शराब के नशे में चूर एक शराबी जब लड़खड़ाते जा रहा था तो रास्ते में मिले एक तिलकधारी पण्डित ने उससे कहा, ‘‘भाई इतनी अधिक भी क्या पीना, जरा सम्हल कर चलो अन्यथा गिर पड़ोगे।’’ शराबी बोला, ‘पण्डित जी में तो शराबी हूँ ही- सब जानते हैं, गिर भी पड़ूंगा तो कोई जग हँसाई नहीं होगी, परन्तु आप जरा सम्हल कर रहिए अन्यथा यदि आप अपनी राह से फिसले तो आपकी जग हँसाई अधिक होगी।’
यह सुन पण्डित जी सावधान हो गये व सोचने लगे कि समाज दुर्गुणी व व्यसनी लोगों के दुर्गुणों, व्यसनों को उतना उपहासास्पद नहीं मानता, जितना सद्गुणी से दिखने वाले व्यक्तियों के दुर्गुणी व्यवहार को देखकर।