मानवी व्यक्ति त्व एवं चुम्बक

October 1975

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बात तो कुछ अटपटी−सी लगती है कि मनुष्य की चेतन भावनाओं का चुम्बक जैसे अचेतन या जड़ पदार्थ से क्या सम्बन्ध? पर यह बात शत प्रतिशत सत्य है। चुम्बक का कार्य है आकर्षण। वह अपनी कला द्वारा अन्य लोहे के पदार्थों को आकर्षित करता है। उनको अपना जैसा बनाने का यत्न करता है। एक और विशेषता चुम्बक की है। यह यदि टुकड़ों−टुकड़ों में भी विभक्त कर दिया जाय तो हर टुकड़े की वही विशेषता बनी रहेगी। एक टुकड़े को एक धागे में बाँधकर यदि अधर में लटकाया जाय तो इसके दोनों सिरे क्रमशः उत्तर दक्षिण की तरफ ही रहेंगे। चाहे जैसी परिस्थिति आ जाय अपनी दिशा नहीं बदलेंगे। स्थिरता का सहज गुण चुम्बक में है। इसीलिए जलयानों या वायुयानों में ‘कंपास’ के सहारे ही दिशा ज्ञान का बोध होता है।

ऊपर बताये गये सारे के सारे लक्षण मनुष्य में भी पाये जाते हैं। यदि मन की प्रवृत्तियाँ सही ढंग से कार्य कर रही हों तो एक महान व्यक्ति बना जा सकता है। ठीक चुम्बक की तरह ही सारी विशेषतायें विकसित की जा सकती हैं। महान व्यक्तित्वों में कितना आकर्षण होता है कि वे जिस स्थान पर खड़े हो जाते हैं लोग अपने आप उनके चारों ओर एकत्रित हो जाते हैं। उनके क्रिया−कलाप, उनके आचरण−व्यवहार तथा उनके सद्गुण सहज ही साधारण कोटि के व्यक्तियों का मन मोह लेते हैं। एक लोकप्रिय नेता इसका सबसे सफल उदाहरण है। वह जहाँ—भी जाता है लोग उसका अनुगमन करते हैं।

चुम्बक की दूसरी विशेषता एकरसता की है। वह चाहे कितना विखंडित क्यों न हो जाय उसकी आकर्षण शक्ति कम नहीं होती। महान पुरुष ऐसे ही होते हैं। वे बाह्य रूप से चाहे जितने छोटे हो जायँ, परन्तु उनकी महानता में कोई अन्तर नहीं आता है। उनका व्यक्तित्व खंडित नहीं होता है। वे अनेकों लोगों से एक साथ सम्बन्ध रखते हैं, परन्तु उनके व्यक्तित्व में अपने−पराये का, पक्ष−पात को कोई अन्तर नहीं आता। एक सूर्य अनेक घड़ों के जल में एक रूप ही दिखाई देता है।

चुम्बक की तीसरी विशेषता है दिशा के प्रति स्थिरता। इसके द्वारा सदैव ही उत्तर एवं दक्षिण दिशा का ज्ञान होता रहेगा आप चाहे जहाँ चले जायं—आकाश में या समुद्र में कम्पास आपको दिशा ज्ञान अवश्य ही करायेगा। वही स्थिति विकसित व्यक्ति की भी होती है। यदि सद्प्रवृत्तियाँ जगा ली गयी है, भावना एवं व्यक्तित्व का परिष्कार कर लिया गया है तथा उद्देश्य को गम्भीरता से ग्रहण करने की शक्ति पैदा कर ली गई है तो यह निश्चित है, मनुष्य अपनी दिशा से कभी हिल नहीं सकता। वह दूसरों का भी मार्ग प्रशस्त करता है। दूसरों को सही प्रेरणा प्रदान करने का काम भी तो चुम्बक के गुण की तरह ही है। कहते हैं—अब्राहमलिंकन अपने समय के इतने पक्के थे कि जब वे सवेरे टहलने जाते थे तो लोग उन्हें देखकर ही घड़ियाँ मिला लेते थे। जिस समय उन्हें जिस स्थान से होकर गुजरना होता था ठीक उसी समय उस स्थान से वे गुजरते थे।

कहते हैं कि चुम्बक की ही तरह एक और पत्थर होता है जिसे पारस कहते हैं। यह लोहे से स्पर्श हो जाय तो लोहा सोना बन सकता है। चुम्बक के पास इतना मूल्यवान गुण तो नहीं है परन्तु वह अपने संपर्क में आने वाले हर लोहे के टुकड़े को अपना जैसा बना लेता है। इसी तरह महामानवों के संपर्क में आने वाला साधारण मनुष्य उसी की जैसी विशेषताओं को ग्रहण कर लेता है। धनी व्यक्ति पारस की तरह अपने धन−दान से याचक का दुःख तो दूर कर सकता है, परन्तु उसे अपना जैसा नहीं बना सकता है। ऐसा चुम्बकीय विकसित व्यक्तित्व ही कर सकता है।

