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May 1979

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यथागवाँ सर्वशरीरजंपवः पयोधरत्रि सहतीकेवलम् तथा परामखिएगोपि शाश्वतों विकासमाप्नोति से दिव्यदेशकः

जिस प्रकार दूध गौ के सब शरीर में व्याप्त लेने पर भी केवल स्तन द्वारा क्षरित होता है, उसी प्रकार परमात्मा के व्यापक होने पर भी विकास दिव्य देशों में होता है।


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