लूट−खसोट के अवरोध में सूक्ष्म शक्तियों की भूमिका

August 1978

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भूमिगत विशेषता एवं सम्पदा का निर्माण इस ताल−मेल के साथ हुआ है कि उस क्षेत्र के निवासी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रह सकें। अन्न, फल और औषधियों के बारे में प्रसिद्ध है कि जहाँ के जन्मे लोगों को उसी क्षेत्र का उत्पादन अनुकूल पड़ता है। द्रुतगामी साधनों से पदार्थों को सुदूर स्थानों तक भेजा जा सकता है, पर प्राणियों की, पदार्थों की संरचना में जो तत्व घुले रहते हैं उनका तालमेल न बैठ पाने से लाभदायक प्रतीत होते हुए भी हानिकारक बैठते हैं। क्षेत्रीयता की बात ऐसे ही कई दृष्टिकोणों के आधार पर बहुत महत्वपूर्ण तथ्य के रूप में सामने आती है।

खनिज पदार्थों एवं अन्य प्रकृति सम्पदाओं के सम्बन्ध में भी यही बात है। वे उस क्षेत्र के निवासियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर वितरित की गई हैं। उत्तरी ध्रुव के निवासी मनुष्यों और प्राणियों को शारीरिक संरचना तथा उपलब्ध पदार्थ सामग्री को देखते हुए सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि प्रकृति की वितरण व्यवस्था कितनी दूरदर्शितापूर्ण है। खनिज तथा अन्यान्य प्रकृति सम्पदाओं के सम्बन्ध में भी यही बात है।

क्षेत्रीय उपलब्धियों से लाभान्वित होने का प्रथम अधिकार वहाँ के भूमि पुत्रों का है। इसके बाद अन्यत्र के लोगों को उससे लाभान्वित होने का अवसर मिलना उचित है। इसी आधार पर देशों के क्षेत्रीय अधिकारों को मान्यता मिलती रही है। उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद की निन्दा का कारण यही है कि स्थानीय लोगों के लिए दी गई प्रकृति उपलब्धियों का अपहरण अन्यत्र के लोग करते हैं तो उससे अव्यवस्था एवं अनीति का फैलना स्वाभाविक है। ऐसे शोषण अपहरण का जहाँ विश्व न्याय के आधार पर विरोध होता है वहाँ ईश्वरीय व्यवस्था भी उसे निरस्त करने में सहायक होती है। प्रकृति प्रतिरोध का परिचय तब अधिक अच्छी तरह देखा जा सकता है जब समर्थों द्वारा असमर्थों के स्वत्वों का अपहरण करने वाली अनीति का आचरण उभरता है।

अमेरिका की भूमि पर मूल अधिकार उस देश के मूल निवासियों का ही माना जा सकता है। वहाँ की प्रकृति सम्पदा का लाभ भी उन्हीं को मिलना चाहिए। गोरे लोगों ने बलपूर्वक उस भूमि पर अधिकार कर तो लिया है, पर प्रकृति वहाँ के मूल निवासियों के पक्ष में ही अपना समर्थन देती है और लुटेरों को असफल बनाने वाले आधार खड़े करती रहती है। इस सम्बन्ध में वहाँ के स्वर्ण क्षेत्रों में गोरों की असफलता विशेष रूप से विचारणीय है।

अमेरिका के ऐरिजेना प्रान्त में कुछ खाई खड्डों से भरे सघन वन प्रदेश ऐसे हैं जो न केवल अगम्य और डरावने हैं वरन् उनमें रहस्य भरी विशेषताएँ भी पाई जाती हैं। यह रहस्य अलौकिकतावादियों और वैज्ञानिक शोधकर्ताओं के लिए एक पहेली बनी हुई है।

