हम हीलियम जितने हलके बनें

March 1973

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हलकापन यों उपेक्षणीय माना जाता है और भारीपन को हर दृष्टि से महत्त्व दिया जाता है, पर सर्वत्र ऐसी बात नहीं है। पतंगें और गुब्बारे आसमान में अपने हल्केपन के कारण ही उड़ते हैं। लकड़ी की नाव इसीलिए तैरती है कि उसके कण जल के कणों की तुलना में हलके होते हैं। चिकनाई भी पानी पर इसीलिए तैरती है कि वह अपेक्षाकृत हलकी होती है। भारी शरीरों की तुलना में हलके बदन वाले व्यक्ति ने केवल अधिक निरोग रहते हैं वरन् अधिक दीर्घजीवी भी होते हैं।

हवा में आक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बन, हाइड्रोजन आदि के विभिन्न अनुपात मिले होते हैं। इस सबसे हलकी होती है हीलियम गैस। यह हलकापन उसकी ऐसी विशेषता है जिनके कारण उसकी उपयोगिता और गरिमा अनेक गुना बढ़ जाती है।

हीलियम गैस पृथ्वी के वायुमण्डल में बहुत कम है। नाइट्रोजन के दस लाख अणुओं के पीछे कहीं एक का अनुपात उसका रहता है। पहले उसे सूर्य में विद्यमान् माना जाता था पर पीछे पता चला कि उसका एक स्वल्प अंश पृथ्वी के वायुमण्डल में भी मौजूद है। इसके कण न आपस में मिलते हैं। और न दूसरों के साथ संयोग करते हैं।

सूर्य के वातावरण में हीलियम की मात्रा 6 प्रतिशत है। अन्य तारों में भी उसका मात्रा लगभग इतनी ही पाई जाती है। सूर्य में 60 प्रतिशत हाइड्रोजन है जो निरन्तर भयंकर विस्फोट के साथ नष्ट होने के उपरान्त क्रमशः हीलियम में बदलती चली जा रही है। हीलियम के एक अणु में हाइड्रोजन के दो अणुओं से भी ज्यादा शक्ति होती है। संसार में हीलियम बहुत ही अधिक हलकी गैस है। साधारण हवा के एक कण के वजन पर हीलियम के सात कण तुल जायेंगे सबसे बड़ी खूबी उसकी यह है कि वह किसी भी तरह जलाई नहीं जा सकती। पर वह चमकती जरूर है। शून्य से 266 डिग्री सेन्टीग्रेड पर हीलियम द्रव हो जाती है। तापमान दो डिग्री और भी घट जाय तो वह ठोस होकर जम जाती है। यह ठण्डक पूर्ण शून्य से कुछ ही कम है।

जिनने अपने ऊपर परिवार की जनसंख्या का-चिन्ताओं और जिम्मेदारियों का भार जितना अधिक बढ़ा लिया होगा उनका जीवन संकट उतना ही भारी हो जाएगा और कठिनाई से आगे घसीटा जा सकेगा। कम वजन वाली हलकी सवारियाँ तेजी से दौड़ती है और उन्हें खींचने वाले वाहन बिना थके उत्साह पूर्वक अपना कर्तव्य निबाहते रहते हैं। मनुष्य यदि हलका-फुलका जीवन जिये-थोड़ी जिम्मेदारियाँ कन्धे पर रखे और बिना उद्विग्न हुए शान्त एवं स्थिर चित्त से काम करता रहे तो उसके काम भी अधिक होंगे और चित्त में हलकापन भी रहेगा।

संग्रहशील भारीपन डूबता है। वह अपने को भी नहीं उबार सकता तो दूसरों को क्या तारेगा। हलकापन तैर सकता है और दूसरों को तार-सकता है। सन्त और सज्जन अपरिग्रही रीति-नीति अपनाते हैं। और बोझिल तथा खर्चीली जिन्दगी नहीं जीते। यह हलकापन ही उनकी विशेषता है जिसके आधार पर परमार्थ परायण जीवन जीते हुए अपने कन्धों पर बिठाकर अनेकों को भव सागर से पार करते हैं।

गोताखोरी में अब हीलियम का उपयोग बढ़ने से गहरी डुबकी लगाने वालों का जीवन सुरक्षित हो चला है। कुछ समय पूर्व जब इस गैस का पता नहीं था तब समुद्री गोताखोर नाइट्रोजन के दबाव से बीमार हो जाते थे और कई बार मरते-मरते बचते थे। पर अब जब से आक्सीजन के साथ-साथ उन्हें हीलियम भी मिलने लगी है, उन्हें पहले जैसी कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता। हम यदि हीलियम गैस की तरह हलके हो सकें तो सूर्य को प्राण और पृथ्वी को जीवन दे सकने में समर्थ हो सकते हैं।


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