अध्यात्म का वैज्ञानिक प्रतिपादन साहित्य

May 1981

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प्रस्तुत बुद्धिवादी युग में तर्क, तथ्य, प्रत्यक्ष, प्रमाण एवं विज्ञान को प्रामाणिकता मिली है और शास्त्र, श्रद्धा एवं आप्त वचनों को अमान्य किया गया है। इस मनःस्थिति में पनपने वाले नास्तिकतावाद एवं स्वेच्छाचार को निरस्त करने के लिये युगदृष्टा गुरुदेव की लेखनी से अभिनव युग-साहित्य सृजा गया है। प्रत्येक विचारशील वर्ग के लिये अत्यन्त प्रेरणाप्रद है।

(1) विवाद से परे ईश्वर का अस्तित्व

(2) ईश्वर कौन है? कहाँ है? कैसा है?

(3) दृश्य जगत के अदृश्य संचालन सूत्र

(4) चेतना की प्रचण्ड-क्षमता एक दर्शन

(5) असीम पर निर्भर ससीम जीवन

(6) मनुष्य चलता-फिरता पेड़ नहीं है।

(7) पाँच प्राण-पाँच देव

(8) दिव्य-शक्तियों का उद्भव प्राण शक्ति से

(9) मानवीय क्षमता-असीम अप्रत्याशित

(10) अणु में विभु-गागर में सागर

(11) आत्मा न नर है, न नारी।

(12) मानवीय मस्तिष्क विलक्षण कम्प्यूटर

(13) अतीन्द्रिय क्षमताओं की पृष्ठभूमि

(14) जड़ के भीतर विवेकवान चेतना

(15) शरीर की अद्भुत क्षमता और विलक्षणताएँ

(16) मस्तिष्क प्रत्यक्ष कल्पवृक्ष

(17) क्या धर्म असीम की गोली है?

(18) धर्म और विज्ञान विरोधी नहीं पूरक

(19) विज्ञान को शैतान बनने से रोकें।

(20) पुनर्जन्म एक ध्रुव सत्य

(21) स्वर्ग नरक की स्वसंचालित प्रक्रिया

(22) तात्विक दृष्टि से बंधन मुक्ति

(23) मरें तो सही पर बुद्धिमता के साथ

(24) भूत कैसे होते हैं? क्या करते हैं?

(25) पितरों को श्रद्धा दें, वे शक्ति देंगे।

(26) सपने झूठे भी सच्चे भी

(27) शब्द ब्रह्म-नाद ब्रह्म

(28) संसार चक्र की गति प्रगति

(29) आध्यात्मिक काम विज्ञान

(30) जीव जन्तु बोलते भी हैं, सोचते भी।

(31) असामान्य एवं विलक्षण, किन्तु सम्भव और सुलभ

(32) मनुष्य गिरा हुआ देवता या उठा हुआ पशु

(33) दृश्य-जगत की अदृश्य पहेलियाँ

(34) हम सब एक-दूसरे पर निर्भर

(35) चेतना का सहज स्वभाव, स्नेह, सहयोग

(36) सहृदयता आत्मिक प्रगति के लिये अनिवार्य

(37) बच्चे बढ़ाकर अपने पैरों कुल्हाड़ी न मारें।

(38) युग शक्ति गायत्री का अभिनव अवतरण

(39) ब्रह्मवर्चस् की ध्यान-धारणा

(40) कुण्डलिनी महाशक्ति और उसकी संसिद्धि

(41) सर्वोपयोगी गायत्री साधना

(42) गायत्री के पाँच मुख पाँच दिव्य कोश


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