अपनों से अपनी बात - अगले वर्ष के दो महत्वपूर्ण कार्यक्रम

October 1975

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आकाश अखण्ड−ज्योति परिवार को अपने जीवन−क्रम में व्यक्ति गत आवश्यकता पूर्ति के अतिरिक्त देश, धर्म, समाज एवं संस्कृति के प्रति भी कर्त्तव्य−पालन को स्थान देना चाहिए। समय की यही माँग है।

अगल वर्ष के लिए हम लाग अपने सेवा कार्यों में महिला जागरण और जन-सम्पर्क कार्यक्रमों पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित करे। इन प्रयोजनों में अपना योगदान देकर यह सिद्ध करें कि अखण्ड-ज्योति के पाठक मात्र अध्ययन में रुचि रखने वाले ही नहीं वरन् अपने समय की सबसे बड़ी आवश्यकता- व्यक्तित्वों को परिष्कृत करने और सृजनात्मक प्रवृत्तियों के अभिवर्धन में भी दत्तचित्त रहने वाले लोकसेवियों की पंक्ति में भी खड़े हैं। अगले वर्ष के दो कार्यक्रम इस प्रकार हैं-

महिला जागरण अभियान:−

आधी जनसंख्या को मानवी अधिकार दिलाने और इस समाज की प्रगति में समुचित योगदान दे सकने योग्य बनाने की दिशा में चल रहें अपने अभिनव प्रयत्नों अधिकाधिक गतिशील बनाया जाय।

हम लोग चाहें तो अपने संपर्क क्षेत्र की महिलाओं के प्रगतिशील प्रयोजनों के लिए एक छोटे संगठन में आसानी से सम्बद्ध कर सकते है। उसमें सजीवता तब आवेगी जब साप्ताहिक सत्संगों को क्रम नियमित रूप चलने लगेगा और घर−घर में परिवार गोष्ठियों के लिए उत्साह उत्पन्न होगा।

महिला जागरण अभियान में अखण्ड−ज्योति परिवार के हर सदस्य को भाग लेना चाहिए और नारी उत्कर्ष के महान प्रयोजनों में अपना यथासम्भव योगदान प्रस्तुत करना चाहिए। क्या किया जाय और कैसे किया जाय? इस जिज्ञासा का समाधान समुचित विस्तार के साथ प्रस्तुत करने के लिए पिछले तीन महीने से “महिला जागृति अभियान” पत्रिका शान्ति−कुञ्ज, सप्त सरोवर हरिद्वार से निकल रही है। उसका पाठक बनना चाहिए। पत्रिका का वार्षिक चन्दा छह रुपया है।

सभी संगठित शाखाओं को सन् 76 में अपने वार्षिकोत्सव महिला सम्मेलन के रूप में करने चाहिए और सभी को अपने यहाँ प्रौढ़ पाठशालाएँ चलानी चाहिए; ताकि न केवल साक्षरता प्रसार का वरन् व्यक्ति निर्माण, परिवार निर्माण एवं समाज निर्माण के सभी पक्षों के प्रशिक्षण का विस्तार भी हो सके। इन पाठशालाओं का स्वरूप क्या हो और उन्हें कैसे चलाया जाय, तथा नारी जागरण की अनेकानेक रचनात्मक एवं सुधारात्मक गतिविधियों का संचालन किस प्रकार किया जाय इसका प्रशिक्षण करने के लिए तीन−तीन महीने के सत्र शान्ति−कुञ्ज में चलते हैं। अपने घरों की समझदार तथा कम से कम आठवें दर्जे की योग्यता रखने वाली 18 वर्ष से अधिक आयु की महिलाओं एवं लड़कियों को भेजना चाहिए। इससे उनकी व्यक्ति गत प्रतिभा एवं सृजनात्मक क्षमता का विकास होगा और वे समाज सेवा की दृष्टि से भी बहुत कुछ कर सकने में समर्थ हो सकेंगी। नारी जागरण का विशिष्ठ प्रयोजन पूरा कर सकने वाली प्रौढ़ महिला पाठशाला का संचालन तथा अध्यापन कर सकने की योग्यता इन सत्रों की छात्राओं में उत्पन्न हो जाती है। अपने परिवारों में से एक−एक महिला इस प्रशिक्षण में सम्मिलित हो सके, इसके लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। नारी जागरण अभियान को सफल बनाने के लिए इन प्रशिक्षित महिलाओं द्वारा ही सुयोग्य कार्यकर्ता की भूमिका सम्पन्न की जा सकेगी। उज्ज्वल भविष्य की आशा का बहुत बड़ा केन्द्र इस प्रशिक्षण व्यवस्था को समझा जाना चाहिए। सम्भव हो सका तो उसका प्रान्तीय एवं क्षेत्रीय विस्तार किया जायगा।

