साधना का सही स्वरूप समझा जा सके और उसे सही ढंग से सही व्यक्तियों द्वारा अपनाया जा सके तो उसके सत्परिणाम सुनिश्चित हैं । यह तथ्य साधना स्वर्ण जयंती वर्श में सर्व साधारण को समझाने का प्रयत्न किया गया और उसमें समुचित सफलता भी मिली। बसन्त पर्व 76 से बसंत 77 तक के एक वर्श में प्रायः एक लाख साधकों का नियमित रूप से साधना क्रम संकल्पपूर्वक संपन्न हुआ । इसमें 2400 करोड़ सामूहिक गायत्री जप अनुष्ठान संपन्न हुआ।
साधना स्वर्ण जयंती वर्ष का पिछला वर्श जपात्मक था। उसे पूर्वार्ध कहना चाहिए। पुरश्चरणों का उत्तरार्ध होमात्मक होता है। वर्तमान वर्ष में इस पक्ष को पूरा किया जा रहा है। हमारे 24 वर्श के 24 गायत्री महापुरश्चरणों की पूर्णाहुति गायत्री तपोभूमि के सहस्र कुण्डी गायत्री महायज्ञ में संपन्न हुई थीं। उसकी आहुतियाँ उस महायज्ञ में संपन्न हुई थीं और शेष आधे देश के कोने-कोने में संपन्न हुए एक हजार यज्ञों में पूर्ण हुई थीं। तब 24 महापुरश्चरणों में प्रायः 6 करोड़ जप हुआ था। इस बार सामूहिक पुरश्चरण में 2400 करोड़ जप हुआ है। उसकी पूर्णाहुति के लिए भी आहुतियाँ आवश्यक हैं। यह आयोजन एक स्थान पर नहीं होगा। जप जब विकेंद्रित रूप में हुआ है तो उसकी आहुतियाँ भी उसी प्रकार होंगी। इस वर्श गायत्री परिवार की समस्त शाखाओं, प्रतिभाशाली व्यक्तियों द्वारा अपने-अपने स्थान पर पाँच कुण्डी, नौ कुण्डी छोटे गायत्री यज्ञ संपन्न होंगे। इनके साथ ज्ञान यज्ञ की आवश्यकता पूर्ण करने वाले युग-निर्माण सम्मेलन अनिवार्य रूप से जुड़े रहेंगे। इन आयोजनों द्वारा व्यक्ति, परिवार और समाज के परिष्कार की प्रेरणाएँ जन-मानस में उभारी जानी है। बौद्धिक, नैतिक और सामाजिक क्षेत्रों में प्रखरता संपन्न करने के लिए प्रबल प्रयत्न किये जाते हैं। मनुष्य का जीवन दर्शन उत्कृष्ट होने पर ही व्यक्ति और समाज की आये दिन उलझने वाली अगणित समस्याओं का समाधान हो सकता है। अध्यात्म क्षेत्रों की यही पृष्ठभूमि रही है। राजतंत्र सामयिक विकृतियों के निराकरण एवं आवश्यकताओं की पूर्ति के साधन जुटाते हैं। उनकी योजनाएँ सामयिक होती हैं। धर्म-तंत्र स्थायी आधारों को हाथ में लेता है और स्थायित्व प्रदान करने वाले प्रयत्नों में जुटा रहता है। हमें विनम्र धर्म-सेवी के रूप में अपने उत्तरदायित्व निबाहने हैं। इसके लिए लोक-शिक्षण आवश्यक है। इस वर्ष जो 1000 आयोजन होने हैं उन्हें छोटे गायत्री यज्ञों और बड़े युग-निर्माण आयोजनों का सम्मिलित स्वरूप ही समझना चाहिए। इससे सूक्ष्म वातावरण में दिव्य चेतना भरने और जनमानस में सद्भावना भरने के उभय-पक्षीय प्रयोजन पूर्ण होंगे। जहाँ जिसके लिए जिस प्रकार संभव हो रहा है अपने-अपने यहाँ इस साधना वर्श की पूर्णाहुति उत्तरार्र्द्ध की तैयारी कर रहे हैं। यह हर्श और सन्तोश की बात है। इन प्रयत्नों का इन पंक्तियों द्वारा अभिवादन और प्रोत्साहन किया जा रहा है। इस दिशा में प्रस्तुत किये गये अनुदान बीज के रूप में गलेंगे तो सही पर उनके प्रतिफल सुविकसित अक्षय वट के रूप में पल्लवित होंगे यह भी निश्चित है। इन आयोजनों की तिथियाँ निर्धारित करने एवं प्रचारक भेजने के संबंध में गायत्री तपोभूमि मथुरा से ही संपर्क स्थापित करें।
अपने जीवन का प्रायः समूचा भाग गायत्री मंत्र के निखार एवं प्रसार में लग गया है जो बचा-खुचा है वह भी इसी के लिए समर्पित रहेगा। साधना स्वर्ण जयंती वर्श में भूतकाल की समीक्षा और भविष्य की रूपरेखा निर्धारित करने का अवसर मिला है। इससे हमारा उत्साह और प्रयास बढ़ना ही चाहिए। परिजनों का जो सहचरत्व सहगमन पिछले दिनों मिलता रहा है, भूतकाल की अपेक्षा भविष्य में उसकी अभिवृद्धि ही होगी ऐसी आशा और अपेक्षा की गई है।