सन् 1982 में भूकम्पों की श्रृंखला

May 1981

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संसार के मूर्धन्य विचारक, भविष्यवक्ता, राजनेता, वैज्ञानिक और चिन्तक अपने-अपने ढंग से इन दिनों बार-बार यह कह रहे हैं कि अगले दिनों भयंकर विनाश की सम्भावनाएँ सामने आने वाली हैं। विचारक जीवन मूल्यों के ह्रास से उत्पन्न होने वाले संकट और विग्रह की बात कहते हैं तो भविष्यवक्ता प्रकृति विक्षोभ की, राजनेता अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में बढ़ते हुये तनावों के कारण चिन्ता व्यक्त करते रहे हैं तो प्रकृति विज्ञानी इस बात को लेकर चिन्तित हैं कि इन दिनों प्रकृति इतनी विक्षुब्ध हो उठी है कि अतिवृष्टि, अनावृष्टि, भूकम्प, सुप्त ज्वालामुखियों के विस्फोट से लेकर महामारियाँ फैलने तक की अशुभ सम्भावनाएँ हैं।

अखण्ड-ज्योति के पिछले अंकों में विश्व के दो प्रसिद्ध खगोलशास्त्री जौन ग्रिविन तथा स्टीफन प्लैगमेन द्वारा लिखी गई पुस्तक के उदाहरण प्रकाशित हुये थे। जिनमें कहा गया था कि ‘‘सन् 1982 में हमारे सौर मण्डल में नवों ग्रह सूर्य के एक ओर पंक्तिबद्ध हो जायेंगे। चूँकि यह घटना ऐसे समय घटेगी जब सूर्य की गतिविधियाँ सर्वाधिक होंगी, इसीलिये दुनिया भर के सभी क्षेत्रों में ऋतुएँ आश्चर्यजनक रूप से बदलेंगी। इस सौर घटना के परिणामस्वरूप पृथ्वी की परिक्रमा का क्रम गड़बड़ायेगा और विश्व के अनेक स्थानों में भूकम्प आयेंगे।

10 अक्टूबर 1980 को अल्जीरिया में आए भूकम्प का उदाहरण इस संदर्भ में दिया जाता है और बताया जाता है कि ‘उन दिनों जो भूकम्प आयेंगे वे इस भूकम्प से भी भयावह भयंकर होंगे।’ समाचार पत्र पढ़ने वालों को उस भूकम्प के बारे में अच्छी तरह याद होगा जो उक्त तिथि को अल्जीरिया में आया था और जिसके परिणाम स्वरूप 25000 व्यक्ति मृत्यु के ग्रास बन गये थे तथा करीब 2 लाख व्यक्ति बेघरबार और घायल हो गये। इस भूकम्प की खबर मिलते ही विभिन्न देशों के चिकित्सा दल, राहत दल और बचाव आदि कार्यों के लिये स्वयंसेवी संस्थाओं ने अपने कार्यकर्ता, चिकित्सा तथा राहत सामग्रियां भूकम्प पीड़ितों के लिये भेजीं, परन्तु भूकम्प के कारण अल असनाम शहर तथा उसके आस-पास का क्षेत्र इस बुरी तरह तबाह हो गया था कि परिवहन और संचार साधनों से भी कोई संपर्क नहीं हो सका। 24 घण्टे तक वह क्षेत्र दुनिया के मध्य में स्थित होते हुये दुनिया से अलग-थलग पड़ गया।

यह भूकम्प 15-20 सेकेंडों तक सर्वाधिक तीव्र रहा। भूकम्प मापी यन्त्रों ने इसकी तीव्रता 7-5 रिचर स्केल दर्ज की। रिचर स्केल भूकम्प की तीव्रता मापने का एक स्केल है। 12 डिग्री रिचर स्केल सबसे तीव्र होता है जिसमें सर्वनष्ट का-सा दृश्य उपस्थित हो जाता है। बड़ी-बड़ी चट्टानें और टेकरियाँ हवा में उड़ने-सी लगती हैं तथा तमाम भारी से भारी चीजें भी उछल कर कहीं की जा गिरती हैं। नदी नाले अपना रास्ता बदल देते हैं। बहुत बार तो खाइयां मुंद जाती हैं और जहाँ चट्टानें होती हैं वहाँ बड़े-बड़े खड्डे हो जाते हैं।