कहा जाता है कि उस प्रदेश में या तो आसमान से सोने के धूल कण बरसते हैं या फिर पहाड़ उसे अदृश्य लावे की तरह उगलते हैं। जो हो उस क्षेत्र की पहाड़ियों को सोने के पर्वत का नाम दिया जाता है और अनेक उस सम्पदा को सहज ही प्राप्त कर लेने के लालच में उधर जाते भी रहते हैं।

सम्पत्ति का लोभ जितना आकर्षक है उतना ही वहाँ के प्रहरी प्रेत पिशाचों के आतंक का भय भी बना रहता है। इस उपलब्धि के लिए अब तक सहस्रों दुस्साहसी उधर गये हैं। इनमें से अधिकांश को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा है। जो किसी प्रकार जीवित लौट आये हैं उनने सोने के अस्तित्व का तो आँखों देखा विवरण सुनाया है, पर साथ ही यह भी कहा है कि वहाँ अदृश्य आत्माओं का आतंक असाधारण है। वे सोना बटोरने के लालच से जाने वालों का बेतरह पीछा करती हैं और यदि भाग खड़ा न हुआ जाय तो जान लेकर ही छोड़ती हैं।

भूमिगत विशेषताओं का अन्वेषण करने जो लोग पहुँचे हैं उन्होंने इस क्षेत्र को रूस के साइबेरिया की ही तरह रेडियो विकिरणों से प्रभावित पाया है। रूसी वैज्ञानिक साइबेरिया के कई क्षेत्रों को किसी अज्ञात विकरण से प्रभावित मानते हैं और कहते हैं कि कभी अन्तरिक्ष या धरती से यहाँ अणु विस्फोट जैसी घटना घटी है। ऐसा किसी उल्कापात से भी हो सकता है। अमेरिकी लोग भी इस क्षेत्र की तुलना लगभग उसी रूसी प्रदेश से ही करते हैं। यहाँ एक 600 फुट गहरा और एक मील लम्बा खड्ड है। समझा जाता है कि यह किसी उल्कापात का परिणाम है। उसे क्षेत्र में से किसी उद्देश्य से जाने वाले व्यक्तियों पर सम्भवतः विद्यमान रेडियो विकरण ही आतंकित करने जैसा प्रभाव उत्पन्न करता होगा और उस अप्रत्याशित प्रभाव को भूत−पलीतों का आक्रमण मान लिया जाता होगा।

रहस्यवादियों का मत है कि योरोपियनों के इस क्षेत्र पर कब्जा जमाने से पहले आदिवासी लोग रहते थे। इनमें से अपैची कबीला मुख्य था। उसके साथ गोरों की झड़पें होती रहीं और इन मार्ग के कंटकों को हटाने के लिए अधिकर्त्ताओं द्वारा क्रूरतापूर्ण नर संहार किये जाते रहे। इन मृतकों की आत्माएँ ही प्रतिशोध से भरी रहती हैं और जो इधर से गुजरता है उस पर टूट पड़ती हैं।

कारण क्या है? यह तो अभी ठीक तरह नहीं समझा जा सका, किन्तु सोना बरसने और आतंक छाये रहने की बात सच है। गाथा और किम्वदन्तियाँ तो बहुत दिनों से प्रचलित थीं। वहाँ जाने और कुछ कमाकर लाने की बात भी बहुतों ने सोची, पर साहस सबसे पहले पाइलीन बीवर ने किया। वह अपने कुछ साथियों के साथ आवश्यक सामान लेकर गया और उस क्षेत्र में डेरा लगाया। दूसरे साथी तो सो गये, पर बीवर को नींद नहीं आई। वह अकेला उठा और कौतूहल में दूर तक चला गया। उस जगह सोने के टुकड़े पाये। ध्यान से देखा तो वे शत प्रतिशत सोने के थे। उसने बहुत से कड़े जमा कर लिये और जितना वजन उठ सकता था उतना साथ लेकर वापिस लौटा। लौटते ही उसकी खुशी आतंक में बदल गई। डेरा जला हुआ पड़ा था और वहाँ सामान्यतया मनुष्यों की राख भर बनी हुई थी। आँख उठाकर पर्वत की चोटी को देखा तो वहाँ से गिद्धों के झुण्ड की तरह भयानक छायाएँ उसकी ओर बढ़ती आ रही दिखाई पड़ी। डर के मारे वह बेहोश हो गया। बहुत समय बाद जब होश आया तो किसी प्रकार भाग चलने का उपाय निकाला और जैसे−जैसे घर वापिस आ गया।

