विचारों की प्रचण्ड शक्ति और प्रतिक्रिया

October 1975

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मनुष्य की आन्तरिक शक्ति यों में विचार शक्ति का महत्वपूर्ण स्थान है। यह शक्ति मनुष्य में नवजीवन एवं सत् प्रेरणा का संचार करती है। विचार शून्य व्यक्ति मृत के सदृश हो जाता है। उसकी चेतनता समाप्त हो जाती है। विचार मनुष्य का प्राण है। जीवन दायिनी शक्ति है। विचारों से ही मनुष्य का व्यक्ति त्व मुखरित होता है।

जितने भी मनुष्यों ने महानता प्राप्त की है। उनके मन में उच्च आदर्शों की ओर बढ़ने की तीव्र इच्छा थी। उन्होंने समाज में श्रेष्ठ आदर्शों की स्थापना हेतु अपने विचारों को समेट कर एक ही दिशा में नियोजित किया और सफलता उपलब्ध की। हम भी उन्नतिशील जीवन की पुस्तकें पढ़ें। ज्ञानार्जन के द्वारा अपने विचारों का परिष्कार करें। परिष्कृत विचारों में जीवन को बदल देने वाली अमोघ शक्ति सूक्ष्म रूप में छुपी रहती है।

विचार परिवर्तन से मनुष्य लघु से विभु बन जाता है। विचारों में बड़ा जादू है। वह हमें उठा सकते हैं और गिरा भी देते हैं। दुःख एवं निराशा के घातक विचार मन में फटकने न दें। केवल हितकर विचारों को ही मन में रखें। आशा जनक विचारों में अद्भुत शक्ति होती है। आप अपने मन में यह विचार कर लीजिए कि “आपका भविष्य उज्ज्वल ही होगा” तो आप देखेंगे कि खुशहाली आपके पास फुदकती रहेगी और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसका विलक्षण प्रभाव पड़ेगा।

मनुष्य के विचारों में ही सुख−दुख, नरक−स्वर्ग, अच्छा−बुरा आदि सब का निवास होता है। जिधर अपने विचारों को व्यक्ति मोड़ दे देता है वैसी ही प्रतिच्छाया उसे अपने आसपास के वातावरण में दिखाई देने लगती है। उसका कारण मनुष्य के अन्दर ही होता है बाहर नहीं। संसार में जो शान्ति और सुख आपको परिलक्षित होता है, वह हमारी अन्दर की सुख−शान्ति है। यदि संसार में हमें अशान्ति और दुःख जान पड़ता है तो कारण स्पष्ट है कि हमारा मन अशान्त और दुःख के विचारों का शिकार है। सुख दुःख और कुछ नहीं, मनुष्य के अन्दर उठने वाले विचारों की प्रतिक्रिया का फल होता है। हरा चश्मा लगाने से हमें सब जगह हरा−भरा दीखने लगता है। बसे ही व्यक्ति के अन्दर जिस तरह के विचारों का बाहुल्य है वैसा ही वह सब जगह देखेगा।

दृश्य और अदृश्य का ज्ञान विचारों से होता है। संसार में अच्छा या बुरा जो कुछ भी है। वह विचारों की ही देन है। संसार का वास्तविक ज्ञान उत्पन्न करने के लिए विचार शक्ति चाहिए और सुखी, सभ्य सुसंस्कृत समाज के लिए श्रेष्ठ विचार चाहिए। पानी के बुलबुलों की तरह प्रतिक्षण विचार मनुष्य के मस्तिष्क में उठते रहते हैं। प्रश्न उठता है कि क्या यही विचार मनुष्य जीवन की दिशा बदल सकते हैं? नहीं वरन् महान् उद्देश्य के लिए उत्पन्न हुए स्थिर एवं दृढ़ विचार ही अनुपम शक्ति सम्पन्न होते हैं। उनसे ही मनुष्य को नयी स्फूर्ति एवं नयी दिशा मिलती हैं।