अल्जीरिया में आया भूकम्प तो एक मिसाल है। सूर्य की एक ओर एक सीध में नौ ग्रहों के इकट्ठा हो जाने पर इससे भी तीव्र भूकम्प के झटके आने की आशंका व्यक्त की गई है। उस समय सम्भावित भूकम्पों के कारण होने वाले विनाश का पूर्वाभास पूर्व कल्पना करने के लिए भूकम्पों के सम्बन्ध में यह जान लेना आवश्यक है कि ये क्यों आते हैं? कैसे आते हैं? और क्या कोई ऐसी विधि है जिनके द्वारा भूकम्पों के सम्बन्ध में भविष्यवाणी की जा सके कि अमुक समय पर भूकम्प आने वाला है? ताकि लोग पहले से ही सुरक्षित स्थान पर पहुँच सकें।

वैज्ञानिकों के अनुसार हमारी पृथ्वी पहले कभी सूर्य का ही एक हिस्सा थी, जो करोड़ों वर्ष तक सूर्य के समान ही जलती हुई गैसों का पिण्ड रही। गैस ठण्डी होकर ठोस रूप धारण करती गई तो ऊपर का धरातल सिकुड़ता गया और उसका भीतरी भाग बाद में ठण्डा हुआ। इस सिकुड़न के आन्तरिक दबावों के कारण पृथ्वी के भीतर दो बहुत बड़ी दरारें पड़ी। एक दरार हिन्दुकुंश और कराकोरम पर्वत मालाओं से शुरू होती हुई हिमालय की तलहटी के नीचे होकर सुदूर पूर्व तक जाती है तथा दूसरी दरार यूरोप के आल्पस पर्वत से आरम्भ होकर आग्नेय एशिया के अधिकाँश देशों के नीचे से होकर गुजरती है।

इन दरारों के ऊपर धरातल सहित भूमि का असीम दबाव पड़ता है। पृथ्वी के भीतर अभी भी हलचलें होती रहती हैं और जब कोई छोटी-सी हलचल भी इन दरारों के इर्द-गिर्द होती है, पृथ्वी की सतह काँपने लगती है। इसे ही भूकम्प कहते हैं। जब समुद्री क्षेत्रों में भूकम्प आता है तो जल प्रलय का-सा दृश्य उत्पन्न हो जाता है। 90 से लेकर 100 फुट ऊँची तक लहरें उठने लगती हैं और यदि उस क्षेत्र के समीप ही कहीं जमीन हुई तो किनारे की लाखों एकड़ उपजाऊ जमीन खारे पानी में डूब जाती है।

भूकम्पों की भयावहता का एक छोटा-सा उदाहरण तो हाल ही में पिछले दिनों आया, अल्जीरिया का भूचाल है। इससे भयंकर भूकम्प भी आ सकते हैं। जिस यन्त्र के द्वारा भूचाल को मापा जाता है तथा इसके सम्बन्ध में थोड़ा बहुत पूर्वानुमान लगाया जा सकता है उसे सिस्मोग्राफ कहते हैं। यह यन्त्र धरती के हलके से हलके कम्पन को भी पकड़ लेता है। इसकी सूक्ष्मग्राहीता इतनी पैनी है कि भारत, चीन या जापान में कहीं अणु विस्फोट किया जाए तो उससे होने वाले कम्पन को अमेरिका में नोट किया जा सकता है और बताया जा सकता है कि अमुक स्थान पर अणु विस्फोट हुआ। किन्तु इस यन्त्र से भूकम्प का अनुमान दो चार सेकेंड पहले ही लगाया जा सकता है, जो व्यर्थ है क्योंकि इतने कम समय में किसी भी तरह के सुरक्षा उपाय सम्भव नहीं हो पाते और भूकम्प इतनी तेजी से आते हैं कि मात्र एक सेकेंड में वह लाखों वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को पत्ते की तरह थर-थर कपा कर रख सकता है।

