सद्वाक्य

March 1977

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खेचर्या मुद्रया येन विवरं लम्बिकोर्ध्वतः। न तस्य क्षरते बिन्दुः कामिन्यालिडिडडतस्य च॥ यावद्बिन्दुः स्थितो देहे तावन्मृत्योर्भयं कुतः । यावद्बद्धां नभोमुद्रा तावद् बिन्दुनं गच्छति॥ चलितोऽपि यदा बिन्दुः संप्राप्तश्चय हुताशनम्। व्रजत्यूर्ध्व हृते शक्त्या निरुद्धो योनि मुद्रया॥ — मोरक्ष पद्धति

खेचरी मुद्रा द्वारा जो चन्द्रामत को छिद्राकाश से ही खींच लेता है, उसका नाम समागम में भी बिंदुपात नहीं होता। 68।

जब तक खेचरी मुद्रा दृढ़ है तब तक शुक्र व्योमचक्र से नीचे नहीं गिरता, वह स्व-स्थान में ही अवस्थित बना रहता है।69।

कदाचित वह नाभि से नीचे उतरकर जननेंद्रिय में चला भी जाए, तो भी उसे योनिमुद्रा द्वारा ऊपर उठाकर पुनः अपने ऊर्ध्व स्थान पर लाया जा सकता है।70।


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