नई पीढ़ी को सुसंस्कृत बनाने की एक वर्षीय शिक्षा

March 1977

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नई पीढ़ी को सुयोग्य और सुसंस्कृत बनाने के उद्देश्य से छोटी प्रयोगशाला के रूप में कई वर्ष से एक प्रशिक्षण प्रक्रिया चलाई जा रही है। इस प्रयोग की सफलता पर हम सबको गर्व और संतोष ।

गायत्री तपोभूमि में युग-निर्माण विद्यालय लगभग दस वर्ष से चल रहा है। उसमें किशोरों एवं युवकों को आजीविका उपार्जन की क्षमता के साथ-साथ प्रतिभाशाली व्यवहारकुशल एवं सुसंस्कृत व्यक्तित्व बनाने की शिक्षा दी जाती है। स्थान की कमी के कारण प्रायः पचास छात्रों को ही प्रवेश मिल पाता है। पर उतने ही जैसे कुछ बन कर निकलते हैं उसमें उन्हें स्वयं को, अपने अभिभावकों को, तथा शिक्षा-व्यवस्था करने वालों को असाधारण संतोष रहता है। शिक्षण में लगा एक वर्ष हर दृष्टि से सार्थक हुआ माना जाता है।

युग-निर्माण विद्यालय का एक वर्षीय पाठ्यक्रम 1 जुलाई से आरंभ होता है। उसमें 18 वर्ष से अधिक आयु के छात्र लिए जाते हैं। शिक्षा मैट्रिक के समकक्ष होनी चाहिए। शारीरिक और मानसिक दृष्टि से निरोग, अनुशासन प्रिय एवं चरित्र निष्ठ छात्र ही लिये जाते हैं । शिक्षण में स्वास्थ्य रक्षा, मानसिक संतुलन, लोक-व्यवहार, पारिवारिक उत्तरदायित्व, अर्थ-व्यवस्था, सामाजिक कर्त्तव्य, धर्म, दर्शन और अध्यात्म जैसे जीवनोपयोगी अनेकों आवश्यक विषय पढ़ाए ही नहीं, हृदयंगम भी कराए जाते हैं। कहना न होगा कि यह शिक्षा जीवन में सर्वतोमुखी विकास की दृष्टि से अतीव उपयोगी सिद्ध हुई हैं। अब तक निकले हुए छात्रों में से अधिकांश ने अपने क्षेत्र में असाधारण कर्मठता और सज्जनता का परिचय दिया है।

इस प्रशिक्षण में स्वतंत्र आजीविका उपार्जन के कितने ही महत्त्वपूर्ण उद्योगों की शिक्षा सम्मिलित रखी गई है। (1) रेडियो, ट्रांजिस्टर नए बनाना तथा पुरानों की मरम्मत करना (2) बिजली का फिटिंग, मोटरो की बाइडिंग तथा पंखा, हीटर आदि यंत्रों की मरम्मत (3) प्रेस उद्योग की कंपोज, छपाई, वाइडिंग, व्यवस्था, संचालन, संबंधित कानून आदि की समान जानकारी (4) लघु उद्योग-सर्फ, धूपबत्ती, मोमबत्ती , मंजन, रबड़, स्टैंप तथा प्लाईवुड की तस्वीरें।

1 जुलाई से आरंभ होने वाले सत्र में जिन्हें प्रवेश पाना हो, वे युग-निर्माण विद्यालय मथुरा के पते पर अपने आवेदन पत्र यथासंभव जल्दी ही भेज दें। स्थान पूरे हो जाने से देर में आवेदन करने वालों को प्रायः हर वर्ष निराश ही रहना पड़ता है।

शान्तिकुञ्ज हरिद्वार की कन्या शिक्षण सत्र व्यवस्था भी एक वर्ष की है। उसमें 16 से अधिक आयु की, मैट्रिक के समकक्ष शिक्षा प्राप्त, निरोग एवं अनुशासन प्रिय लड़कियों को ही प्रवेश मिलता है। गृह प्रबंध, पारिवारिक सद्भावना बनाए रहने का ऐसा पाठ्यक्रम इस वर्ष में पूरा कराया जाता है, जिससे वे भावी जीवन में सुयोग्य गृह लक्ष्मी की भूमिका संपन्न कर सकें। संगीत में कई वाद्य यंत्रों की प्रवीणता-भाषण कला की कुशलता यह दो पाठ्यक्रम ऐसे हैं, जिनके आधार पर छात्रा नारी जागरण एवं अन्य क्षेत्रों में सुयोग्य समाज सेविका सिद्ध हो सकती है। गृह उद्योगों में (1) कपड़ा बुनना (2) सिलाई, कढ़ाई (3) स्वेटर , मोजे, बनियान आदि मशीनों से बुनना (4) प्रेस उद्योग की समग्र शिक्षा (5) टूट-फूट की मरम्मत (6) शाक वाटिका (7) डबल रोटी, बिस्किट आदि बनाना (8) खिलौना उद्योग(9) साबुन, सुगंधित तेल, शरबत, मोमबत्ती तरह-तरह की स्याही (10) रबड़ की मुहरें बनाना। इनके अतिरिक्त भी अन्य कई उद्योग छात्राओं को एक वर्ष में ही सिखा दिए जाते हैं

कन्याओं का एक वर्षीय शिक्षण 1 जुलाई से ही आरंभ होता है। आवेदन पत्र जल्दी ही शान्तिकुञ्ज हरिद्वार के पते पर भेजें जाएँ। सीमित स्थान भर जाने पर प्रवेश संभव न होगा।

*समाप्त*


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