जन्म समय के आधार पर परिजनों के स्तर का पर्यवेक्षण

February 1980

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नव सृजन का उत्तरदायित्व युग निर्माण परिवार के कन्धों पर प्रधान रुप से आया है अतएव यह भी निश्चित है कि देवात्माओं का बाहुल्य ही इसी परिकर में होगा । परिजनों में से आत्मिक स्तर पर कौन-कौन श्रेणी का है । इसकी जानकारी उनके जन्म समय को जानने से भी मिल सकती है । जन्म कुण्डली यदि सही बनी है तो उसके आधार पर मनुष्य के सम्बन्ध में रहस्यमय जानकारियाँ प्राप्त हो सकती हैं । अतएव यह सोचा गया है कि वर्तमान परिजनों की जन्म कुण्डलियों पर एक बार दृष्टि डाल ली जाय और इस आधार जिसमें कुछ विशिष्टता दृष्टिगोचर होती है उन्हें अधिक अनुदान देने, दिलाने का कुछ ऐसा उपक्रम किया जाय जिससे वे अपनी विशिष्टता को सार्थक ना सकें ।

खोज का एक नया आधार और भी प्रयुक्त किया जा रहा है, यह अत्यन्त सूक्ष्म है । जन्म समय मनुष्य की सूक्ष्म स्थिति तलाश करने का एक रहस्यमय मार्ग है । प्राचीन काल में यह विद्या अपने चरम उर्त्कष पर थी । उन दिनों व्यक्ति के संचित संस्कारों का इस आधार पर पता लगा लिया जाता था । अतएव यह जाने से कठिनाई नहीं पड़ती थी कि उसी सहज रुचि क्या है और वह किन प्रयोजनों में सरलतापूर्वक सफल हो सकता है ? भविष्य कथित एक बात है और भविष्य निर्धारण दूसरी । चिन्तन और पुरुषार्थ बदलना मनुष्य के अपने हाथ में, उन्हें बदलने पर किसी का भी भविष्य बदल सकता है। इसलिए उसमें स्थिरता नहीं होती । अस्तु सामान्य मनुष्यों के भविष्य कथन प्रायः गलत निकलते हैं । विशिष्ट व्यक्तियों की बात दूसरी है । ‘कम्प्यूटर’ भविष्य कथन करते हैं और वे सही निकलते हैं । आत्म शक्ति सम्पन्न व्यक्ति ऐसे दिव्यदर्शी भी हो सकते हैं । जो किसी स्तर के वातावरण, रुझान, प्रयास एवं परिस्थिति एवं संभावना का नपा तुला निर्धारण करके यह बता सके कि कौन व्यक्ति कब क्या किन परिस्थितियों में होगा ? किन्तु यह असाधारण बात है । जिसे असाधारण व्यक्ति किन्हीं असाधारण प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त करते हैं । आमतौर से भविष्य कथन न करना ही श्रेयस्कर माना गया है । किन्तु भविष्य निर्धारण के सम्बन्ध में यह बात नहीं है । हर व्यक्ति के भीतर कुछ मौलिक तत्व होते हैं उनका उपयोग अपने स्तर के अनुरुप् ही ठीक पड़ता है। लौहे के औजार और सोने से आभूषण बनाये जाँय तो भी बुद्धिमत्ता है । कपड़ा पहनने के और कागज लिखने के लिए ठीक है । यों उलट-पुलट करके कपड़े पर लिखा जा सकता है और कागज पहना जा सकता है, पर उसमें समय, श्रम और साधनों का अपव्यय ही होगा और परिणाम भी निराशाजनक ही निकलेगा । वस्तु की सँरचना देखकर उसका उपयोग करना जिस प्रकार बुद्धि संगत है, उसी प्रकार मनुष्य की आन्तरिक संरचना जानी जा सके, संचित संस्कारों का पता चल सक तो उसे ऐसी दिशा दी जा सकती है जिसमें उसे सरलातपूर्वक अधिक महत्वपूर्ण श्रेय मिल सकना सम्भव हो सके । जन्म समय के आधार पर स्तर का पता लगाने में तथ्य है। उस पुरातन विज्ञान को इन दिनों नये सिरे से उभारने और प्रयोग में लाने की आवश्यकता इन दिनों इसलिए पड़ रही है कि उच्च प्रखरता और प्रतिभा को तलाशा जा सके और उनका उपयोग तदनुरुप प्रयोजनों के लिए किया जा सके ।

