गायत्री नगर में देव परिवार बसेगा जागृत आत्माएं उसमें प्रवेश पाने की तैयारी करें

February 1980

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जागृत आत्माओं में से अनेकों की एक आकाँक्षा रही है कि देव-लोक में देव-परिवार के सदस्य बनकर देव-जीवन जियें । देव-कर्तव्यों में निरत रहें और इसी शरीर में रहते देव-गति से मिलने वाले आनन्द का उपभोग करें ।

इस आकाँक्षा की पूर्ति के लिये ऐसे वातावरण की आवश्यकता थी जिसमें उपयुक्त साधन विद्यमान हों, जिसमें मार्गदर्शन और कार्यक्रम ऐसे हों कि अभीष्ट मनोरथ सुविधा पूर्वक पूरा होता चले ।

इस स्तर की सुविधा उत्पन्न करने के लिए शान्तिकुन्ज हरिद्वार में प्रयत्न किया गया है । इसी उद्देश्य को लेकर पहले ब्रह्मवर्चस् आश्रम नाया बगया और फिर गायत्री नगर बनाने की बात सोची गई । अब उसका इतना भाग बन गया है जिसमें देव वातावरण बनाना, देव-परिवार बसाना और तदनुरुप कार्यक्रम चलाना सम्भव हो सके । अस्तु पिछले कई वर्षो से स्थान न होने के कारण जिनके आग्रह को अनसुना किया या टाला जाता रहा है, अब उन्हें प्रथम बार यह हर्ष समाचार देना सम्भव हुआ है कि वे गायत्री नगर में ब्रह्मवर्चस् में बसने की बात पर गम्भीरतापूर्वक विचार कर सकते हैं । ताल-मेल न बैठे-दृष्टिकोणों में-स्वभाव में सामंजस्य न बने तो बात दूसरी है, अन्यथा स्थान न होने के कारण जो असुविधा थी उसे एक सीमा तक हल हुआ समझा जा सकता है ।

युग-सन्धि की इस पुण्यबेला में प्राणवान देवताओं को अन्तःकरण नवसृजन में प्रज्ञावतार के सहगामी बनने के लिए मचलता है । यह स्वाभाविक भी है और आवश्यक भी है । ऐसी विषम बेला में भी जो मूर्छित ही पड़े रहे उन्हें मृतक जीवितों में ही गिना जायेगा ।

प्रश्न उठता है कि क्या किया जाय ? कहाँ किया जाय ? इन प्रश्नों का उत्तर एकाकी कर्तृत्व का ताना-बाना बुनने से नहीं मिल सकता । एक व्यक्ति कितना भी समर्थ क्यों न हो-अपने बलबूते कुछ करने लायक काम नहीं कर सकता । महान प्रयोजन सामूहिक रुप से ही हो सकते हैं । युग निर्माण अभियान एक गढ्डा है जिसमें छोटी-बड़ी जल धाराएँ मिलती चली जायेंगी और अपनी संयुक्त शक्ति के बलबूते ही कुछ बड़ा काम करेंगी । इस दृष्टी से गायत्री नगर की ओर चल पड़ने और संयुक्त प्रयास से गोवर्धन उठाने और ग्वाल-बालों को श्रेय मिलने वाला उदाहरण ही हम प्रत्येक दूरदर्शी के लिए मार्गदर्शक हो सकता है ।

इस सुविधा का उद्घाटन विक्रमी संवत् 2037 के प्रथम दिन से किया जा रहा है । चैत्र नवरात्रि (17 से 25 मार्च) इसके लिए शुभ मुहूर्त समझा गया है । सन् 1980 से 2000 तक की युग-संधि का यह प्रथम वर्ष है । इस बीस वर्ष की अवधि में नव-निर्माण की चार पंचवर्षीय योजनाएँ बनी हैं । इस कार्यक्रम के अर्न्तगत जागृत आत्माओं में से कुछ चुने हुए लोगों का एक परिवार बसाने को भी सम्मिलित रखा गया है । “वसुधैव कुटुम्बकम्” की संरचना का एक छोटा नमूना गायत्री नगर में देव परिवार बसाकर किया जा रहा है ।