शाखाओं के वार्षिकोत्सव महिला सम्मेलनों के रूप में अगले वर्ष होने ही चाहिए। इससे स्थानीय जनता को मिशन की जानकारी, उपयोगिता समझने तथा उसमें भाग लेने की प्रेरणा मिलेगी। जन−मानस में उत्साह और उमंग उत्पन्न करने तथा सहयोग जुटाने में यह सम्मेलन निश्चित रूप से बहुत सफल रहेंगे। इन आयोजनों से जो वातावरण उत्पन्न होगा उससे न केवल नारी जागरण की दिशा में वरन् नैतिक, बौद्धिक एवं सामाजिक परिष्कार की प्रत्येक धारा को तीव्र करने में भी इन सम्मेलनों से योगदान मिलेगा। इसलिए इनके लिए अभी से तैयारी की जानी चाहिए। जनवरी 76 से यह सम्मेलन शृंखला विधिवत चल पड़ेगी।

सम्मेलनों में शान्ति−कुञ्ज में संगीत, प्रवचन एवं मार्ग−दर्शन के लिए प्रशिक्षित प्रचारिकाओं का एक जत्था मिशन का प्रतिनिधित्व करने के लिए पहुँच सके इसके लिए व्यवस्था बनाई जा रही है। जत्थे में 4 प्रचारिकाएँ एवं 1 प्रबुद्ध संरक्षक इस प्रकार पाँच व्यक्ति रहेंगे। एक क्षेत्र के सभी सम्मेलनों को शृंखलाबद्ध किया जायगा और एक ही दौरे में उन सबको निपटा दिया जायगा। यह प्रयोजन अपनी सवारी होने पर ही पूरा हो सकता है। इसलिए फिलहाल डीजल से चलने वाली एक जीप गाड़ी का किसी प्रकार प्रबन्ध हुआ है अस्तु एक ही जत्था भेजने की बात बनी है। यदि कुछ और गाड़ियों का प्रबन्ध बन पड़ा तो अधिक जत्थे भी भेजे जा सकते हैं अधिक सम्मेलनों में शान्ति−कुञ्ज की प्रचारिकाएँ पहुँच सकती हैं। यदि ऐसा न हो सके तो भी अपने क्षेत्र की विचारशील सुयोग्य महिलाओं से भाषणों और गायनों का प्रबन्ध करना चाहिए। सम्मेलन हर हालत में होने ही चाहिए।

यह महिला जागरण सम्मेलन पाँच दिन के होने चाहिए और उनका कार्यक्रम इस प्रकार रखा जाना चाहिए—

प्रथम दिन−प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व प्रभात फेरी। तीसरे प्रहर लाल मशाल के प्रतीक चित्र की सजधज एवं गाजे−बाजे के साथ शोभायात्रा।

दूसरे, तीसरे और चौथे दिन—सूर्योदय से पूर्व प्रभात फेरी। प्रातःकाल पाँच कुण्डी गायत्री यज्ञ, जिसमें कन्याएँ आहुतियाँ देंगी और महिलाएँ पूर्णाहुति समेत अन्य कार्यक्रमों में भाग लेंगी। सारा कार्य महिलाओं द्वारा ही सम्पादित हुआ करेगा। बच्चों के नामकरण अन्नप्राशन, मुण्डन, विद्यारम्भ संस्कार भी साथ−साथ होते रहेंगे। तीसरे प्रहर 2 से 5 तक महिला गोष्ठी मात्र महिलाओं के लिए। रात्रि 7 से 10 तक खुला महिला सम्मेलन जिसमें नर−नारी सभी भाग ले सकेंगे।

