पेड़ के सहारे बेल भी ऊपर चढ़ती है

March 1973

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वर्षा ऋतु आने पर बादल बरसते हे तो सूखे हुए नदी, नाले उफन पड़ते हैं। तालाब, पोखर भर जाते हैं और सर्वत्र जल ही जल भरा हुआ समुद्र जैसी हिलोरें ले रहा होता है।

उस प्रवाह में कूड़ा-करकट भी बहाने और तैरने लगता है। बड़े और भारी वृक्ष उस पानी के बहाव में कहीं से कहीं बहते हुए चले जाते हैं। कई बार तो उन लकड़ी के लट्ठों और बहते हुए पेड़ों पर बैठकर मनुष्य और पशु पक्षी पार हो जाते हैं। पर यह दृश्य और लाभ रहता तभी तक है जब तक कि वर्षा ऋतु रहती है और बादलों की अजस्र जल धार बरसती है।

कभी-कभी ऐसा सुअवसर आता है कि भगवान की इच्छा से कोई देवदूत महामानव धरती पर अवतरित होते हैं और वे सूखे संसार में हरियाली उत्पन्न करने के लिये अजस्र रूप में अमृत जैसी जलधारा बरसाते हैं। उस समय मरे हुए कीट पतंगों तक के बीज भी हरे हो जाते हैं और सब और जीवन लहलहाने लगता है। इस अवसर का लाभ उठाकर कितने ही सद्भाव सम्पन्न सहज ही भव सागर से पार हो जाते हैं। और अपने शुष्क जीवन को हरा-भरा बना लेते हैं।

भगवान् राम आये, रीछ, बानर तक तर गये। शबरी, अहिल्या, केवट, विभीषण ने लाभ लिया। भगवान् कृष्ण के समय गोप-गोपियों को सहज ही वह लाभ मिल गया जो दूसरों को कठिनाई से ही मिलता है। बुद्ध ने सामान्य मनुष्यों को ऋषि और अम्बपाली, अंगुलिमाल जैसों को महामानव बना दिया। गाँधी के समय कितने साधारण व्यक्ति ऐतिहासिक महापुरुष बन गये।

यह अमृत वर्षा कभी-कभी होती है। विवेकवान् व्यक्ति उस अवसर को पहचानने में और उसका लाभ लेने में चूकते नहीं। साधारण समय में सामान्य प्रयत्नों से जो पाया जाना किसी प्रकार सम्भव न होता वह ऐसे ही अवसरों पर मिल जाता है। चतुर किसानों वर्षा का लाभ लेते हैं, पर जो उस अवसर का महत्त्व नहीं जानते वे समय निकल जाने पर पछताते ही रह जाते हैं।

राम का सहारा लेकर हनुमान् ऊँचे उठे। कृष्ण का पल्ला पकड़ कर अर्जुन अमर हुए। बुद्ध के साथ आनन्द और अशोक की चर्चा होती रहेंगी। गाँधी के साथ विनोबा और जवाहरलाल जुड़े रहेंगे। रामकृष्ण परमहंस के साथ विवेकानन्द, समर्थ रामदास के साथ शिवाजी उसी तरह ऊँचे चढ़े जैसे पेड़ पर छाई हुई बेल भी आकाश को छूने लगती है।

स्वाति नक्षत्र की वर्षा का लाभ लेकर सीप में मोती, बाँस में बंसलोचन, केले में कपूर उत्पन्न होने की बात सूनी जाती है। पपीहा की चिर अतृप्ति उसी अवसर पर तृप्त होती है। जो चूक जाते हैं उन्हें एक वर्ष तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है। समय व्यक्ति के लिए नहीं लौटता-व्यक्ति को समय की प्रतीक्षा करनी पड़ती है और जब तक वह आये तब तक सतर्कता और तत्परता बरतनी पड़ती है।

देवदूतों का अवतरण विश्व की समस्याओं को हल करने के लिये होता है। वे दुष्कृतों के विनाश और धर्म संस्थापन के लिए आते हैं पर ईश्वरीय प्रयोजन के साथ-साथ जागृत आत्माओं का कल्याण भी करते हैं।

जहाज में बैठाकर सैकड़ों हजारों को पार जाने का अवसर मिलता है पर एक बहती टहनी पर बैठकर कौआ भी पार नहीं हो सकता। स्वल्प सामर्थ्य वाले अपना तक कल्याण नहीं कर सकते दूसरों को क्या पार करेंगे। सकुशल और स्वल्प प्रयास में पार जाने वाले मजबूत नाव और सकुशल मल्लाह का सहारा लेते हैं और तैरना न जानते हुए भी, उफनती नदी को पार कर लेते हैं।

महामानवों का आश्रय जहाज का आश्रय लेकर पार जाने की तरह है। बुद्धिमान वे है जो ऐसे अवसर का ध्यान रखते हैं और यदि मिल जाय तो उसे चूकते नहीं।


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