गौ दुग्ध की उपयोगिता समझी जाय

October 1975

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मनुष्य शरीर के लिए जिन पोषक पदार्थों की आवश्यकता है, उनका सन्तुलित सम्मिश्रण गोदुग्ध में ही पाया जाया है। अनेक स्तर के उपयोगी खाद्य−पदार्थ ढूँढ़ने के स्थान पर यदि अकेला गोदुग्ध ही आवश्यक मात्रा में मिलता रहे तो स्वास्थ्य संरक्षण की समस्या सरलता पूर्वक हल हो सकती हैं।

पोषण विशेषज्ञों के अनुसार हर व्यक्ति को 10 ओंस दूध तो प्रतिदिन मिलना ही चाहिए, किंतु अपने देश में वह प्रति व्यक्ति पीछे 5 ओंस भी उपलब्ध नहीं होता। संसार में अन्यत्र इस सम्बन्ध में समुचित ध्यान दिया गया हैं। विकासवान देशों ने अपने यहाँ दूध का उत्पादन पर्याप्त बढ़ाया हैं। दुनिया के दो तिहाई देश जिनमें भारत भी सम्मिलित है बहुत कम दूध प्राप्त करते हैं। एक तिहाई आबादी के विकासवान देशों ने पिछड़े देशों की तुलना में कई गुना दूध उत्पादन बढ़ाया है। संसार में कुल 340 लाख मैट्रिक टन दूध प्रतिवर्ष उत्पन्न होता है। यदि इस संसार के हर मनुष्य को बराबर−बराबर बाँटा जा सके तो प्रति व्यक्ति पीछे वह आधा लीटर उपलब्ध हो जायगा। संसार के सभी देश अपने−अपने यहाँ दुग्ध का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील हैं।

हर व्यक्ति पीछे प्रतिदिन दूध की खपत का औसत कुछ देशों में इस प्रकार है—कनाडा 57॥, फिनलैंड 55, न्यूजीलैंड 57।, आस्ट्रेलिया 45, ब्रिटेन 42॥, जर्मनी 35, दुर्भाग्य से भारत में प्रति व्यक्ति पीछे यह खपत मात्र 5 ओंस है। यही कारण है कि जहाँ न्यूजीलैंड की औसत आयु 67 वर्ष अमेरिका की 62 वर्ष, डेनमार्क की 56 वर्ष है वहाँ भारतवासी औसत आयु की दृष्टि से 27 वर्ष तक ही पिछड़े पड़े हैं।

गिरे हुए स्वास्थ्य की समस्या का समाधान करने के लिए मात्र चिकित्सा साधन बढ़ाने पर्याप्त न होंगे वरन् पोषक खाद्य−पदार्थों के उत्पादन एवं उपयोग के लिए आवश्यक साधन जुटाने होंगे। इसके लिए गौ पालन और दुग्ध उत्पादन को प्राथमिकता देनी पड़ेगी।

गाय के दूध में सम्मिश्रित नाइट्रोजन वर्ग के पदार्थों में लोक्टोक्रीम, क्रिएटिन, यूरिया, थियोसायनिक एसिड, ओरोटिक एसिड, हाइपोक्सेन्थीन, जेन्थीन, यूरिक एसिड, कोलिन, मेथिलग्वेनिडिन, ट्राइमेथिलेमिन, एमोनियम साल्टस आदि प्रमुख हैं।

फास्फरस वर्ग के पदार्थों में फ्रीफास्फेट लेसियिन, सिफेलिन, डाइमिनो मोनोफास्फेराइड आदि का बाहुल्य हैं। गोदुग्ध में 50 स्तर के पदार्थ लगभग 150 रूपों में मिले रहते हैं।

भैंस के दूध में उपरोक्त पदार्थों में से आधे भी नहीं है। चिकनाई की मात्रा अधिक रहने से वह गाढ़ा और स्वादिष्ट अवश्य लगता है, उसमें घी और खोया भी अधिक मिलता है; पर प्रोटीन, विटामिन और खनिज पदार्थों की वह मात्रा अतीव न्यून हैं जो गाय के दूध में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती है।

भारत में गौ वंश के नाश का सबसे बड़ा कारण हैं गाय के दूध को पतला देखकर उसे महत्वहीन मानना और भैंस के दूध की चिकनाई पर लट्टू रहना। हम गौ माता की जय बोलते हैं और भैंस माता का पूजन करते हैं। जब तब गोदुग्ध की महत्ता न समझी जायगी और उसे ही प्राथमिकता न मिलेगी तब तक दुबली उपेक्षित गायें आर्थिक दृष्टि से लाभदायक न रहने के कारण खुल्लमखुल्ला या लुके−छिपे छुरी के घाट ही उतरती रहेंगी। आवश्यकता इस बात की है कि गौ पालन को लाभदायक व्यवसाय बनाया जाय। इसके लिए गौरस को अपनाये जाने की बात जन मानस में उतारी जानी चाहिए। जिसकी माँग होती हैं उसका सम्वर्धन होता है। जब सर्वत्र गौ दुग्ध और गौ घृत ही माँगा जाय तो कोई कारण नहीं कि बड़े पैमाने पर गौ पालन का उद्योग आरम्भ न हो जाय और उसकी नस्ल समुन्नत न होने लगे। कहना न होगा कि सुविकसित नस्ल की गायें संसार भर में कहीं भी नहीं कटती फिर भारत में ही उसे कोई काटकर क्या करेगा। जब हाथी, ऊँट, घोड़े, खच्चर आदि माँस की दृष्टि से महँगे कटने के कारण कसाई के यहाँ नहीं जाते तो गौ वध की मूर्खता ही कोई कैसे करेगा?

देश की आर्थिक और आरोग्य समस्या का समाधान करने के लिए गौ रक्षा आवश्यक है, पर वह सम्भव तभी हो सकती है जब जन−साधारण को गौ दुग्ध का महत्व समझाया जाय और मात्र उसी के सेवन के लिए सहमत किया जाय।


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