एक विचारवान व्यक्ति हजारों−लाखों व्यक्ति यों का मार्ग दर्शन कर सकता है। साधन−हीन होते हुए भी विचार की सम्पदा से सम्पन्न व्यक्ति उन्नति एवं प्रगति करता रह सकता है। मनुष्य सोचता है कि व्यावहारिक जीवन में धन की आवश्यकता होती है। इससे मनुष्य खुश रह सकता है किन्तु धन होते हुए भी व्यक्ति के विचार विकृत हैं तो वह सुखी नहीं रह सकता है। सुख एवं शान्ति की चाह हो तो श्रेष्ठ विचारों की पूँजी अपने पास एकत्रित करनी चाहिए। सुख शान्ति न तो संसार की किसी वस्तु में है न व्यक्ति में उसका निवास तो मनुष्य के अन्तःकरण में है धन−दौलत से हम क्षणिक सुख प्राप्त कर सकते हैं अनन्त आनन्द की चाह है तो हमें श्रेष्ठ विचारों की उपासना करनी होगी और उन्हें अपनी आदत में लाना पड़ेगा।

विचार रूपी साँचे में ढलकर ही व्यक्ति के व्यक्ति त्व का सर्वतोमुखी विकास होता है। व्यक्ति का कैसा व्यक्ति त्व है यह उसके विचारों से ही पता चल जाता है। मनुष्य के अन्दर भले−बुरे दोनों तरह के विचार होते हैं। जब मनुष्य निराशामय एवं अन्धकारमय विचारों के जाल में फँस जाता है तो उसकी सुख−शान्ति विलीन हो जाती है। उसे दुनिया नारकीय लगने लगती है। यह विचार मनुष्य की सुख एवं शान्ति के शत्रु होते हैं। इन विचारों से छुटकारा पाने का साधन कहीं अन्यत्र नहीं मनुष्य के अन्दर ही विद्यमान होता है। बुरे विचारों को दूर कर दिव्य विचारों को धारण करना प्रारम्भ कर देने से मनुष्य का जीवन उत्कृष्ट बन जाता है।

मनुष्य का आदर्श ही उसके जीवन को वास्तविक जीवन बनाता है। जीवन को ऊँचा उठाने के लिए आदर्श विचारों का संग्रह आवश्यक है। मनुष्य के अन्तरंग से निकली हुई विचारों की पावन ज्योति ही उसका पथ आलोकित करती है। यूँ तो व्यक्ति के मन में अनेक विचार उठते और विलीन होते रहते हैं किन्तु आदर्श विचार ही मनुष्य को आशक्त बनाते हैं। जीवन की दिशा बदल देने में सक्षम होते हैं।

अपने आदर्श तक पहुँचने के लिए व्यक्ति को अपने सारे विचारे उसी उद्देश्य की पूर्ति में लगा देने चाहिए क्योंकि बिखरे रहकर भी विचारों का महत्व समाप्त हो जाता है, जिस प्रकार झाडू की अलग−अलग सींकें व्यर्थ हैं उसका कोई उपयोग नहीं है उसी प्रकार विचारों का बिखराव भी अपना कुछ स्थान नहीं रखता है। लक्ष्य की ओर मन, वाणी और कर्म का समन्वय करके बढ़ना चाहिए तभी सफलता हाथ लगती है।

मनुष्य प्रत्येक कार्य विचारों से प्रेरित होकर करता है। हवाई जहाज आकाश में उड़ता है और कुतुबनुमा की सुई से उसे यह पता लगता है कि उसे किस दिशा में चलना है और वह सैकड़ों मील लम्बा रास्ता पार कर जाता है। विचार कुतुबनुमा की सुई के सदृश है। वह मनुष्य को इंगित करते हैं कि तुम्हें किस दिशा में चलना चाहिए। मनुष्य को ज्ञान और विचार की सम्पदा देकर भगवान ने भेजा है। विचार न होते हुए रीछ, बंदरिया की तरह धूम रहा होता। संसार में जो सुन्दरता दिखाई देती है वह मनुष्य के विचारों का परिणाम है। विचारों का उपयोग निस्संदेह अतुल्य है।

विचारों को जिस दिशा में लगा दिया जाता है उसी ओर प्रगति होने लगती है और सफलता का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। इन्हीं विचारों को यदि ईर्ष्या, द्वेष, शत्रुता, निराशा आदि में लगाया जाय तो विचार शक्ति का अपव्यय होता है और उसका अहितकर परिणाम मनुष्य को भोगना पड़ता है।


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