पाँचवे दिन यज्ञ की पूर्णाहुति के समय देव दक्षिणा में कम से कम अपनी एक आदत में सम्मिलित एक दुर्गुण का त्याग एवं एक सद्गुण अपनाने का संकल्प। प्रसाद स्वरूप महिला जागरण सम्बन्धी सस्ते प्रचार साहित्य का वितरण।

दोपहर बाद जत्था दूसरे कार्यक्रम में भाग लेने के लिए रवाना हो जाय करेगा।

सम्मेलनों की तैयारी बड़े रूप में भी हो सकती है और छोटे रूप में भी। खर्च की दृष्टि से उसे न्यूनतम राशि में भी सम्पन्न किया जा सकता है। जीप का तेल, टूट−फूट, ड्राइवर आदि का कुल खर्च 150) हमारे सम्मेलन के जिम्मे पड़ेगा। 150) में यज्ञ माइक, बिछावन, रेशमी आदि की व्यवस्था भी बन सकती है। पाँच उत्साही कार्यकर्ता अपना समय देने और इतना खर्च जुटाने को तैयार हो जायँ तो हर जगह छोटे रूप में ऐसे सम्मेलन हो सकते हैं।

जहाँ मोटर रोड नहीं है वहाँ जत्थे भेजना तो कठिन पड़ेगा। वहाँ तो प्रवचनों एवं गायनों के लिए समीपवर्ती प्रबन्ध ही करना पड़ेगा। पक्की सड़कों के समीपवर्ती क्षेत्रों में शान्ति−कुञ्ज के जत्थे जा सकते हैं। इसके लिए उत्साही परिजनों को अपने समीपवर्ती क्षेत्र में सम्मेलनों की सम्भावनाएँ तलाश करनी चाहिएँ और उन सबका संयुक्त निमन्त्रण हरिद्वार भेजना चाहिए। जहाँ सम्मेलन हों उनके बीच का यातायात मार्ग तथा दूरी दिखाने वाले नक्शे बनाकर भी भेजे जायँ ताकि जिधर होकर वहाँ पहुँचना है वह सुविधा देखते हुए सम्मेलनों की तारीखें दी जा सकें। 15 नवम्बर तक ऐसे सभी निमंत्रण आ जाने चाहिएँ, उन पर विचार करके 30 नवम्बर को तारीखों के निश्चय की सूचना देदी जायगी; ताकि आयोजनकर्ता अपनी−अपनी तैयारी में जुट सकें। इस अवधि में जिनके सम्मेलन निमन्त्रण नहीं आवेंगे उनके लिए पीछे स्थान न दिया जा सकेगा। कार्यक्रमों की शृंखला निर्धारित हो जाने पर बीच में और ठूँसने से तो पूरे वर्ष के कार्यक्रमों में ही उलट−पुलट करनी पड़ेगी। जहाँ उत्साह हो वहाँ जल्दी ही इस सम्बन्ध में अपने निश्चय कर लेने चाहिएँ।

सन् 76 में प्रौढ़ पाठशालाएँ और सम्मेलनों का कार्यक्रम तो महिला शाखाओं को पूरा करना ही है। साथ ही उन रचनात्मक एवं सुधारात्मक प्रवृत्तियों को भी गतिशील बनाना है; जिनके ऊपर नारी उत्कर्ष की नींव रखी जानी है और उन्हें समूचे मनुष्य की पूर्ण भूमिका निभा सकने में समर्थ बनाया जाता है। आज तो नारी मानवी अधिकारों से वंचित, पीड़ित, प्रतिबंधित और अपने पालकों की कठपुतली मात्र बनकर रह रही है।

