हरिद्वार कुम्भ पर्व पर प्रगतिशील जातीय सम्मेलनों की धूम

January 1980

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सामाजिक-निर्माण की दिशा मैं एक साहसिक प्रयास

इस वर्ष हरिद्वारा में कुभ पर्व है। यह 22 फरवरी आगन्तुकों की संभावना आँकी गई है। हरिद्वार कुम्भ का माहात्म्य भी अधिक माना जाता है उपस्थिति भी अधिक होती है और आकर्षण भी अधिक रहता है।

इस अवसर शान्तिकुँज हरिद्वारा द्वारा अनेक वर्गों के बड़े सम्मेलन रखे गये है। इनमें कुछ ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र आदि वर्गों के आधार पर है। कुछ गुजरात, महाराष्ट्र आदि प्रान्तो के आधार पर। उनका उद्देश्य व्यक्ति, परिवार, समाज में सत्पवृत्तियों का संवर्धन और अवाँछनीयताओं का उन्मूलन है। मिशन की गतिविधियों को उन क्षेत्र समुदायों में किस प्रकार अग्रगामी बनाया जाय ? इस संर्न्दभ में भी गम्भीर विचार-विनमय इन सम्मेलनों में सहज सम्भव हो सकेगा। भावना घनिष्ठता और एकता की दृष्टि से आत्मीय जनों का मिलना-सब प्रकार सुखर्द और श्रेयस्कर ही होता है।

अपने देश में अनेकानेक कुरीतियाँ भिन्न-भिन्न जाति-उपजातियों में विभिन्न स्तर की है। किसी समुदाय में लड़के वाले दहेज माँगते है किसी में लड़की वाले। किसी में पर्दा प्रतिबन्ध है कि में तनिक भी नहीं । किसी में विधवा विवाह में छूट है-किसी में कठोर प्रतिबन्ध है। यह भेद एक ही गाँव-पड़ौस में बसे हुए लोगों के बीच जाति उपजातियों के आधार जड़ जमाये बैठै है। प्रथा परम्परायें एक जैसी होती, तो सार्वजनिक समाज-सुधार आन्दोनल सफल होता पर वर्तमान स्थिति में भिन्न स्तर की विकृतियों को ढूँढने और उखाड़ने के लिए वहीं पहुँचना होगा जहाँ उन्होंने अपने चित्र-विचित्र कोटर बना रखे है। जातियों के सम्मेलन अलग से बुलाने का यह कारण प्रान्तों की भिन्नता, भाषा-विभेद एवं वार्त्तालाप की सुविधा की दृष्टि है। यों भारतीय समाज की एकता और एक रुपता तो सभी को अभीष्ट है। विभेद और विग्रह कोई विचारशील नहीं चाहेगा। बढ़ना तो एकता की दिशा में ही है। वर्ग समुदायों की टोलियों में ही प्रगति के लक्ष्य तक बढ़ते चलना सम्भव हो सकता है। सेना की टुकड़ियों में गठन एकता की दृष्टि से कभी बाधक नहीं होता।

कुम्भ पर्व में आरम्भ होने वाले प्रगतिशील जातीय सम्मेलनों के साथ एक बड़ी सुधार प्रक्रिया यह जुड़ी हुई तलाश करना-ऐसे आयोजनों में सहज सम्भव हो जाता है। यह एक बहुत बड़ी कठिनाई का सरल समाधाना है। कितनी ही जातियों में इस प्रकार के विवाह भले लगते है और उसमें उस वर्ग के अधिकाँश लोगों की दौड़ धूप से बचने और थक कर निराश हो जाने की खिन्नता का सामना नहीं करना पड़ता।

युग निर्माण योजना के तत्वाधाना में होने वाले इन सम्मेलनो का लाभ यह है कि इनमें दहेज और धूम-धाम के अपव्यय से बचत हो जाती है। सभी जानते है कि मिशन का जोरदार उद्घोष यह है कि-खर्चीली शदियाँ हमें दरिद्र और बेईमान बनाती है। इस उद्घोष को चरितार्थ करने के लिए नितान्त सादगी के साथ ही परिपूर्ण सम्मान के आदर्श विवाहों का प्रचलन भारी सफलता के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न रुपों में सफल हुआ है। शान्तिकुँज में समपन्न होने वाले प्रगतिशील जातीय सम्मेलन में विवाह निश्चित होने की ही सहज सम्भावना है मध्य श्रेणी के सद्ग्रहस्थों को सम्बन्ध ढूढँने और खर्चीले साधन जुटाने में जो कुछ सहना पड़ता है उसे भुक्तभोगी ही जानते है। इन दोनों विपत्तियों से छूटकारा पाना एक भयानक संकट एवं अभिशाप से मुक्ति पाने की तरह है। इसी संभावना की आशा अपेक्षा इन आयोजनों से सहज ही की जा सकती है। अन्याय कुरीतियों का उन्मून और सत्प्रवृत्तियों का संस्थापन भी वह लाभ है जिसमें उपस्थित समुदायों में से प्रत्येक भी वह लाभ है जिसमें उपस्थित समुदायों में से प्रत्येक को अपने-अपने ढंग की विपत्तियों और विकृतियों से छूटकारा मिल सकेगा।

