सही रूप उभरेगा उस दिन मानव के उत्थान का। जिस दिन होगा मिलन विश्व में धर्म और विज्ञान का॥
परम्पराओं की तुलना में तब विवेक ही वन्दित होगा। रूढ़िवाद की रात्रि मिटेगी, नव-प्रभात अभिन्दित होगा॥
गूँजेगा सहगान मानवी शक्ति और सद्ज्ञान का। जिस दिन होगा मिलन विश्व में धर्म और विज्ञान का॥
रंग, वर्ग जातीय भेद की टूटेंगी ओछी दीवारें। नहीं सत्य का हनन करेंगी सम्प्रदाय की विषम कगारें॥
जागेगा देवत्व देह धर, तोड़ कवच पाषाण का। जिस दिन होगा मिलन विश्व में धर्म और विज्ञान का॥
दिशाहीन उन्मत्त न होगी, भौतिकता की सिद्धि अधूरी। तय कर लेगा विकसित जीवन, आध्यात्मिक मंजिल की दूरी॥
होगा सदुपयोग मंगलमय, हर विभूति-अनुदान का। जिस दिन होगा मिलन विश्व में धर्म और विज्ञान का॥
स्वार्थ नहीं, परमार्थ बनेगा, चरम लक्ष्य जग में जन जन का। ईर्ष्या द्वेष, कलह-हिंसा से कलुषित क्षेत्र न होगा मन का॥
परिमार्जन पुरुषार्थ करेगा, बिगड़े भाग्य-विधान का। जिस दिन होगा मिलन विश्व में धर्म और विज्ञान का॥
स्वस्थ सृजन का प्रेरक होगा, श्रद्धा और तर्क का संगम। बुद्धि हृदय मिलकर छेड़ेंगे वाणी की सुन्दरतम सरगम॥
निखरेगा हर एक कला में रूप नये इन्सान का। जिस दिन होगा मिलन विश्व में धर्म और विज्ञान का।
-डॉ. हरगोविन्द सिंह
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*समाप्त*