आत्मा नदी संयम पुण्य तीर्थ सत्योदका शीलतटा दयोमिः तत्रावगाहं कुरु पाण्डु पुत्र न वारिणा शुद्धयति चान्तरात्मा।। (वेदव्यास)
अर्थात्- आत्मा नदी है। जिसमें संयम का पुण्य घाट है। सत्य ही जल है, शील किनारा है तथा दया की लहरें उठती रहती है। युधिष्ठिर तुम उसी में गोता लगाओ, भौतिक जल से शरीर धुल जाता है परन्तु अन्तःकरण नहीं धुलता।
न तोयपूत देहस्य स्नानमित्यमिधीयते। स स्नातो यस्य वै पुँसः सुविष्शुद्धं मनामतम्।। -स्कन्ध. पु.
अर्थात्- जल से देह के ऊपरी भाग को धो लेना ही स्नान नहीं है। स्नान तो उसका नाम है, जिससे बाहरी शुद्धि के साथ-साथ हम अपनी अन्तःशुद्धि भी करलें।