यहाँ निवास करने वालों को अपना जीवन-यापन उन चारों कार्यक्रमों को अपनाते हुए करना होगा जिन पर आत्म-कल्याण और लोक कल्याण के-स्वार्थ और परमार्थ के दोनों उद्देश्य भली प्रकार पूरे होते हैं । (1) साधना (2) स्वाध्याय (3) संयम (4) सेवा इन चार तथ्यों का समन्वय ही सच्चे अर्थो में जीवनोद्देश्य की पूर्ति कर सकता है । प्रस्तुत देव-नगर में बसने वालों को शारीरिक नित्यकर्मो के अतिरिक्त इन्हीं चार कार्यक्रमों में निरत रहना पड़ेगा । व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक स्थिति के अनुरुप उनके कार्यक्रम बना दिये जायेंगे ।

शरीर से जर्जर और रोगी, अशिक्षित, असंस्कृत एवं अनुशासनहीन, स्वभाव के संकीर्ण, विग्रही लोगों को बसाया न जासकेगा । जो अपनी शारीरिक, मानसिक स्थिति से इस आदर्श संरचना का गौरव बढ़ा सकें और इस वातावरण में अपने को ढाल सकें वे यहाँ रह सकेंगे । प्रयोग के लिए आरम्भ में चार महीने का अवधि रखा गयी है । इतने समय में जिनकी पटरी बैठ जाय वे फिर स्थायी रुप से भी आ सकेंगे । प्रयोग काल के चार महीनों में सभी को अपना निर्वाह व्यय स्वयं वहन करना होगा, इसके उपरान्त यदि आर्थिक स्थिति स्वावलम्बन जैसी नहीं है तो ब्राह्मणोचित निर्वाह के लिए मिशन की ओर से भी प्रबन्ध हो सकता है । पर यह होगा उन्हीं के लिए जिनका पिछला उपार्जन वस्तुतः नहीं है । संचित कमाई घर वालों को दे आने और निर्वाह सार्वजनिक धन से प्राप्त करने का ताना-बाना बुनने वालों को सफलता न मिल सकेगी । आर्थिक रुप से स्वावलम्बी या बिना स्वावलम्बी सभी को अपनी श्रम साधना से समान रुप से निरत रहना होगा । आलस्य और प्रमाद बरतने, अनुशासन न माने की छूट किसी को भी न मिल सकेगी ।

(1) ब्रह्मवर्चस्-शोध-संस्थान के कार्यक्रमों में स्वाध्याय एवं अनुसंधान का विशाल कार्यक्षेत्र पड़ा है । सुशिक्षितों एवं अध्ययनशीलों के लिये वह कार्य रुचिकर रहेगा । (2) गायत्री-नगर में कई स्तर के सत्र निरन्तर चलेंगे, जिनमें नवयुग के अनुरुप जीवन ढालने और कार्यक्रम अपनाने का प्रशिक्षण अनवरत चलता रहेगा । प्रशिक्षण क्षमता वाले इस विभाग में योगदान दे सकेंगे । (3) गायत्री शक्ति पीठें देश भर में बड़ी संख्या में बन रही हैं, जो एक आश्रम को चलाने एवं कार्यक्षेत्र को जगाने की प्रतिभा से सम्पन्न हैं, वे वहाँ थोड़े-थोड़े समय के लिए भेजे जाते रहेंगे । (4) जन-जागरण एवं लोकशिक्षण के लिये देश-विदेशों में अगणित छोटे-बड़े सम्मेलन होते रहते हैं, उनमें वक्ता एवं गायक की भूमिका निभा सकने वालों को उसमें उपयोग होता रह सकता है । (5) गायत्री-नगर में बसे परिवारों के बच्चों तथा महिलाओं को सुशिक्षित करने में सहायक अध्यापक-इसमें प्रौढ़ महिलाएँ भी आगे आ सकती हैं । इसी प्रकार के अन्याय कितने ही छोटे-बड़़ काम है जिनमें सेवा साधना भली-प्रकार होती रह सकती है। इसमें अपनी भाव भूमिका योग्यता बढ़ने और सेवा का आनन्द मिलता रह सकता है ।

