सुन्दर अनुपम सुन्दर यह सृष्टि।

January 1980

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परमात्मा, ईश्वर, ब्रह्म परमपिता आदि कई नामों से पुकारी जाने वाली एक अनादि शक्ति का प्रकाश और उसकी प्रेरणा से ही इस जगत का और जगत के पदार्थों को स्फुरण मिल रहा है। उसी के प्रभाव से सृष्टि के विभिन्न पदार्थो का ज्ञान, कार्य एवं सौर्न्दय प्रतिभासित होता है। वही अपने समय रुप् में अवतीर्ण होता रहता और सत्य रुप् में प्रतिष्ठित होता रहता है। साधक जब विराट् ‘जगत ‘ के रुप् में परमात्मा का दर्शन करता है, उन्हीं चेतना को सूर्य, पृथ्वी चन्द्रमा तारागण आदि में प्रकाशित होते देखता है तो सत्य का दर्शन होता है जगत और अध्यात्म का स्थूल और सूक्ष्म का, दृश्य और तत्व का जहाँ परिपूर्ण सामंजस्य होता है, वहीं सत्य की परिभाषा पूर्ण होती है। और यह सत्य जब जीवन साधना का आधार बनता है तब जगत की प्रेरक और सर्जन शक्ति का परिचय प्राप्त होता है। इसलिए शास्त्रकारों ने सत्य को ही जीवन का सहज दर्शन माना है महर्षि विश्वामित्र ने कहा है -”सत्येनार्क प्रतपति सत्ये तिष्ठति मेदिनी। सत्य व्यक्ति परोधर्मः स्वर्गे सत्ये प्रतिष्ठितः॥ अर्थात सत्य से ही सूर्य तप रहा है, सत्य पर ही पृथ्वी टिकी हुई है। सत्य सबसे बड़ा धर्म है और सत्य पर ही र्स्वग प्रतिष्ठित है।”

समग्र अध्यात्म दर्शन का मूल आधार सत्य हैं पूर्व और पशिचम जिस प्रकार का एक ही अखण्ड क्षितिज में स्थित है उसी प्रकार जगतृ और अध्यात्म, दृश्य और अदृश्य सत्ता एक ही सत्य के दर्शन असम्भव है। सत्य के साथ शिव और सुन्दर भी जुड़े हुए है। शिव अर्थात आनन्द कल्याण और सुन्द अर्थात् पुलक उत्पन्न करने वाली भावनशत्मक विशेषत। सब जगत् की समस्त घटनाओं को केवल ब्राह्म घटनाएँ समझकर उनका विश्लेषण किया जाता है तो उनसे कोई आनन्द नहीं मिलता। उस स्थिति में घटनाएँ और विश्लेश्षण केवल एक शुष्क मशीनी उपक्रम मात्र बन कर रह जाते है। पटरी पर रेल के समान सड़क पर मोटर के समान, शिलाखंडी पर नदी की धारा के समान मन मानस पर भी जगत की धारा बहती रहती है। चित्त पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ने वाला। और सब कुछ निर्जिव नीरसा, अरुचिकर परस्पर और अहोभाव का समावेश कर लिया जाये तो परमपित परमात्मा की यह सृष्टि के निर्माण में अपनी पूरी कलात्मकता का परिचय दिया है और इस सृष्टि को इतना सुन्दर बनाया है कि उसमें रस भाव से देखा जाये तो यह उपवन असंख्य प्रकार के पुष्पों से मंहकता पुलकता अनुभव होने लगे। रात को तारों भरे आकाश में कितने सुन्दर, टिमटिमाते हुए दिये जला दिये है, नीले आकाश की काली चादर में कैसे चमकते हुए मोती टाँग दिये है।

