प्रख्यात अँग्रेज कवि अलेक्जेंडर पोप की आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी नहीं थी, तथापि एक बार उन्होंने अपने मित्र हास्य व्यंग लेखक स्विफ्ट जोनाथन से बताया मुझे दूसरों को देने में अत्यधिक खुशी होती है, अतएव मैं चाहता हूँ कि प्रतिवर्ष 100 पौण्ड किसी जरूरतमन्द को देने का क्रम बनाऊँ।
लेकिन आपकी तो आर्थिक स्थिति नहीं है− जोनाथन ने प्रतिवाद करते हुए पूछा। इस पर पोप ने कहा, “आप यह क्यों नहीं देखते कि मेरे पास कुछ तो है, पर सैकड़ों ऐसे हैं जिनके पास कुछ भी नहीं है।”
पोप ने यह परम्परा प्रारम्भ की और मृत्युपर्यन्त जारी रखी। वे जब मरे तब उनके पास एक पाई भी शेष नहीं रही थी जबकि उस वर्ष के पौण्ड वे नियमानुसार दान कर चुके थे।
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