(2) जन−संपर्क—

मनुष्य जीवन के उत्थान−पतन का सार तत्व उसके चिन्तन एवं दृष्टिकोण पर अवलम्बित है। भौतिक और आत्मिक क्षेत्रों में इसी आधार पर प्रगति होती है और इसी कारण अवनति। संसार की सबसे बड़ी सेवा यही है कि आदमी में चिन्तन और क्रिया क्षेत्र में उच्चस्तरीय आदर्शवादिता का समावेश किया जाय। हमारा कार्य क्षेत्र यही है। धर्म और अध्यात्म की परिधि यही है। इस मर्मस्थल में उत्कृष्टता का समावेश हो सके तो शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक, आर्थिक, सामाजिक, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्रों में संव्याप्त अनेकानेक उलझनों और कठिनाइयों का सहज समाधान मिल सकता है। अपनी गतिविधियों का निर्माण इसी मान्यता पर आधारित है।

अभीष्ट प्रयोजन की पूर्ति के लिए अखण्ड−ज्योति परिवार के परिजनों में पत्रिकाओं, पुस्तकों, शिविरों सत्रों, सम्मेलनों, चिट्ठियों तथा परामर्शों से यही प्रेरणा भरते रहे हैं कि उन्हें पेट और प्रजनन तक वासना और तृष्णा तक सीमित न रहकर अपने को अधिकाधिक सद्भाव सम्पन्न बनाया जाय—अपनी गतिविधियों में लोक−मंगल की सत्प्रवृत्तियों के लिए भी कुछ स्थान रखा गया। गुण, कर्म, स्वभाव में श्रेष्ठता का क्रमिक विकास करना यही अध्यात्म का तत्वदर्शन और लोकहित में संलग्नता को पुण्य, परमार्थ, तप आदि की धर्म धारणा और तप−साधना समझा जाना चाहिए। यही अपनी सदा से शिक्षा रही है। लोक−मंगल के अनेकानेक प्रयोजनों में भावनात्मक परिष्कार को−ज्ञान यज्ञ को—आदर्शवादी दृष्टिकोण को जन−जन के अन्तःकरण में प्रतिष्ठापित करना हम सर्वोपरि और सर्वप्रथम मानते रहे हैं और परिजनों से अनुरोध करते रहे हैं कि वे अपनी सेवा भावना को इस क्षेत्र में अधिकाधिक प्रयुक्त करते रहें।

अगले वर्ष हमें अपने प्रयत्न और भी तीव्र करने हैं। अभीष्ट प्रयोजनों के लिए जन−संपर्क बढ़ाना है। घर−घर अलख जगाने की प्रक्रिया को कई उपायों से तीव्र करना है जिसमें से तीन प्रमुख हैं—

(1) एक घण्टा समय और दस पैसा नित्य ज्ञान यज्ञ के लिए नियमित रूप से निकालते रहने के व्रत का पूरी श्रद्धा और तत्परता के साथ पालन किया जाय। इकट्ठे किये गये पैसों का ज्ञान−यज्ञ साहित्य खरीदते रहा जाय और उसे अपने संपर्क क्षेत्र में पढ़ाने के लिए देने वापिस लेने में—सुनाने में—एक घण्टा समय लगाना चाहिए। हममें से प्रत्येक के पास मिशन का नया तथा पुराना ढेरों साहित्य है। उसे एक वर्ष कम से कम दस नये व्यक्ति यों से संपर्क बढ़ाकर नियमित रूप से पढ़ाने का संकल्प करना चाहिए और उसे बिना आलस्य किये बराबर निबाहना चाहिए। ‘एक से दस’ हमारा व्रत होना चाहिए। इस प्रकार हम आज के एक लाख व्यक्ति एक वर्ष में दस लाख—दस लाख के दस गुने एक करोड़—एक करोड़ के दस गुने दस करोड़—तीन चार वर्ष में ही हो सकते हैं। यह शृंखला हमें चलानी ही चाहिए और आत्म−निर्माण, परिवार निर्माण तथा समाज निर्माण में संलग्न प्रखर व्यक्तित्वों का सृजन पूरे उत्साह के साथ जारी रखना चाहिए।

