सत्यस्य वचनं साधु न सत्याद्धिद्यते परम््् । सत्येन विधृंत सर्व सर्वं सत्ये प्रतिय्ठिम ॥25॥
सच बोलना सबसे श्रेष्ठ है, सत्य से बढ़कर कुछ भी श्रेष्ठ नहीं है, यह सब कुछ सत्य से ही धारण किया हुआ है, सत्य में ही सब कुछ प्रतिष्ठित है, सत्य से ही प्रतिष्ठा होती है। ॥25॥