न्यायामूर्ति महादेव गोविन्द रानाडे जब छोटे बालक थे, तो उनकी माँ ने उन्हे लड्डु देते हुए कहा, इसमें से एक जो तुम चाहो स्वयं ले लो और दूसरा अपने मित्र (जो नौकरानी का लड़का था) को दे दो। आकार में एक लड्डु बड़ा था, दूसरा छोटा। बालक रानाडे बड़ा लड्डु अपने मित्र को दे दिया| माँ ने आर्श्चय से पूछा, “तुमने ऐसा क्यों किया रानाडे ने उत्तर दिया, “तुम्हीं ने तो कहा था, जो तुम चाहो, अपने मित्र को दे दो |ऐसा था बालक रानाडे की उदारता।