दुष्टता के दमन की सृष्टि व्यवस्था

May 1981

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मनुष्य एक दर्पण की तरह है। संपर्क एवं वातावरण के प्रभाव में, प्रस्तुत ढांचे में ढलने एवं प्रचलित प्रवाह में बहने लगता है। मूलतः व्यक्ति देवी अंश अनुदान साथ लेकर जन्मता है फिर भी यदि उसे भ्रष्ट चिन्तन और दुष्ट वातावरण में रहना पड़े तो उस ढांचे में ढलते हुए भी उसे देर नहीं लगती। अनाचारी, अपराधी, दुर्गुणी, दुर्व्यसनी लोगों की बढ़ती हुई संख्या यही बताती है कि संपर्क एवं अनुकरण का प्रभाव कितना प्रचण्ड होता है। निष्कृष्ट विचारणा अपनाने वाला व्यक्ति क्रमशः पतन की दिशा में बढ़ता और नरक जैसी दुर्गन्ध भले दलदल में धँसता चला जाता है। यही बात परिस्थितियों के संबन्ध में भी है। सत्संग की महिमा सर्वविदित है, कुसंग का प्रभाव उससे भी अधिक होता है। उठने में बहुत प्रयास करने और साधन जुटाने पड़ते हैं, पर गिरने में तो इच्छा मात्र से सफलता मिल जाती है। मीनार पर चढ़ा हुआ व्यक्ति भी एक कदम आगे बढ़ाने भर से सेकेंडों में जमीन में टकराता और चूर-चूर होते देखा जाता है।

जिस प्रकार सज्जनों और महामानवों का अपना इतिहास है उसी प्रकार दुष्ट दुरात्मा भी समय-समय पर उपजते और परिस्थितियों का अनुकूलता पाकर दुष्टता के उस स्तर तक जा पहुँचते हैं जिसकी कल्पना करने तक में मनुष्यता सिहर उठती है। पौराणिक गाथाओं में कितने ही ऐसे नृशंस दैत्य दानवों का उल्लेख है जिनने मानवी परम्पराओं को ताक में रख कर ऐसे क्रूर कृत्य किये जैसे हिंस्र पशु भी करते नहीं देखे जाते। वे तभी आक्रमण करते हैं जब भूखे होते या छेड़े जाते हैं। इसके विपरीत नर-पिशाचों में ऐसे भी पाये गये हैं जो उत्पीड़न को विनोद मानते और उसका आनन्द लेने के लिए ऐसे कृत्य करते जैसे बधिक भी नहीं करते। मानवी गरिमा से ठीक विपरीत स्तर के ऐसे उदाहरणों से यही प्रतीत होता है कि भ्रष्ट चिन्तन और दुष्ट सान्निध्य से मनुष्य को न पशु बनने में देर लगती है और न पिशाच बनने में।

इस स्तर के दो उदाहरण नीचे प्रस्तुत हैं। यों सोचने पर ऐसी नृशंसता छोटे या बड़े रूप में बरते जाने की घटनाएँ अन्यत्र भी पाई जा सकती हैं।

‘ड्राक्युला को विश्व का सर्वाधिक क्रूर शासक माना है। ड्राक्युला, जिसे कि इतिहास कारों ने “मानव शरीर छेदने वाला” तक कह दिया है वे अनेक बार अपने मनोरंजन के लिए दुधमुंहे बच्चों को उनकी माताओं के सीने पर ही जड़वा दिया। इन बच्चों को मार कर उन्हें ही अपने बच्चों को कच्चा माँस खाने पर मजबूर किया। वह अपनी प्रसन्नता के लिए गाँवों को जलवाता एवं स्वयं आनन्दित होता। अपनी विशेष सनक में उसने राज्य के सभी बूढ़े तथा बीमार लोगों को जिन्दा जलवा दिया। ड्राक्युला के दरबार में टँगी लाशों से सिर चकराने वाली बदबू आ रही थी। इसी समय उसके अत्यन्त विश्वासपात्र मन्त्री ने अत्यन्त विनम्रतापूर्वक कहा कि लोगों को ऐसे स्थानों पर टँगवाया जाय, जिससे लाश की दुर्गन्ध राजा एवं अन्य दरबारी लोगों को महसूस न हो तो अच्छा रहे। इस पर “क्रूरता के अन्वेषक” ड्राक्युला ने अत्यन्त उल्लासपूर्वक तुरन्त आदेश दिया कि इस मन्त्री को भी एक खूँटे पर ठोंक दिया जाय तथा अपने प्रिय पात्र के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करते हुए कहा कि अब तुम्हें कभी भी दूसरों की बदबू नहीं आयेगी। अपनी गलती के लिए क्षमा मांगने पर उसने दयाभाव दिखाते हुए कहा कि उसका खूंटा अन्य लोगों से कुछ ऊँचा जड़वा दिया जाय।

