सन्त खैयास (kahani)

August 1978

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एक दिन सन्त खैयास अपने शिष्य के साथ घोर निर्जन वन से होकर जा रहे थे। नमाज का समय होने से गुरु शिष्य दोनों चादर बिछाकर नमाज पढ़ने लगे। इसी समय अचानक शेर के दहाड़ने की आवाज आई। शेर के भय से शिष्य डर गया व तुरन्त नमाज छोड़ वह आत्म सुरक्षार्थ पेड़ पर जा बैठा, परन्तु खैयास अविचलित नमाज पढ़ते रहे। शेर आया व इधर-उधर सूँघकर चला गया नमाज पूरी होने पर सन्त चादर उठाकर चलने लगे। शिष्य भी पेड़ से उतरकर उनके साथ चलने लगे। थोड़ी ही दूर गए होंगे कि एक जंगली कुत्ता उधर से निकला। संत खैयास ने अपनी लाठी सम्हाली व कुत्ते के सम्भावित आक्रमण का प्रतिरोध करने की मुद्रा बना ली। शिष्य बड़ा आश्चर्य करने लगा। उसने पूछा- “आप वनराज शेर के आने पर तो तनिक भी विचलित नहीं हुए व इस कुत्ते को देख इतना डर क्यों गए।” सन्त खैयास ने कहा- “उस समय मेरे साथ मेरी रक्षार्थ खुदा था व इस समय तुम (मनुष्य) हो।

शिष्य ने इस बात का मर्म समझा। मनुष्य जब परमात्मा में दृढ़ आस्थावान हो पूर्ण समर्पण भाव से उसकी उपासना में रत रहता है तो उसमें अपूर्व साहस, शक्ति, आत्मशक्ति, आत्मबल का संचार होने लगता है। परन्तु जब मनुष्य अपना तादात्म्य परमात्मा से न रख अपने स्वयं के अहं तक ही सीमित रहता है तो क्षुद्र ही बना रहता है। अपने को बड़ी शक्ति में जोड़ देने से मनुष्य स्वयं भी एक बड़ी शक्ति बन जाता है।

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