रामकृष्ण परमहंस से उनके एक शिष्य गिरीशचन्द्र ने पूछा—मुझे किस प्रकार जीवनयापन करना चाहिए?
उत्तर में उन्हें बताया गया—अभी इधर (संसार) और उधर (भगवान) को देखते हुए चलो। दोनों में सन्तुलन बनाओ। आगे जब दोनों में से एक नष्ट हो जाय तब आगे की बात पर सोचना।