नरक के निर्देशकों की आपात-बैठक एक गुप्त कक्ष में चल रही थी। अध्यक्ष थे महामहिम शैतान। मन्त्रणा का विषय था-नरक में आने वालों की संख्या में लगातार कमी रोकने का उपाय सोचना। क्योंकि यदि रफ्तार वही रही, तो नरक खाली हो जाने का भय था।
एक निर्देशक ने नहला मारा-‘‘चिन्ता की कोई बात नहीं। मैं जाता हूँ और मृत्यु लोक में प्रचार करता हूँ कि स्वर्ग का कहीं अस्तित्व ही नहीं।
“बेकार है।” शैतान ने मुँह बिचकाया-‘‘पहले भी इस फार्मूले पर जमकर काम किया जा चुका है। नतीजा कुछ नहीं निकला।” तब तक दूसरे ने दहला फेंका “हम प्रचार करें कि नर्क है ही नहीं।” “बकवास!”शैतान ने दुबारा मुँह बिचकाया। “लोग इतने मूर्ख नहीं, जितना आप उन्हें समझे हैं।”
थोड़ी देर तक मन्त्रणा कक्ष में मौन छाया रहा। सहसा एक तरुण निर्देशक उठा और विनम्र दृढ़ता के साथ बोला- “हम जाएँ और मृत्यु लोक में प्रचार करें कि लोगों! अभी तो तमाम जिन्दगी पड़ी है। जल्दी काहे की! काम की इतनी व्यग्रता क्यों? अभी तो आराम करें, जिन्दगी का मजा लें, मौज करें। अध्यक्ष ने प्रशंसा भरी दृष्टि उस तरुण पर डाली।
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