मंसूर वेदान्ती थे। वह ‘अहं ब्रह्मास्मि’ को अपनी भाषा में ‘अनल हक’ कहते थे। यही उनका उपासना मन्त्र था।
खलीफा ने इसे अपने मजहब के विरुद्ध माना और उस रट को न छोड़ने पर कोड़ों से पीटने और एक एक अंग काट-काटकर मारने का हुक्म दिया।
वे पिटते रहे और हर चोट पर जोरों से ‘अनल हक’ कहते रहे। हाथ पैर कट जाने के बाद जब जीभ काटने की तैयारी जल्लाद ने की तो उन्होंने अन्तिम प्रार्थना की और कहा कि “ऐ मेरे परमेश्वर जिन्होंने मुझे इतनी पीड़ा पहुँचाई है उन पर नाराज मत होना, क्योंकि इन्होंने तुझ तक पहुँचाने की मेरी मंजिल को कम ही किया है। अब शूली की ऊँचाई पर चढ़कर अधिक नजदीक से तेरे दर्शन कर सकूँ, इसी का प्रबन्ध तो यह लोग कर रहे हैं।’’
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