इस प्रयोजन के लिए सभी परिजनों से उनकी पत्नि और बच्चों के सह जन्म समय की माँग की जा रही है । यह शान्ति कुन्ज हरिद्वार के पते पर भेजे जाने चाहिए । इनका निरीक्षण एवं पर्यवेक्षण विशिष्ट तरीके से किया जायगा। इनकी जन्म कुण्डलियाँ नई बनाई जायेंगी । अन्यों की बनाई हुई कुण्डलियाँ अपने पर्यवेक्षण के लिए काम न आ सकेंगी ।

खगोल विद्या अति कठिन विषय और विज्ञान है । उसमें गणित प्रायः वैसा ही करना पड़ता है, जैसा कि अन्तरिक्षयान छोड़ने तथा उन पर नियन्त्रण करने वाले ‘कम्प्यूटर’ करते हैं । ज्योतिष में उच्चस्ततरीय गणितज्ञों की आवश्यकता होती है । आज तो मात्र लकीर पिटती है । पंचाग हर क्षेत्र का अलग होना चाहिए कयोंकि स्थानों के हिसाब से ‘पलभा’ बदलता है । तद्नुसार हर स्थान के पंचाँगों में अन्तर पड़ना चाहिए। आज तो पंचाग बना देते हैं । उसी को दूर-दूर के पंडित प्रयोग में लाते हैं । गृह गणना का गणित अति कठिन है । उसे कर सकने के लिए एम0ए॰ से अधिक की ही गणितज्ञता होनी चाहिए और हर छोटे प्रयोजन के लिए पूरा गणित किया जाना चाहिए । आज ऐसी प्रतिभाओं को सर्वथा अभाव है। छपी सारणियों के आधार पर मिनटों में लम्बे गणितों का प्रयोजन पूरा कर लिया जाता है । ऐसी दशा में उनका सही होना कठिन है ।

ज्योतिष गणना में समय-समय पर हेर-फेर होते रहना आवश्यक है । पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा 360 या 365 दिन में नहीं करती । उनमें घण्टों, मिनट, सैकिण्ड़ों का अन्तर रहता है । वर्ष का सही गणित नहीं बन सका । मोटा अनुमान ही चला आ रहा है । जो आगा पीछा होता है, उसे अँग्रेजी कलैण्डर में महीनों की तारीखें न्यूनाधिक करके ठीक किया जाता है। भारतीय गणित में तिथियों का ही नहीं महीनों तक का क्षय एवं वृद्धि क्रम चलता रहता है । इतने पर भी सबकुछ सच नहीं बैठता । पाँच हजार वर्ष में ग्रहों की स्थिति में और पंचाग की गणना से इतना अन्तर पड़ जाता है कि तारकों और ग्रहों के उदय-अस्त में कई बार तो सप्ताहों तक का अन्तर देखा जाता है । जो ग्रह अस्त हो गया वह दृश्य रुप में उदय दीखता है । जिसके उदय का उल्लेख है वह कई दिन पहले अस्त हो चुका होता है । पुराने समय में दृश्य गणित के आधार पंचागों का समय-समय पर परिशोधन किया जाता था । अब वह स्थिति नहीं रही । ऐसे ही अन्धेरगर्दी चलती है और जन्म कुण्डलियाँ बनती हैं । उनके आधार पर किसी सही निर्ष्कष पर पहुँचना कठिन है । इसलिए जब यह नया कम हाथ में लिया ही गया है तो उसे पूरी जिम्मेदारी और तत्परता से ही पूर्ण किया जायगा । जिनका भी सूक्ष्म पर्यवेक्षण करना है उनकी कुण्डली स्वयं ही बनाई और स्वयं ही देखी जायगी । दिव्य आत्माओं का स्तर समझने और उन्हें पकड़ने का प्रयोजन इससे कम में पूरा नहीं हो सकता ।