बड़ी से बड़ी विशेषताओं एवं महान गुणों से युक्त मनुष्य भी पतित क्रियाओं एवं पतित विचारणाओं के अपनाने से गर्त में गिर जाता है और अपनी समस्त विशेषताएँ धीरे−धीरे खो देता है। ठीक इसी तरह जैसे चुम्बक को बार−बार पटकने तथा ऊपर−नीचे करने से उसकी आकर्षण शक्ति लुप्त हो जाती है, महान पुरुषों की भी पुण्य की पूँजी एवं प्रभाव उनके पतन के गर्त में गिरने से नष्ट हो जाते हैं।

अपनी इस पृथ्वी के चतुर्दिक् एक चुम्बक क्षेत्र व्याप्त है, उसी के सहारे वह समस्त ब्रह्माण्ड में फैली हुई तमाम आवश्यक विशेषताओं को इकट्ठी करती रहती है, यदि इस स्रोत से उसे यह अनुदान न प्राप्त होता तो उसका अक्षय भण्डार एक दिन अवश्य समाप्त हो जाता और साधन सम्पन्न कही जाने वाली धरती विपन्न एवं दीन−हीन की स्थिति में पहुँच जाती। परन्तु ऐसा इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि पृथ्वी के अन्दर फेट्स आक्साइड, मैगनेटाइड का विशाल भण्डार भरा पड़ा है। उसकी अन्तर्निहित सम्पत्ति की गन्ध उड़−उड़कर बाहर चतुर्दिक् में व्याप्त होती रहती है और अपनी आकर्षण शक्ति को यथावत बनाये रखती हैं।

यह बहुत ही आवश्यक है कि अन्दर की सम्पदा फूटकर बाहर निकले। यदि ऐसा न हो तो कभी भी अस्वास्थ्य का खतरा उत्पन्न हो सकता है। पेट में खराबी हो जाती है तो बदबू बनकर ही तो बाहर निकल पाती है। यदि कर्कश व्यक्ति हो तो वह वैसे ही बुरे एवं कर्ण कटु शब्द बोलेगा। इसके विपरीत मधुर भाषी व्यक्ति अपनी वाणी से ही अपनी सहज स्नेह ममता एवं सद्भावना युक्तता का परिचय दे देता है।

धरती की चुम्बकीय शक्ति की तरह मनुष्य में भी एक सहज आकर्षण शक्ति विद्यमान है उसका प्रयोग करके समर्थता एवं साधन सम्पन्नता प्राप्त की जा सकती है। मनुष्य यदि अपने चुम्बकत्व का प्रयोग करे तो उसे भी वैसे ही पुराण वर्णित चमत्कार प्रस्तुत करने का अधिकार मिल सकता है। यदि तप, साधना के द्वारा आत्मबल को बढ़ा लिया जाय तो हम आज से हजारों वर्ष पहले घटित घटनाओं को भी यथार्थ रूप में आकाश मण्डल में सुन या देख सकते हैं। विज्ञान से तो अब यह सिद्ध ही हो चुका है कि जो भी ध्वनियाँ निसृत होती हैं वे कभी भी नष्ट नहीं होतीं।

मनुष्य की अतीन्द्रिय क्षमता में वह चुम्बकत्व विद्यमान है जिसके द्वारा वह असम्भाव्य कार्यों को भी कर सकता है। आँखों से न देख पाने वाले स्थानों की वर्तमान में घटित होने वाली घटनाओं का सचित्र वर्णन कर सकता है। एक स्थान से दूसरे स्थान को परस्पर संवाद आदान−प्रदान कर सकता है। इसके अतिरिक्त यदि हमने तप, साधना द्वारा प्रेरक क्षमता अर्जित कर ली है तो किसी दूसरे को प्रेरित कर लाभ पहुँचाया जा सकता है।

हम यदि प्रयत्न करें तो जिस तरह हम धन एकत्रित करते हैं, सम्पदा एकत्रित करते हैं और बल एकत्रित करते हैं उसी तरह से मानवी चुम्बकत्व—तेजोवलय को इतना प्रचण्ड बना सकते हैं कि उसके प्रभाव से अपना और दूसरों का आशाजनक हित साधन किया जा सकता है। किन्तु साथ ही यह भी स्पष्ट है कि यह व्यक्तित्व दोष युक्त , विकृत, निकृष्ट स्तर का होगा तो उससे अपनी तथा दूसरों की हानि भी उसी अनुपात से होती रहेगी।


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