जिन लोगों के साथ प्रचार साहित्य के माध्यम से संपर्क जुड़े उनके वैयक्तिक और सामाजिक स्तर को ध्यान पूर्वक समझने का प्रयत्न करना चाहिए और उन्हें ऐसा परामर्श, प्रकाश, मार्ग−दर्शन एवं सहयोग देना चाहिए जिससे वे भी अपनी ही तरह आदर्श युक्त गतिविधियाँ अपना सकें। इसमें समुचित सफलता मिल सके इसके लिए आवश्यक है कि हम लोग ऐसी रीति−नीति अपनायें जो दूसरों के लिए अनुकरणीय बन सके।

(2) कथा आयोजन

सीधे उपदेश देने की अपेक्षा धर्म−पुराणों की कथा कहकर हम अपने देश की देहातों में रहने वाली एवं अल्प−शिक्षित जनता को अधिक अच्छी तरह प्रगतिशील विचारधारा को समझने और स्वीकार करने के लिए अधिक अच्छी तरह तैयार कर सकते हैं। अपने देशवासियों को धर्म प्रिय मनोभूमि की प्रगतिशीलता की दिशा में अग्रसर करने के लिए धर्म कथाओं का माध्यम जितना उपयोगी हो सकता है उतना अन्य कोई नहीं। हमें प्रगतिशील कथा आयोजनों की व्यवस्था करनी चाहिए ताकि जगह−जगह आसानी से लोक−शिक्षण पूरा कर सकें।

शान्ति−कुञ्ज में गत एक साल से वानप्रस्थों के रामायण शिक्षा सत्र चल रहे हैं। जिनमें तुलसीकृत एवं बाल्मीकि, रामायण के माध्यम से व्यक्ति , परिवार एवं समाज की वर्तमान समस्याओं का प्रगतिशील समाधान प्रस्तुत करने की अतीव दूरदर्शितापूर्ण शैली सिखाई जाती है। अगले सत्रों में रामचरित्र की भाँति ही कृष्णचरित्र को भी माध्यम बनाया जा रहा है और भागवत, महाभारत तथा गीता के आधार पर कथाएँ कहने तथा प्रवचन करने की शिक्षा भी जोड़ दी गई है। गायत्री यज्ञों तथा संस्कारों पर्वों के कर्मकाण्ड आयोजनों का सहारा लेकर किस प्रकार नवयुग के अनुरूप जन−मानस ढाला जा सकता है; यह भी इन वानप्रस्थ सत्रों की शिक्षा का एक अंग है। जो यहाँ से शिक्षा प्राप्त करके जाते हैं वे धर्म मंच से लोकशिक्षण की प्रक्रिया पूरी कर सकने में भली प्रकार सफल सिद्ध होते हैं। अब ऐसे प्रशिक्षित वानप्रस्थों की संख्या इतनी हो गई है कि उन्हें देश के हर क्षेत्र में कथा चर्चा की माँग पूरी करने के लिए भेजा जा सकता है।

यह शिविर अभी भी चलते रहते हैं। दो−दो महीने का अब इनका शिक्षण कर दिया गया है। रामायण और गीता, भागवत की तीनों धाराएँ उसमें जोड़ दी गई हैं। जिन्हें समाज−सेवा में उत्साह और अवकाश है वे इन सत्रों में सम्मिलित होने का प्रयत्न करें। अपनी निज की ज्ञान वृद्धि तथा लोक−मंगल के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य कर सकने की क्षमता इतने स्वल्प समय में हो सके ऐसा अनुपम प्रयोग अब तक अन्यत्र कहीं भी नहीं हुआ है।

कथा सप्ताह आयोजनों की व्यवस्था जगह−जगह की जानी चाहिए। जो लोग शिक्षण प्राप्त करके गये हैं वे अपने−अपने यहाँ—अपने−अपने समीपवर्ती क्षेत्र में एक सप्ताह के क्रमबद्ध आयोजन करने के लिए स्वयं प्रयास करें। जहाँ के लोग ऐसे आयोजनों के लिए उत्सुक हों वे युग−निर्माण योजना मथुरा से कथावाचक बुलाने के लिए पत्र व्यवहार कर लें।

