यूनान में एक जमींदार (kahani)

August 1978

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यूनान में एक जमींदार था, इन्हें अपनी सम्पत्ति व जागीर का बड़ा अभिमान था, एक बार सुकरात के सामने वह अपने वैभव का बखान करने लगे व बताने लगे कि उसके पास कितनी बड़ी जायदाद है।

सुकरात पहिले तो चुपचाप सुनते रहे फिर उन्होंने दुनिया का नक्शा मँगाया। नक्शा फैला कर उन्होंने उस जमींदार को दिखाया व पूछा कि इस विश्व के नक्शे में वे देखकर बतावे कि यूनान देश कहाँ है। “यह रहा यूनान देश” जमींदार ने नक्शे में अँगुली रखकर दिखा दिया और अपना एटिका प्रान्त सुकरात ने पूछा! थोड़ा प्रयास करके उसने एटिका ढूँढ़ लिया व दिखा दिया।

सुकरात ने फिर पूछा “इसमें आपकी जागीर कहाँ है?” “महाराज आप भी कैसी बातें करते हैं, इतने बड़े विश्व में मेरी छोटी−सी जागीर की क्या बिसात? वह इसमें भला कहाँ दीख पायेगी।” जमींदार ने जवाब दिया तब सुकरात ने कहा−”भाई इतने बड़े नक्शे में जिस जागीर के लिए एक बिन्दु भी न रखा जा सके उस जरा−सी जमीन पर तुम इतना गर्व करते हो! जरा बताओ फिर उस अखिल ब्रह्माण्ड में उस जागीर का स्थान तो अत्यन्त ही क्षुद्र होगा, फिर इतनी क्षुद्रता के लिए कैसा गर्व?”

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