प्रगतिशील जातीय सम्मेलन पाँच-पाँच दिन के हैं। हर बड़ी जाति के बाद उसकी उपजातियाँ भी सम्मिलित होंगी। तत्सम समुदायों की अलग-अलग नहीं एक साथ ही बुलाया गया है। आवश्यतानुसार सम्मेलन में उनकी अलग-अलग गोष्ठियाँ-अलग-अलग समाधान ढुँढने और अलग-अलग कार्यक्रम बनाने क उद्देश्य से होती रह सकती है। पर एक बड़ा सम्मेलन एक ही रहेगा। एकता हमारा लक्ष्य है। अन्ततः पहुँचना है तो ‘वसुधैव कुटुम्कम’ के आदर्श पर ही। भले ही बड़ी छंलाग लगाने में कठिनाई होने पर एक-एक सीढ़ी पार करनी पड़े।

कुम्भ पर्व के दो महीनों में जो सम्मेलन रखे गये है। उनका निर्धारण इस प्रकार हुआ है- (1) ब्राह्मण वर्ग 5 से 6 मार्च सन् 80 (2) क्षत्रिय वर्ग 12 से 15 “ “ (3) गुजरात सम्मेलन (नवरात्रि) 17 से 25 “ “ (4) कुर्मी समाज 27 से 37 मार्च (5) वैश्य वर्ग 2 से 6 अपै्रल (6) सोनी समाज 7 से 12 अप्रैल (7) साहू समाज 15 से 18 “ “ (8) कायस्थ समुदाय 20 से 24 “ “ (9) यादव समाज 26 से 30 “ “ (10) परिणित वर्ग 1 से 5 मई “ “

जो समुदाय इनमे नहीं आ सकेंगे उनके लिए भविष्य में कुम्भ के बाद भी सम्मेलन बुलाये जाते रहेंगे।

ब्राह्मण वर्ग में सारस्वत, काव्यकुव्ज, गौढ़, सनाढ्य, औदीच्य, पाराशर, मुखजी, आयंगर आदि सभी उपजतियों और प्रान्तों के लोग समझे जायें। वैश्य वर्ग में अग्रवाल, ओमर, दोसर, गुप्ता, गहोई, आदि तथ कायस्थ् वर्ग में सक्सेना, निगम, भटनागर, माथुर, कुलश्रेष्ठ, श्रीवास्तव आदि सभी को आमन्त्रित किया जाय। इनके छोटे वर्ग ही सकते है। किंतु समय कम होने और अधिक समुदायों को उसी अवधि में आमन्त्रित करने की दृष्टि से कुल दस विभाजन ही रखे गये है। यों भी उपजातियों के दायरे जब तक चौड़े नहीं होते और वे चारों वर्गों के पेट में नहीं समा जाते-जब तक अपना देश, संगठित और समर्थ हो सकेगा यह कल्पना भी संदिग्ध ही बनी रहेगी। सम्मेलनों का निर्धारण अभी पूरी तरह नहीं हो पाया। मनोभूमि के श्री गणेश संस्कार की दृष्टि से प्रारम्भ उपजातियों से करना आवश्यक है। यदि विश्वकर्मा, लौहार, पुष्पद्य, नामदेव आदि चाहे तो अभी उनके भी पृथक-पृथक सम्मेलन रखे जा सकेंगे पर अगले दिनों इन सब को अपनी स्वायत्त सत्ता सहित चतुर्वर्ण में ही पुनः समाविष्ट करना होगा।

कुम्भ पर्व निकट है। विभिन्न जातियों और उपजातियों में विभक्त सारे भारतीय समाज को आमन्त्रित कर सकना संभव नहीं है। न उतना परिचय है और न साधन। इसलिए उपयुक्त उद्देश्य से सहमत सभी विज्ञ-जनों से अनुरोध है िकवे स्वयं आगे बढ़कर अपने वर्ग के तथा अन्य वर्ग के विचारवान् प्रगतिशील लोगों को सम्मिलित होने का आमन्त्रण दें और आग्रह करें। शान्ति कुँज के नव निर्मित गायत्री नगर में इस प्रकार के सम्मेलनों के लिए समुचित सुविधा बन गई है।

आगन्तुकों को सम्मेलन से एक दिन पूर्व शाम तक शान्तिकुँज हरिद्वारा में पहुँच जाना चाहिए। जिन्हें आना है पूर्व सूचना भेज कर अपने स्थान सुरक्षित करा लें । स्थान घिर जाने पर देर से आई सूचनाओं के लिए कुम्भ पर्व जैसी भीड़-भाड़ में स्थान सम्बन्धी कठिनाई खड़ी हो सकती है। प्रयत्न अभी से आरम्भ करने चाहिए ताकि सभी सम्मेलन पूर्ण सफलता के साथ सम्पन्न हो सकें। सर्म्पक साधने का पता-व्यवस्थापक-शाँति कुँज हरिद्वार।


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