भूकम्प की विनाशकारी शक्ति का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि रिचर स्केल यन्त्र पर नोट किये जाने योग्य भूकम्प की शक्ति करीब 200 परमाणु बमों के विस्फोट से होने वाले कम्पन के बराबर होती है। चूँकि इतने सामान्य से दिखाई देने वाले भूकम्प के कारण पृथ्वी में सैकड़ों मील भीतर होते हैं इसलिए सतह तक उनका प्रभव नहीं ही दिखाई देता। 1 डिग्री रिचर स्केल वाले भूकम्प के कारण धरती की सतह पर होने वाले कम्पन को बहुत कम लोग अनुभव कर पाते हैं। अधिकांश को तो इसका पता ही नहीं चलता। सामान्य भूकम्प की शक्ति का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि उतनी शक्ति द्वारा तीस किलोमीटर व्यास वाले करीब 1200 मीटर ऊँचे पर्वत को साढ़े तीन किलोमीटर ऊँचाई तक आसानी से उठाया जा सकता है।

कब कहाँ भूकम्प आ जाएगा? इस सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। हालाँकि अब तक आये भूकम्पों के आधार पर वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसे क्षेत्र अवश्य निर्धारित किये हैं जहाँ उनकी अधिक सम्भावना है। चीन और जापान सहित हिमालय तथा अल्पस पर्वत श्रेणियों की तलहटी में बसे क्षेत्रों में अधिक भूकम्प आते हैं, परन्तु यह कहने का कोई आधार नहीं है कि अमुक क्षेत्र में भूकम्प नहीं आएगा। वह कभी भी और कहीं भी आ सकता है और देखा गया है कि जिन क्षेत्रों में भूकम्प प्रायः नहीं आते, वहाँ जब कभी आते हैं तो अपेक्षाकृत बहुत उग्र होते हैं। किसी क्षेत्र में यदि भूकम्प आना बन्द हो गए हों और हजारों साल से उस क्षेत्र में भूकम्प नहीं आया हो तो भी नहीं कहा जा सकता कि अमुक स्थान पर भूकम्प आने की सम्भावना नहीं है, वैसे क्षेत्रों में कभी भी भूकम्प के रूप में विनाशलीला का ताण्डव उठ खड़ा हो सकता है। अर्थात् पृथ्वी का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जिसे पूरी तरह भूकम्प से मुक्त कहा जा सके। हाल ही में अल्जीरिया में आये भूकम्प ने 120 किलोमीटर व्यास के क्षेत्र में भयंकर तबाही मचा दी थी।

भूकम्प कहाँ आ सकते हैं और कहाँ नहीं आते? इसका उत्तर जिस प्रकार निश्चित रूप से नहीं दिया जा सकता, उसी प्रकार यह भी नहीं कहा जा सकता कि किस क्षेत्र में कब भूकम्प आ जाएगा? यद्यपि विश्व के किसी भी क्षेत्र में कभी-कभी भूकम्प आ जाता है किन्तु चीन और जापान यह दो देश ऐसे हैं जहाँ का प्रत्येक नागरिक अपने जीवन काल में सैकड़ों बार काँपती हुई धरती के झटके सहते हैं। सबसे अधिक भूकम्प इन्हीं क्षेत्रों में आने के कारण वहाँ के वैज्ञानिकों ने भूकम्प का पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई कारगर विधि खोजने के अथक प्रयास किये, परन्तु उन्हें कोई विशेष सफलता नहीं मिली।