जो परिवार के उत्तरदायित्वों से निवृत्त हो चुके हैं-उन्हें प्राथमिकता दी जायेगी । पत्नी समेत भी रहा जा सकता है । विशेष परिस्थितियों में छोटे कुटुम्ब वाले भी रह सकते हैं । बच्चों के प्रशिक्षण की गुरुकुल जैसी उपयुक्त व्यवस्था बनाई जा रही है । दिनचर्या सभी की ऐसी बनी हुई होगी जिसमें समय की बर्बादी तनिक भी न हो । नित्यकर्म के अतिरिक्त उपासना, स्वाध्याय और व्यक्तित्व को सुसंयत बनाने वाली संयम-साधना का उपक्रम ऐसा सुनियोजित रहेगा, जिसमें अव्यवस्था की असुरता को जीवन क्रम में प्रवेश पाने के लिये गुँजायश ही न रहे । अपने हाथ भोजन बनाने की सुविधा भी है और सामूहिक भोजनालय की व्यवस्था भी । दैनिक जीवन की अन्य आवश्यकतायें पूरी करने वाले सभी साधन गायत्री नगर में मौजूद हैं ।

वरिष्ठ, कनिष्ठ वानप्रस्थों, सेवानिवृत्तों, उपार्जन उत्तरदायित्वों से छुटकारा पाने वालों एवं अविवाहितों के लिये गायत्री नगर में निवास हर दृष्टि से सन्तोष और आनन्द से भरा पूरा रहेगा । अपवाद के रुप में छोटे परिवार वाले भी स्थान पा सकते हैं, जिनको अब तक मन-मसोस कर रहना पड़ा है । उपयुक्त वातावरण की तलाश में जो अनेक आश्रमों में भटकते और निराश होकर लौटते रहे हैं, उनके लिये यह घोषणा देवी-सन्देश की तरह है । जिनकी मनःस्थिति एवं परिस्थिति इस वातावरण में निवास करने को हो वे सर्म्पक स्थापित करें ।

जिन्हें आना है वे आवेदन के साथ अपना विस्तृत परिचय-अब तक के जीवन क्रम का विवरण, आयु, जाति, स्वास्थ्य, शिक्षा अनुभव, अभ्यास, सेवा, रुचि आदि की समस्त जानकारी विस्तार पूर्वक लिख दें । साथ ही यहाँ रहने पर निर्वाह-व्यय सम्बन्धी व्यवस्था का उल्लेख कर दें । इन आवेदनों पर विचार करने के उपरान्त ही किन्हीं को स्वीकृति दी जा सकेगी । स्मरण रहे प्रथम चरण में चार महीने की अस्थाई स्वीकृति ही मिलेगी । स्थायी निवास का निर्धारण उतने समय में बैठी ताल-मेल के आधार पर ही सम्भव हो सकेगा ।

गायत्री-नगर में देव-परिवार बसने की व्यवस्था उस लक्ष्य का प्रथम प्रत्यक्ष चरण है, जिसमें मनुष्य में देवत्व के उदय और धरती पर र्स्वग के अवतरण का संकल्प प्रकट किया जाता रहा है । इस दिव्य स्थापना का शुभारम्भ इसी चैत्र नवरात्रि से होने जा रहा है । स्थान सीमित है । भावभरी आत्मायें इसमें प्रवेश पाने की बात सोचें और तैयारी करें ।


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