जीवन काल की मनःस्थिति मरने के उपरान्त भी!

August 1978

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जर्जिया के सरकारी अभिलेखों में एक ऐसी तान्त्रिकी वृद्धा का उल्लेख है कि केवल चार महीने ही एक क्षेत्र में ठहरी किन्तु उतने ही दिनों में आफत बरसा कर रख गई।

बुढ़िया ने जिस दिन से उस खण्डहर में डेरा डाल उस दिन से पार्क के पक्षियों ने चहचहाना बन्द कर दिया वे गुमसुम घोंसलों में शाम को पहुँचते और उसी खामोशी के साथ बिना पत्ता खड़काये सवेरा होते−होते भाग खड़े होते। दिन भर उस क्षेत्र में कोई पखेरू कहीं भी दीख नहीं पड़ता। एक सप्ताह नहीं बीता कि उस उपवन में सूखी धुन्ध छाई रहने लगी। यह धुन्ध भी अजीब थी न तो उसमें कुहरे जैसी नमी थी और न धुँए जैसी घुटन। लगता था अन्धेरा ही हलकी बदली की शक्ल में इस इलाके पर छा गया है। हर चीज धुँधली दीखती। आँखों में बहुत खराबी आ जाने पर जिस तरह हर वस्तु धुँधली दीखती है ठीक वैसा ही माहौल उस इलाके पर घिरा रहने लगा।

इधर से निकलने वालों ने किसी अज्ञात भय से उधर से आना−जाना बन्द कर दिया जिन्हें जरूरी काम से उधर जाना पड़ता था, उनने एक दिन देखा कि वही बुढ़िया उस धुँध के ऊपर अधर में चल रही है और बिल्लियाँ उसके साथ हैं। अधर में चलना विचित्र था। एक ने दूसरे को दिखाया। सैकड़ों ने उसे देखा। सभी सन्न रह गये। यह सिलसिला कई दिन चला। नियत समय पर दर्शकों की भीड़ इकट्ठी हो जाती। इसके बाद वह बुढ़िया भी गायब हो गई और धुँध भी छट गई। लोगों का अनुमान था वह कोई तान्त्रिकी है और कई तरह की आफतें खड़ी कर सकती है।

चर्चा यह रहती थी कि बुढ़िया तान्त्रिकी का डेरा उसी खण्डहर में है। वह कहीं गुप्त प्रकट होती हुई डेरा डाले पड़ी रहती है। निदान लोगों ने उस खण्डहर को विस्मार कर देने की ठानी और समूह बनाकर कुदाल फावड़े लेकर वहाँ पहुँचे। समूह खण्डहर तक पहुँचने भी नहीं पाया कि एक भयंकर चक्रवात उसी क्षेत्र में प्रकट हुआ जिसने उन सभी को उछाल उलट कर रख दिया। कइयों के भारी चोटें लगीं। पेड़ उखड़ गये और आस−पास के झोंपड़े उजड़ गये। आश्चर्य इस बात का था कि वह तूफान खण्डहर उजाड़ने वाले लोगों के इर्द−गिर्द ही घुमड़ता रहा और पन्द्रह मिनट तक उन्हें त्रास देने के उपरान्त स्वतः समाप्त हो गया।

चार महीने तक यह उथल−पुथल चलती रही। बाद में अपने आप ही उस बुढ़िया और उसकी हलचलों का न जाने कहाँ पलायन हो गया।

यह बुढ़िया जीवितों की तरह दीखती थी किंतु वस्तुतः वह भी अदृश्य प्रेतात्मा। जानकार उसे मरण से पूर्व तान्त्रिक क्रियाकृत्यों से आजीविका कमाने आजीविका कमाने और सदा कुचक्र षड्यन्त्रों में संलग्न रहने वाली प्रकृति की बताते थे। मरने के बाद भी उसकी चेतना उसी प्रकार के डरावने नाटक रचती रही। जीवंत स्थिति जैसी ही गतिविधियाँ मरण के उपरान्त भी चलते रहने का यह एक प्रत्यक्ष उदाहरण सामने हैं।



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