बनी अर्धांगिनी॥

शुचि तपस्या लोक सेवा में, रही सह भागिनी॥ थी बराबर युग हृदय में, युग बदलने की लगन॥

हाँ, तभी तो वे गये, तुम कार्य भार उठा रहीं। नवसृजन के हेतु जड़, प्राचीन कलुष हटा रहीं॥

विश्व का निर्माण होना है, पुनः है बस यही एक प्रण॥ जन्म दिन पर माँ। तुम्हें परिवार का शत-शत नमन। शत-शत नमन।


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