साधारणतया यह कथा आयोजन एक सप्ताह के होंगे। प्रातःकाल प्रभात फेरी, सवेरे दो घण्टे कथा, तीसरे प्रहर जन−संपर्क, रात्रि में प्रवचन यह दैनिक कार्यक्रम चलेगा। अन्त के दो−तीन दिन पाँच कुण्डी गायत्री यज्ञ किया जाय और अन्तिम दिन कथा के अतिरिक्त यज्ञ की भी पूर्णाहुति हो। अपने यज्ञों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उसमें सम्मिलित होने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपने दोष, दुर्गुणों में से एक छोड़ना और एक सद्गुण व्रत संकल्प के रूप में आरम्भ करना पड़ता है। खाद्य−पदार्थों का एक दाना भी हवन नहीं होता मात्र वनस्पतियाँ ही होती जाती हैं। धृत का खर्च भी न्यूनतम प्रतीक मात्र ही रखा गया है जिससे परम्परा का निर्वाह तो हो जाय, पर आज की खाद्य समस्या पर तनिक भी भार न बढ़े। इन आयोजनों को बड़े रूप में करना हो तो खर्च अधिक भी पड़ सकता है। अन्यथा कथा व्यास का मार्ग व्यय और स्थानीय यज्ञ, माइक, पंडाल आदि का कुल खर्च मिलाकर ढाई−तीन सौ तक में काम चल सकता है। सप्ताह भर तक जहाँ यह कथा प्रसंग चलेंगे वहाँ जन−जागृति का अभिनव वातावरण उत्पन्न होना निश्चित है। उस वातावरण में ऐसी रचनात्मक और सुधारात्मक प्रवृत्तियों का अभिवर्धन हो सकती है जिनसे मनुष्य में देवत्व के उदय और धरती पर स्वर्ग के अवतरण का स्वप्न साकार करने में समुचित सहायता मिल सके।

(3) प्रचार फेरी धर्म यात्रा

कथा सम्मेलनों से एक स्थान पर जनता को इकट्ठा करने और स्थानीय लोगों को प्रकाश देने भर की बात बनती है। पर इतने भर से जन−संपर्क का प्रयोजन पूरा नहीं हो सकता। इसके लिए घर−घर जाना और जन−जन से संपर्क बनाना आवश्यक है। इसके लिए परिव्राजक बनकर हमें घर−घर, गली−गली, गाँव−गाँव अलख जगाने की योजना बनाकर चलना चाहिए।

अपने नगर में सवेरे प्रभात फेरी लगाने का आयोजन सप्ताह में एक दिन—किसी पर्व विशेष पर तीन दिन—यज्ञ सम्मेलन आदि बड़े आयोजन के समय एक सप्ताह के लिए इन फेरियों की व्यवस्था बनाई जा सकती है। इससे प्रातःकाल के सौम्य वातावरण में सोते, जागते हर किसी के कान में नव−जीवन का सन्देश पहुँचेगा और इस पुण्य वेला में भावभरे मधुर गीतों का जो बीजारोपण होगा वह देर तक अन्तःकरणों को स्पंदित करता रहेगा। प्रभात फेरियों का यह क्रम जहाँ भी जब भी बन पड़े तभी उसके लिए व्यवस्था बना लेनी चाहिए।

किसी ऊँचे स्थान पर लाउडस्पीकर बाँधकर प्रातःकाल आधा घण्टा भावभरे गीत भी सुनाये जा सकते हैं। इसके लिए शान्ति−कुञ्ज की लड़कियों के दस गायनों के टेप बहुत ही उपयुक्त हैं, टेप रिकार्डर और लाउडस्पीकर के समन्वय से यह प्रसारण सुविधा पूर्वक हो सकता है। इसी प्रयोजन के लिए अपने ग्रामोफोन रिकार्ड भी उपयोगी हैं।

प्रचार फेरी की योजना यह है कि पीत वस्त्रधारी कार्यकर्त्ताओं का एक जत्था सवेरे घर से जलपान करके निकले, आवश्यकता हो तो मध्याह्न का भोजन साथ में ले ले और शाम तक घर लौटे। इसमें कम से कम पाँच और अधिक से अधिक दस व्यक्ति रहें। सभी के कंधे पर पीले झोले और सभी के हाथ में लाल मशाल के झण्डे रहने चाहिए। पैदल या साइकिलों से जैसी भी यात्रा सरल पड़े वैसा किया जा सकता है।

