करनी कुछ दिखलाओ (kavita)

August 1978

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

कागज पर मत आदर्शों के नक्शे अधिक बनाओ। कथनी का युग बीत गया अब करनी कुछ दिखलाओ॥

हर चौराहे पर प्रचार का जमघट इतना घोर है। अर्थ हो गया शून्य, हवा में बस ध्वनियों का शोर है॥

भाषाओं की भाव-भंगिमा अन्तस्तल से दूर है। हर अक्षर बैखरी गिरा कर थककर चकनाचूर है॥

मूर्छित शब्दों को जीवन की संजीवनी पिलाओ। कथनी का युग बीत गया अब करनी कुछ दिखलाओ॥

सूर्य डूबने पर प्रकाश का हुआ खूब गुणगान है। फिर भी कोसों दूर क्षितिज से कल का नया विहान है॥

जी भर कोसा अन्धकार को, किन्तु न बनती बात है। अग्नि-परीक्षाएँ लेकर ही जाती काली रात है॥

दीपक बन जल सको कहीं पर इतना स्नेह जुटाओ। कथनी का युग बीत गया अब करनी कुछ दिखलाओ॥

धर्ममंच को कर्म-पंथ से सदियों का वैराग्य है। बन्द अँगूठी के खाँचे में बिकता सस्ता भाग्य है॥

सुना रहे पिंजरे के पंछी तरह-तरह के मन्त्र हैं। जीवित प्राणी से भी ज्यादा बोल रहे जड़ यन्त्र हैं॥

पग-पग पर दिग्भ्रान्ति गर्त हैं चिन्तन-शकट बचाओ। कथनी का युग बीत गया अब करनी कुछ दिखलाओ॥

छलता रहा सहज श्रद्धा को अब तक वाग्विलास है। पायी प्रगति बुद्धि ने, लेकिन खोया-जन-विश्वास है॥

डूब गयी निष्ठा की नौका उपदेशों की बाढ़ में। छिपकर जा बैठी निष्क्रियता भजन-भक्ति की आड़ में॥

गीता है कंठस्थ समूची, अर्जुन तो उपजाओ। कथनी का युग बीत गया अब करनी कुछ दिखलाओ॥

-डॉ0 हर गोविन्द सिंह

----***----

*समाप्त*


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118