इस तरह के प्रयोगों, अनुसन्धानों और अन्वेषणों से केवल इतना ही जाना जा सका कि पृथ्वी में निरन्तर प्रतिक्षण एक कम्पन होता रहता है, जिसे धरती का साँस लेना कहा जा सकता है। अध्ययन केन्द्रों से यह पता लगाया गया कि भूचाल आने के पूर्व यह कम्पन बीस गुना अधिक बढ़ जाता है। किन्तु कम्पन के बढ़ने और भूकम्प के आने में उतनी भी देर नहीं लगती जितनी कि रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर रेल का इंजन दिखाई देने और उसके तुरन्त बाद गाड़ी के डिब्बे दिखाई पड़ने में लगती है। फिर भी वैज्ञानिक निराश नहीं हुए और उन्होंने अपना शोध कार्य जारी रखा। अगले चरणों में यह जाना जा सका कि पृथ्वी की सतह पर एक विशिष्ट प्रकार की सूक्ष्म विद्युत तरंग हर समय नाचती रहती है। भूकम्प आने के पहले वह अचानक बढ़ती है और से घटती है। उसके तुरन्त बाद भूकम्प आता है। परन्तु इन तरंगों के बढ़ने, घटने और भूकम्प आने में भी इतना अन्तर नहीं निकल सका कि इस बीच कोई सुरक्षा सम्बन्ध किये जा सकें। यह तभी सम्भव है जब पहले से जान लिया जाए कि अमुक समय तरंगें बढ़ेंगी और इस अधिकतम बढ़ने रहने के बाद घटेंगी।

अभी तक वैज्ञानिक इस दिशा में किसी निश्चित निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सके हैं। अलबत्ता कुछ जीव-जन्तुओं के व्यवहार को देखकर यह अनुमान आवश्यक लगाया जा सका है कि उन्हें विद्युत तरंगों के बढ़ने और घटने का ज्ञान पर्याप्त समय रहते हो जाता है तथा वे अपना बचाव करने के लिए इधर-उधर भागने लगते हैं। 1966 में चीन सरकार द्वारा भूकम्प की सम्भावना का पता लगाने के लिए बनाये गये कार्यक्रम में जनता से भी सहयोग लिया गया था और कहा गया था कि वे अपने क्षेत्र में कोई भी प्राकृतिक परिवर्तन कभी भी देखें तो उसे नोट करायें। लोगों द्वारा दी गई सूचनाओं के आधार पर यह पता चला कि भूकम्प आने के पहले साँप और चूहे अपने बिलों से निकल कर इस कदर हड़बड़ा के भागने लगते है कि न चूहों को साँप का ध्यान आता है न साँप की चूहों पर दृष्टि जाती है, भले ही वे साथ-साथ ही क्यों न भाग रहे हों या हड़बड़ी में एक दूसरे से टकरा ही क्यों न रहे हों।

पृथ्वी के भीतर पड़ी दो प्रमुख दरारों का ही ऊपर जिक्र किया गया है। छोटी-मोटी दरारें तो अनेकों पड़ी हुई हैं जिनमें किन्हीं अज्ञात कारणों से कोई न कोई परिवर्तन होता रहता है और उसका परिणाम विनाशकारी भूकम्प के रूप में सामने आता है। ग्रिविन और प्लैगमेन ने अपनी पुस्तक ‘जूपिटर इफेक्ट’ में लिखा है कि भूकम्प लाने वाली पृथ्वी की दरारों में हरकत का एक प्रमुख कारण पृथ्वी की चुम्बकीय धाराओं में होने वाले परिवर्तन भी हैं। सन् 1982 में जब सौर मण्डल के ग्रह सूर्य के एक ही ओर एक ही सीध में आ जायेंगे तब पृथ्वी का चुम्बकीय बल तथा उसकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति असाधारण रूप से प्रभावित होगी। इन प्रभावों के कारण पृथ्वी की दरारों में विचित्र प्रक्रियाएँ परिवर्तन होंगे, जिनकी प्रतिक्रिया विनाशकारी भूकम्पों के रूप में उन दिनों हर कहीं दिखाई देगी।

क्या प्रकृति अपने ज्येष्ठ पुत्र मनुष्य की उच्छृंखलता, स्वच्छंदता और प्रकृति मर्यादाओं का उल्लंघन करने का दण्ड इस प्रकार देने जा रही है? या यह महाकाल का संहार आयोजन है? किसी भी प्रश्न को उत्तर में हाँ कहा जाए, परन्तु इन सम्भावनाओं को दूसरे क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा व्यक्त की गई सम्भावनाओं के परिप्रेक्षण में देखते हैं तो भावी विनाश से बचने या उसे टालने का फिलहाल तो ऐसा कोई उपाय नहीं दिखाई देता, जिसे अपनाकर इन खतरों से पूरी तरह सुरक्षित रहा जा सके।


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