दो मुर्गे आपस में गुत्थमगुत्था (kahani)

October 1976

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कूड़े के ढेर पर दो मुर्गे आपस में गुत्थमगुत्था हो गये । अधिक तगड़े ने दूसरे को पराजित कर भगा दिया, तो आस-पास घूम रहीं सभी मुर्गियाँ उस के चारों ओर जमा होकर उसका यशोगान करने लगीं। प्रशंसा से पुलकित मुर्गे की यश-कामना और तेज हुई। उसने चाहा कि पास-पड़ौस में भी उसकी कीर्ति जानी-कही जाए। तीव्र आकांक्षा ने उसे प्रेरित किया और वह पास के खलिहान में चढ़ गया अपने पंख फड़फड़ाकर उच्च स्वर में बोला-‘‘में विजयी मुर्गा हूँ । मुझे देखो। मेरे समान बलवान कोई अन्य मुर्गा नहीं है।”

उसका अन्तिम वाक्य समाप्त होने के पूर्व ही ऊपर मंडराती चील की ऊँचे चढ़े उस एकाकी मुर्गे पर दृष्टि पड़ी। उसने एक झपट्टा मारा और अपने पंजों में दबोचकर मुर्गे को अपने घोंसले में ले गई।

---लियो टाल्सटाय

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