प्रचार फेरी की टोली सवेरे घर से चले। जाने और लौटने का रास्ता पहले से ही निर्धारित कर लिया जाय। जिन गाँवों का कार्यक्रम हो, उनमें प्रेरक गीत गाते हुए एकबार पूरे गाँव की फेरी लगाई जाय। स्टेन्सिल से दीवारों पर आदर्श वाक्य पोते जायं। मिशन का परिचय देने वाले पर्चे बाँटे जायं। बिगुल बजाकर लोगों की इकट्ठा किया जाय और पन्द्रह−बीस मिनट के संक्षिप्त भाषण में भावनात्मक नव−निर्माण की रूपरेखा समझाई जाय। बस यही कार्यक्रम हर गाँव का रहे। इस प्रकार औसतन छोटे−बड़े पाँच गाँवों में प्रतिदिन प्रचार हो सकता है। यदि यह सात दिन का कार्यक्रम बना है तो 35 गाँवों में जन−जागृति का अलख जगाया जा सकता है। इस संपर्क में जो लोग रुचि लेते दिखाई पड़े उन्हें घर बुलाने अथवा उनके घर जाने का सिलसिला आरम्भ किया जा सकता है। धर्म फेरी इससे बड़ी है। उसमें हर दिन रात को घर वापिस नहीं लौटा जाता वरन् एक गाँव में ठहरना पड़ता है और वहाँ कीर्तन, भजन एवं प्रवचन के माध्यम से स्थानीय जनता को उदीयमान नवयुग के स्वागत में क्या करना चाहिए इसका भावभरा परिचय देना चाहिए। दूसरे दिन फिर अगले चार−पाँच गाँवों में प्रचार करते हुए दूसरे पड़ाव पर जा ठहरना चाहिए। यह यात्राएँ सात दिन की या अधिक दिनों की हो सकती है। दिवाली, दशहरा की अथवा गर्मियों की छुट्टियों में छात्रों तथा दूसरे लोगों को इस कार्य के लिए आसानी से साथ लिया जा सकता है। जहाँ गायत्री यज्ञ तथा कथा, सप्ताह चल रहे हों वहाँ भी यह फेरियाँ साथ साथ चल सकती हैं।

हम लोग अपने छोटे से परिवार को निरन्तर बढ़ाते चलें इसके लिए जन−संपर्क का विस्तार नितान्त आवश्यक है। नये क्षेत्रों में प्रवेश—नये व्यक्ति यों से परिचय इसी आधार पर सम्भव होगा। अगले वर्ष प्रभात फेरियों, प्रचार फेरियों तथा संपर्क यात्रा फेरियों की व्यवस्था जहाँ जिस प्रकार बन सके अवश्य ही बनानी चाहिए। इसके लिए झोले, झण्डे एवं स्टेन्सिल, बैज आदि मथुरा या हरिद्वार से प्राप्त किये जा सकते हैं।

स्लाइड प्रोजेक्टरों से मुहल्ले−मुहल्ले के प्रदर्शन, आयोजन हर दिन किये जा सकते हैं। दिन भर काम करने के बाद रात को दो घण्टे का समय कोई भी भावनाशील व्यक्ति दे सकता है और अपने नगर में घर−घर लोकरंजन एवं लोकशिक्षण के इस सस्ते किन्तु प्रभावशाली माध्यम से नव−जागरण का प्रकाश पहुँचा सकता है।

जन−संपर्क के लिए, एक से दस—कथा आयोजन तथा प्रचार फेरियों के त्रिविधि कार्यक्रम बहुत ही प्रभावशाली सिद्ध हो सकते हैं। अखण्ड−ज्योति के पाठकों को महिला जागरण एवं जन−मानस का नव−निर्माण करने के लिए इन संपर्क कार्यक्रमों को कार्यान्वित करने के लिए उत्साहपूर्वक प्रयत्न करना चाहिए।


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