इस प्रयोजन के लिए अपनी निजी वेधशाला बनाई जा रही है । उसमें आधुनिक और पुरातन दोनों ही आधार रहेंगे । इन दिनों बहुमूल्य ‘टैलीस्कोपों’ से यह काम पूरा होता है। प्राचीन काल में वेधशालाएं इस प्रयोजन को पुराने ढंग से कराती थीं । दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, अहमदाबाद, वाराणसी आदि की वेधशालाएँ प्रख्यात है । जयपुर नरेश ने इस सम्बन्ध में विशेष रुचि ली थी और विशेष निर्माण कराये थे । आज तो वे विद्याएँ एक प्रकार से लुप्त हो ही गई हैं और उन वेध शालाओं का उपयोग करना तो दूर-विनिर्मित यन्त्रों का उद्देश्य समझ सकने वाले तक ढूँढ़े नहीं मिलते । यह सारा बिखरा सरंजाम एक जगह इकट्ठा करना और उसमें पूर्वात्य पाश्चात्य खगोल विद्या का समावेश करना लगभग उतना ही कठिन है जितना ब्रह्मवर्चस का शोध प्रयोजन । ऐसे कार्य श्रमसाध्य, साधन साध्य एवं कष्ट साध्य होते हैं । इनके निर्माण में उच्चस्तरीय ज्ञान और प्राचीन आधुनिक का समन्वय करने के लिए अभीष्ट अध्यवसाय की भी आवश्यकता पड़ती है । जो हो, बड़ा काम हाथ में लिया है तो बड़ा प्रयोजन भी पूरा ही करना पड़ेगा । वेधशाला बनाने और आकश दर्शी दुर्बीन खरीदने का प्रयास आरम्भ कर दिया गया है । प्रस्तुत बसन्त पर्व को उसका भी शुभारम्भ दिन समझा जायगा । ज्योतिविज्ञान का उसे पुनर्जीवन कहा जाय तो अत्युक्ति न होगी ।

मूर्ति पूजा का खण्डन करने वालों के आक्रोश में इस प्रक्रिया के पीछे चलने वाला पाखण्ड एवं स्वार्थ साधन ही प्रधान कारण रहा है । तथ्य की दृष्टि से तो इसाईयों को क्रूस, मुसलमानों का संगेअसवाद, राष्ट्रवादियों का झंडा जब श्रद्धा के प्रतीक बन सकते हैं । चित्रों का उद्घाटन वन्दन हो सकता है तो मूर्ति पूजा से झगड़ने की क्या बात रही ? वह आक्रोश सैद्धान्तिक नहीं परिस्थितिजन्य है । यही बात खगोल है विद्या की यथार्थता उपयोगिता से कोई इन्कार नहीं कर सकता । पृथ्वी के वातावरण पर, प्राणियों, वनस्पतियों और पदार्थो पर ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति का प्रभाव पड़ता है, तो जन्म के समय पर अन्तर्ग्रही सूक्ष्म परिस्थितियों का प्रभाव व्यक्तित्व पर पड़ना अवास्तविक नहीं कहा जा सकता । विरोध वहाँ खड़ा होता है जहाँ उस विज्ञान की आधारभूत प्रक्रिया ग्रह गणित में अनजान लोग ऐसे ही तीर-तुक्का छोड़ते और बहकाने ठगने का धन्धा चलाते हैं । यदि उस दोष से ज्योतिर्विज्ञान को उचारा जा सके तो वह भी छै शास्त्रों में से एक अति महत्वपूर्ण शास्त्र है । इतना महत्वपूर्ण जिसे आयुविज्ञान से भी अधिक उपयोगी कहे जाने में कोई अत्युक्ति नहीं है ।

युग निर्माण परिवार में सम्मिलित प्रतिभाओं का स्तर तथा भविष्य जाने की दृष्टि से इस विज्ञान को नये सिरे से हाथ में लेना पड़ रहा है । उसमें तीन लाभ हैं, एक तो विज्ञान का स्वरुप निखरने से उसकी प्रामाणिकता एवं उपयोगिता का लाभ जन-जन को मिलेगा दूसरे मिशन को प्रतिभाएँ ढूँढने और उन्हें उपयुक्त दिशा देने में सफलता होगी । तीसरे जिसकी देखभाल की जायगी, वे अपने लिए सफलता पाने योग्य मार्ग का निर्धारण एवं अनुसरण कर सकेंगे । ज्योतिषियों की तरह फलदिश बताने, लिखने की बात तो नहीं बन सकेगी, पर अधिक सफल होने के लिए दिशा निर्धारण का लाभ तो सम्बद्ध लोगों में से हर किसी को मिल सकेगा ।