वैज्ञानिकों ने जब शक्तिशाली दूरबीनों से आकश की ओर देखा तो कविह्नदय विज्ञान वेत्ता और भी पुलक उठे। सान्माय दृष्टि से सभी तारें, ग्रह नक्षत्र एक समान दिखाई देते है। लेकिन दूरबीनों से देखने पर पता चलता है कि आकाश में तरह-तरह के रंग बिरंगे झाड़फानूस टंगे हुए है। सामान्य दृष्टि से लोग केवल चन्द्रमा को ही देख पाए और चन्द्रमा को देखकर ही लोगों के ह्नदय इतने तरंगित हो गये कि उसकी सुन्दरता ने अनेक व्यक्तियों का कवि बना दिया। विश्व की तमाम भाषाओं में चन्द्रमा को लेकर, उसकी सुन्दरता पर जितनी कविताएँ लिखी गई है उतनी कविताएँ कदाचित ही किसी विषय को लेकर लिखी गई हों। स्थूल दृष्टि से चन्द्रमा 2160 मील व्यास का बुझा हुआ आकाशीय गोला है वहाँ की जमीन ऊबड़-खाबड़ छोटे बड़े खड्डो और टेकरियों वाली है। लेकिन रात के समय जब तारों भरे आकाश में, पूर्णिमा के दिन सोलह कलाओं के साथ चमकता है तो उसकी सुन्दरता देखते ही बनती है।

पृथ्वी के अतिरिक्त आकाश में और भी ग्रह है। उन ग्रहों की संख्या नौ बताई जाती है। यह ग्रह अपने सौर मंडल के ही है। अपने सौरमंडल के अतिरिक्त आकाश में और भी लाखों करोड़ो असंख्य सौरमंडल है, जिनका अपना अपना परिवार है। स्थूल रुप में अपने सौरमंडल के ग्रह परिवार में ग्रहों की स्थिति संरचना चाहे जैसी हो परन्तु भारतीय मनीषियों ने उन्हें परमात्मा को अनुपम आद्धितीय और सुन्रतम कलाकृति के रुप् में जाना माना है तथा प्रत्येक माँगलिक अवसर उसकी पूजा का विधान किया है। इस परम्परा का कुल मिलाकर इतना ही कारण है। इस परम्परा का कुल मिलाकर इतना ही कारण है कि भारतीय मनीषा पदार्थो और वस्तुओं के स्थूल विश्लेषण की उपेक्षा जीवन की समग्रता और उसके आँतरिक्ष सौनदर्य को अधिक महत्व देती रही। पिछले दिनाँक वैज्ञानिकों ने अन्तरिक अनुसंधान के लिए कई अन्तरिक्ष यान छोड़ें। रुस नें स्पुतनिक-1 और 2 लूनिक 2, और 3, स्पुतनिक 3, वोस्टोक 1,2,3,4,5 और 6,7 और 10, जोड़ा 5 सीयूग 2 व 3, जोड़ 6 प्रोटन, 4 आदि अंतरिक्ष यान छोड़े। अमेरिका ने भी पायनियर, मीदास एक्स प्लोटर, मर्करी, रेड स्टोन, मेरीनर, सिनक्रीम रैजर, जेमिनि, सर्वेयर, ओ.ए.एस. अपोलो आदि ने कई एक अन्तरिक्ष यान छोड़ें। अंतरिक्ष अभियान के इस क्रम में इन कार्यक्रमों को भारी सफलता मिली।

इन यानों में से कुछ मंगल, वृहस्पति, शुक्र और शनि के पास तक भी पहुँचे है। यानों द्वारा पृथ्वी पर सम्बन्धित ग्रहों के जो चित्र भेजे गये, उनसे ग्रहों की वास्तविक स्थिति को तो पता चलता है पर सृष्टीकर्ता की अद्भुत कलाकारिता भी उनसे स्पष्ट होती है। हमारी पृथ्वी का तो केवल एक ही चन्द्रमा है किन्तु वरुणग्रह के दो चन्द्रमा है वहाँ के आकाश में ये दोनों चन्द्रमा चमकता दिखाई देता है इसी प्रकार यूरेनस ग्रह के पाँच चन्द्रमा है।