इस घटना की चर्चा तो बहुत हुई, पर दुबारा उधर जाने का साहस किसी में भी नहीं हुआ। इसके 16 वर्ष बाद मैक्सिको का एक दुस्साहसी पैरलटा एक मजबूत और साधन सम्पन्न जत्था लेकर उधर गया। उस दल के प्रायः सभी व्यक्ति उसी प्रयास में मर गये केवल एक ही उनमें से जीवित लौटा, उसने सोने की उपस्थिति और मंडराने वाली विपत्ति के जो विवरण सुनाये उसने कौतूहल तो बहुत बढ़ाया, पर नये जत्थों के उधर जाने का साहस उत्पन्न नहीं किया।

छुटपुट रूप से अनेक व्यक्ति एकाकी अथवा टुकड़ियाँ बनाकर उधर जाते रहे, किन्तु किसी को जान गँवाने के अतिरिक्त और कुछ हाथ नहीं लगा। इसके बाद अमेरिका का ख्याति नामा डॉक्टर लवरेन कोमली का अभियान था। वे बहुत तैयारी और चर्चा के साथ गये थे। साधनों और जानकारी की जितनी आवश्यकता थी वह उनने जुटा ली थी। साथी बीच में से ही लौट आये और मायाविनी छायाओं के आतंक के भयानक विवरण सुनाते रहे। लवरेन ने खोज को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। वे अकेले ही बढ़ते गये। किन्तु सोने के स्थान पर पागलपन साथ लेकर वापिस लौटे। कुछ दिन भयभीत विक्षिप्तता के शिकार रहकर वे भी मौत के मुँह में चल गये।

इस स्वर्ण अभियान में जितने मृतकों की लाशें मिल सकीं इनके देखने से एक ही निष्कर्ष निकला कि वे सभी मौतें शरीर से खून चूस लिये जाने के कारण हुईं। इनमें से किसी भी देह में कहीं छेद नहीं पाये गये और न कहीं कपड़ों पर या जमीन पर रक्त बिखरा हुआ ही पाया गया फिर यह रक्त चूसने की क्रिया किसके द्वारा किस प्रकार की गई यह अभी भी उतना ही रहस्यमय बना हुआ है जितना पहले कभी था।

लगता है सूक्ष्म जगत में ऐसे किन्हीं अदृश्य प्रहरियों की चौकीदारी भी विद्यमान है जो न्याय का समर्थन और लूट−खसोट का प्रतिरोध करने के लिए अपनी जागरुकता का परिचय देते रहते हैं। सम्भवतः उस क्षेत्र की स्वर्ण सम्पदा की रखवाली वे ही करते हों। यह भी अनुमान लगाने की गुंजाइश है कि जिनके स्वत्वों का अपहरण किया गया, जिन्हें निर्दयतापूर्वक मारा गया उनकी आत्माएँ प्रतिशोध की भावनाएँ भरे हुए उस इलाके में निवास करती हों और उनकी रोकथाम से मुफ्त का धन पाने वालों को असफल रहना पड़ता हो। आत्माओं द्वारा न्याय के संरक्षण और अनौचित्य का प्रतिरोध एक तथ्य है। साथ ही प्रकृति व्यवस्था में स्थानीय भूमि पुत्रों के लाभान्वित होने की जो नीति मर्यादा है उसका उल्लंघन में ऐसे कारण उत्पन्न कर सकता है जैसे कि अमेरिका में स्वर्ण उपलब्ध करने वालों को भुगतने पड़े हैं।


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