युग सृजन में आन्दोलन ही या लोक शिक्षण ही एक काम नहीं है । अनेक साधनों का उत्पादन, अभिवर्धन, अवस्था, काल, साहित्य, शिल्प अन्वेषण जैसे जनहित अनेकों काम हैं जिसमें लगना भी जन नेतृत्व जैसा ही महत्वपूर्ण काम है । अगले दिनों जहाँ अनेकों अवानीयताएँ निरस्त करनी हैं वहाँ अनेकों सत्प्रवृत्तियों उपयोगी साधनों को नये सिरे से बनाना बढ़ाना भी इसके लिए यह देखना होगा कि किन में क्या जन्म विशेषता है, उसे उभारना किन उपायों से सम्भव हो सकता है । और किसे क्या काम सकरने में सहज सफलता मिल सकती है । सही जन्म समय और सही गणित के आधार पर बनी हुई जन्म कुण्डलियाँ इस प्रयोजन के लिए बहुत सहायक हो सकती है ।

परिजनों से अपने-अपने कुटुम्बियों के जन्म समय भेजने के लिए कहा गया है । जन्म पत्रिका कोई न भेजें, क्योंकि उनमें से अधिकाँश गलत ही होगी । उन्हें देखने जाँचने में जितना श्रम पड़ेगा, समय लगेगा, उतने में नई कुण्डली सही गणित के आधार पर बन सकती है । इसके लिए अपने पास सभी आवश्यक ग्रन्थ एवं साधन मौजूद है । भविष्य फल बताने का पंडिताऊ ढर्रा अपने यहाँ नहीं चलेगा । जिस उद्देश्य के लिए यह खोज की जा रही है । उसी तक सीमित रहा जायगा । भाग्य एवं भविष्य बताने में अनेकों समस्याएँ उत्पन्न होती है । शुभ भाग्य कहना कर्मण्यता उत्पन्न करता है और अशुभ कहने से लोग डरते घबराते हैं । दोनों ही परिस्थितियों में सन्तुलन बिगड़ता है । और मनुष्य पुरुषार्थ पराणयता छोड़कर कल्पना जगत में विचरना आरम्भ कर देता है । अनावश्यक उत्साह सा भय उत्पन्न करना अपना उद्देश्य नहीं । इसलिए फलदिश तो नहीं बताये जायँगे पर भावी मार्ग दर्शन के लए उस आधार पर उपयुक्त परामर्श प्र्राप्त कर सकना, सरल एवं सम्भव हो जायगा । परिजन उससे इतना ही लाभ उठा सकेंगे, मिशन को अपनी खदान में मणि माणिकों की उपस्थिति का पता चल जायगा वही बड़ा लाभ है ।

जिनका आग्रह होगा, उनकी जन्म कुण्डलियाँ बनाकर भेजी भी जा सकती हैं । इसके लिए जवाबी लिफाफा और छपे कुण्डली फार्म के लिए बीस पैसा कुल पचास पैसा खर्च करने से काम चल जायगा । जो मँगाना चाहें वे पत्र के साथ पचास पैसे का टिकट भेज दें । कुण्डली बनाने में लगने वाले लम्बे परिश्रम की किसी से कोई फीस दक्षिणा नहीं ली जायगी । यह सेवा मात्र मिशन के परिजनों को-नियमित रुप से पत्रिकाएं पढ़ने वालों को-ही की जा सकेगी । अन्य लोगों के लिए इतना श्रम कर सकना शक्ति और समय की सीमा से बाहर चला जायगा । इसलिए परिवार से बाहर के लोगों से यह कष्ट न करने के लिए कहा गया है ।

इस सर्न्दभ में एक बात विशेष रुप से ध्यान रखने की है कि अगले दिनों इस विषय पर पत्र-व्यवहार असाधारण रुप से बढ़ जायगा । अस्तु उत्तर पाने की जिन्हें इच्छा हो वे जवाबी लिफाफा भेजें और पत्र के ऊपर ‘जन्म कुण्डली विभाग’ एक कोने पर लिख दिया करें । जवाबी पत्र भेजने के लिए सामान्य पत्र-व्यवहार में भी आग्रह किया जाता रहा है, पर इस कुण्डली प्रसंग में तो वह अनिवार्य ही कर दिया गया है । इसके बिना आर्थिक दबाव बढ़ जाने से उत्तर देने न बन पड़ेगा ।


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