गत 5 मार्च को 1973 को अन्तरिक्ष अनुसंधान अभियान में भेजे गये वायजर 1 ने वृहस्पति ग्रह से 2 लाख 77 हजार कि.मी. की दूरी लगभग 15000 चित्र भेजे। स्मरणीय है यह ग्रह पृथ्वी से अधिकतम 72 करोड़ और न्यूनतम 64 करोड़ की.मी. दूर रहता है किन्तु यह आकार में पृथ्वी से 1912 गुना बड़ा है।

वायजर 1 ने वृहस्पति के जो चित्र भेजे, वे बहुत ही सुन्दर है। इन चित्रों की मदद से वृहस्पति ग्रह की संरचना, धरातल का स्वरुप, वातावरण रेडियोधर्मी विकिरण और रेडियोधर्मी तरंगो का बहाव तथा ग्रह के ऊपर व्सास गैस के बादलों और ग्रह के गुरुत्वाकर्षण वे चुम्बकीय प्रभाव क्षेत्र को समझने में बड़ी सहायता मिलती है। वायजर-1 अन्तरिक्ष यान द्वारा वृहस्पति ग्रह के 5 से 15 किलो मीटर और कही कही तो 1 किलोमीटर के सुस्पष्ट चित्र प्राप्त हुए। इस ग्रह के पास छह घंटे तक उड़ान भरने के बाद वायजर एक अपने उड़ान मार्ग में आने वाले 13 उपग्रहों में से 5 उपग्रहों के पास से गुजरा जिनके नाम अमेस्थ्या, पेरियासिस, गेनीमोड, आई.ओ.और केसिस्ये। वृहस्पति और उसक उपग्रहों का इतनी निकटता से अध्ययन ने अनेक तथ्यों का पता चला है उदाहरण के लिए कैलिस्ये नामक उपग्रह इतना ठंडा है कि उस पर ऊपर की ओर हमेशा बर्फ उठती रहती है। अंतरिक्षयान ने उसके जो चित्र भेजे उन्हें देखने पर ऐसा लगता है कि जैसे किसी ने सुन्दर मनोहरी गेंद को मुलायम रेशमी गुच्छों से लपेट दिया हो। वृहस्पति का एक उपग्रह आई.ओ.पृथ्वी के चन्द्रमा जितना बड़ा है। इस पर वृहस्पति ग्रह के विकिरण निरन्तर आते रहते है लेकिन इसके बावजूद भी उसके धरातल में कोई विशेष परिवर्तन नहीं आया है। यह ग्रह नाँरगी और लाल रंग का है। कैलिस्य गहरे मटमैले और पीछे धब्बों वाला तथा भूरा रंग लिये हुए है। वायजर एक ने वृहस्पति के तमाम उपग्रहों की रंग विरंगी चित्र प्रतिकृतियाँ भेजी है।

वायजर एक उपग्रह वृहस्पति और उसक चन्द्रमाओं की जानकारी जुटाने के बाद शनि, नेपच्यून, यूरेनस और प्लूटो ग्रहों क बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए आगे अग्रसर हो गया। यह अन्तरिक्ष यान शनिग्रह के पास संभवतः 13 नवम्बर 1980 को पहुँचेगा पर इसके पूर्व ही पायनियर इलेवन गत सितम्बर 1976 के प्रथम सप्ताह में शनिग्रह के पास पहुचٌ और वहाँ से इस अंतरिक्ष यान ने शनि के अनेकों चित्र भेजे। वृहस्पति के बाद अपने सौर मंडल में शनि सबसे बड़ा ग्रह है। यह ग्रह “पृथ्वी’ से दूरबीनों की सहायता से चमकीले तारे के समान दिखाई देता है। सूर्य के बाद क्रम से पड़ने वाले नौ ग्रहों में का स्थान छठवाँ है। यह सूर्य के चारों ओर 1 अरब 44 करोड़ की औसत दूरी पर चक्कर काटता है। शनिग्रह पर यदि रहना पड़े तो वहाँ का एक वर्ष पृथ्वी के साढ़े अट्ठाईस वर्षों के बराबर होगा। पृथ्वी के हिसाब से वहाँ के दिन भी छोटे है, केवल 5 घंटे 7 मिनट की रात और लगभग इतने ही समय का दिन। अर्थात् पृथ्वी पर जितनी अवधि में हम 365 दिन रात देख जलेते है उतनी ही अवधि में शनिग्रह पर लगभग 877 दिन रात देखने पड़ें इस का कारण यह है कि शनि अपनी धूरी पर बहुत तेजी से घूमता है।