काऊण्ट ड्राक्युला जो कि सन् 1430 ई. में ट्रांस-लवानिया के पहाड़ी क्षेत्र का शासक बना, का अन्त उसके द्वारा अपनायी गई पद्धति से भी अधिक क्रूर तरीके से हुआ। तुर्की सेनाओं ने अचानक आक्रमण करके भागते हुए ड्राक्युला को बन्दी बना लिया और रोज उसके शरीर का टुकड़ा काट कर उसे ही कच्चा खाने पर मजबूर किया। निश्चित रूप से अपने कुकर्मों के अनुरूप ही उसकी मृत्यु तड़प-तड़प कर सन् 1476 ई. में हुई।

पन्द्रहवीं सदी में इंग्लैण्ड में एक ऐसे मानव-राक्षस ने जन्म लिया जिसके आतंक से चौथाई सदी तक इंग्लैण्ड के गोलोवे क्षेत्र में लोग थर-थर काँपते रहे। इस व्यक्ति का नाम स्वेने वीन था। बचपन में ही वह इतना खाना खाता था कि उसका पिता अपनी मजदूरी से कभी उसका पेट न भर सका। संयोगवश युवावस्था में उसका सम्बन्ध ऐसी ही एक युवती से हो गया। दोनों कुछ दिन तक लोगों की मुर्गियों व उनके बकरी-बकरों का गला काटकर उनका ताजा खून पीते रहे, किन्तु खून के प्यासे इस दम्पत्ति को मात्र इतने से सन्तोष न हुआ और दोनों समाज से अलग-अलग समुद्र के गोलोवे क्षेत्र की एक गुफा में रहने लगे। यह स्थान आम आवागमन से दूर वीरान था।

स्वेने वीन दम्पत्ति ने इस क्षेत्र 25 वर्ष गुजारे। इस अवधि में उनके 8 पुत्र व 6 पुत्रियाँ तथा बच्चों के अपनी अवैध सम्बन्धों से 22 बच्चे पैदा हुए। इस प्रकार 38 व्यक्तियों का यह पूरा काफिला मात्र मानव रक्त पर जीवनयापन करता था। इस मार्ग से निकलने वाले यात्री अपने गन्तव्य तक नहीं पहुँच पाते थे। बीच में ही स्वेने वीन दम्पत्ति मार कर उनके खून और माँस को अपना भोजन बनाते थे। अन्तिम समय में इस रास्ते से 8-10 आदमियों तक का काफिला सुरक्षित नहीं जा सकता था। अनेकों बार खोज बीन के अनेकों प्रयत्न किये गए किन्तु 25 वर्षों तक इस रहस्य में पर्दा ही पड़ा रहा। यदा-कदा मनुष्यों के कटे शिर, हाथ, पाँव समुद्र में बहते देखे जाते जिससे जनता में भय छा जाता। अत्याचार अधिक दिन तक नहीं चलते।

एक बार स्वेने वीन परिवार के लोगों ने एक दम्पत्ति पर आक्रमण कर पत्नि को मारकर पति के सामने ही उसका उष्ण रक्तपान किया। पति प्राण रक्षार्थ संघर्ष कर रहा था की मार्ग में अनेक यात्रियों के आने जाने से वह जान बचाकर भागने में सफल रहा। यह समाचार पाकर तत्कालीन सम्राट् जेम्स प्रथम ने इस परिवार के सदस्यों को पकड़ने का आदेश दिया। गुप्त चर एवं सैनिक के दस्ते असफल होकर वापिस आ गये। काफी प्रयत्न करने पर शिकारी कुत्तों की सहायता से इस परिवार के सभी सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया गया। राजाज्ञा से स्वेने वीन परिवार को उसके इस जन्म स्थान ऐडिनवरा लाया गया। जहाँ उन्हें तलवार के घाट उतार दिया गया।

यह उदाहरण बताते हैं कि क्रूरता की शक्तियाँ अपनी प्रौढ़ता के दिनों में मनमानी कर लेती हैं, पर विश्व व्यवस्था की अदृश्य शक्तियाँ देर तक उन्हें भी मजा चखाती है। दुष्टता को सज्जनता न जीत सके तो प्रकृति के नियमन क्रम में शक्तियों का भी अस्तित्व है जो लाठी का जवाब लाठी से और दुष्टता का जवाब प्रताड़ना से दे सके।


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