अब तक तो शुक्र ग्रह को सुन्दरता का प्रतीक समझा जाता था किन्त शनिग्रह संभवतः सौरमंडल के सुन्दरतम ग्रहों में से है। इसके चारों ओर कई वलय है, जो पहनाई गई मालाओं के समान दिखाई देते है। यह वलय शनिग्रह की सुन्दरता को चार चाँद लगा देते हैं। पृथ्वी से टेलिस्कोप द्वारा देखने पर यह वलय अद्भुत और अनुपम सुन्दर दिखाई देते है। इन्हें सर्वप्रथम वैज्ञानिक गैलीलियों ने सन् 1910 में देखा था दिखाई पड़ने वाले तीन प्रमुख वलयों की कुल चौड़ाई लगभग 65 हजार किलो मीटर है। वैज्ञानिकों का विश्वास है कि ये वलय किसी भकटे हुए चन्द्रमा से बने है जो शनि के गुरुत्वाकर्षण से टुकड़े-टुकड़े हो गये। समझा जाता है तो शनि के धरातल से ये टुकड़े सूर्य के प्रकाश में इस तरह चमकते हुए दिखाई देते है। जैसे किसी ने असंख्यों बल्ब आकाश में टाँग दिये हों। पायनियर यान द्वारा भेजे गए इन वलयों के चित्र से यह पता लगाया गया है कि ये वलय हिम से लिपटी चट्टानों या बर्फीली चट्टानों से बने हो सकते है। पायनियर ग्यारह ने शनिग्रह के जिस भाग के चित्र भेज है वह पृथ्वी पर से नहीं दिखाई देता। कारण कि पृथ्वी से शनि का एक ही पहलू देखा जा सकता है । इस यान द्वारा भेजे गये संकेतों के आधार पर शनि के सबसे बड़े उपग्रह टाइटन पर जीवन का अस्तित्व होने संभावना आँकी गई है। यह उपग्रह बुध उपग्रह से भी बड़ा है। यह तथ्य उस अभियान के परिणाम स्वरुप सामने आए है जो मनुष्य ने पृथ्वी से दूर अन्तरिक्ष का अनुसंधान करने के लिए आरम्भ किया।

पृथ्वी से बहुत दूर अन्तररिक्ष में अभियान कर मनुष्य अपने और अपनी दुनिया के एक नये ही स्वरुप का दर्शन किया है । यह दुनिया कितनी सुन्दर है? यह सब देख जानकर उसके निर्माण कर्त्ता, सृष्टा और नियामक की सूझ-बूझ कलाकारिता पर मुग्ध हुए बिना नहीं रहा जा सकता। अभी तक इस विराट् ब्रह्माण्ड के सम्बन्ध में बहुत थोड़ा एक बआ हजारवाँ अंश भी जानने में नहीं आया है पर यह सत्य है कि भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जून को जिस विराट् रुप का दर्शन कराया था, वैज्ञानिक अनुसंधानों से प्रकट होने वाले तथ्य उसके अनुरुप यर्थात ही सिद्ध हो रहे है। इस विराट् दर्शन के बाद ही अर्जुन के मुँ से हठात् यह शब्द निकल पड़॥ “आप तो अदिदेव और अनादि काल से चले आ रहे पुराण पुरुष है। आप इस जगत के पर आश्रय है और आप ही परमधाम है। यह अनन्त रुप् आप ही के द्वारा यह समाज विश्व विख्यात किया गया है। इस चराचर जगत को अहोभाव से देखने पर किसी भी व्यक्ति के मन में यह उद्गार फूट पड़ना स्वाभाविक है।


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