जीवन को प्यार करो वह तुम्हें प्यार करेगा

March 1973

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शक्ति के स्रोत मनुष्य के भीतर छिपे पड़े है, पर कोई विरले ही हैं जो उन्हें समझते, अनुभव करते और काम में लातें है। यही है असफलताओं का कारण जिसे अक्सर लोग दूसरों पर थोपना चाहते हैं। आत्म प्रवंचना के रूप में दूसरों को भला बुरा कह कर कोई कुछ जी हलका कर सकता है पर उससे कुछ काम नहीं चलता। अवरोधों की मंजिल पार करते हुए प्रगति की दिशा में चलना और सफलता वरण करना उसी के लिए सम्भव है जो अपने को समझने सुधारने और समर्थ बनाने के लिए कटिबद्ध होता है।

इस संदर्भ में किसी भी विचारशील से पूछा जाय, वह एक ही उत्तर देगा कि प्रगति कोई दैवी वरदान नहीं है जो सहज ही किसी के गले में आकर लिपट जाती है, उसके लिए कठोर पुरुषार्थ और अटूट धैर्य एवं साहस का परिचय देना पड़ता है। जो इससे घबराते, कतराते हैं उन्हें निराशा भरी खोज से भीतर घुलते रहने और बाहर क्षोभ व्यक्त करते रहकर अपना और दूसरों का जी भारी करते रहने के अतिरिक्त और कुछ हाथ नहीं लगता।

आत्म कल्याण का मार्ग पूछने पर कोई तत्त्वज्ञानी सिर्फ एक ही परामर्श दे सकता है- “धर्म पर श्रद्धा रखो, नीति को आचरण में उतारो, अपना उद्धार आप करो। हँसी और मुस्कुराहट बिखेरो जो कार्य करना पड़े उसमें दूसरों की भलाई के तत्त्व जुड़े रखो। अपनी रीति-नीति ऐसी बनाओ जिस पर स्वयं को सन्तोष मिले और दूसरों को प्रेरणा।

सचमुच यही आत्म कल्याण का मार्ग है। इसी पर चलते हुए लोगों ने स्वर्ग और मुक्ति के द्वार में प्रवेश किया है और महामानवों की भूमिका निबाही है। सभी धर्म और सभी सन्त इसी का शिक्षण देते रहते हैं। इस सद्ज्ञान के उपदेश का लाभ केवल वे उठा सकते हैं जो कुछ कर गुजरने की हिम्मत रखते हैं। जिनने धर्म को कथन श्रवण भर तक सीमित रखा, सस्ते पूजा उपचारों से बड़ी-बड़ी आशाएँ बाँधी उन्हें निराश रहना पड़ा। मंत्र, देवता अथवा सिद्ध पुरुष सहायता तो करते हैं पर वह सहयोग सबके लिए सुलभ नहीं। वहाँ भी पात्रता की शर्त जुड़ी रहती है। अपने पैरों पर खड़े होने के लिए प्रबल पुरुषार्थ अवि-चार , धैर्य और अगाध श्रद्धा ही पात्रता की परीक्षा कसौटी मानी जाती रही है।

इन सब बातों पर विचार करने से निष्कर्ष एक ही निकलता है कि आत्म कल्याण और आत्म शान्ति के लिए हमें अपने ऊपर ही निर्भर रहना होगा जो करना चाहिए उसके लिए कटिबद्ध होना पड़ेगा। वे बाहर कहीं से भी सहज अनुदान में नहीं मिल सकते यदि कोई वरदान मिलते भी है तो उनके लिए भी पात्रता उत्पन्न करने की अनिवार्य शर्त तभी पूरी हो सकेगी जब आत्म निर्भरता के लिए अग्रगामी बना जाय। इसके अभाव में आत्मोद्धार की कल्पना जल्पना की विडम्बना में ही उलझे रहना पड़ेगा सफल लोग सदा से एक ही बात कहते रहें है। प्रगति के आधार अपने भीतर खोजो और उन्हें कार्यान्वित करो।

व्यवसाय क्षेत्र में सफल किसी व्यक्ति से पूछा जाय कि उन्नति का मार्ग क्या है? तो वह यही कहेगा-अपने उत्साह को जगाओ और धैर्य पूर्वक सतत् श्रम में जुट जाओ। समृद्धियों का वरदान केवल उनके लिए सुरक्षित रखा गया है जिन्हें सम्पूर्ण मनोयोग और पुरुषार्थ के साथ काम करने का अभ्यास है। परिस्थितियाँ अपनी चाल से चलती हैं और बाधक भी बनती है, किन्तु यह समझ ही लिया जाना चाहिए कि कोई भी बाधा मनुष्य की संकल्प शक्ति का मुकाबला नहीं कर सकती। सफलता के उच्च शिखर पर पहुँच हुए लोगों में से अधिकांश ऐसे हैं जिन्हें आरम्भ में घोर निराशाजनक स्थिति का सामना करना पड़ा। उन दिनों की धीमी प्रगति को देखकर किसी भी हलके व्यक्तित्व का धैर्य टूट सकता था और वह अन्य असफल लोगों की तरह एक के बाद दूसरा रास्ता बदलते रहने की राह पर भटकता रह सकता था किन्तु अपने साहस और मनोबल को सुदृढ़ बनाये रहकर मनस्वी लोग अनवरत प्रयत्न करते हैं और अन्ततः सफल ही होकर रहते हैं।

तत्व दर्शियों का प्रत्येक विकासोन्मुख व्यक्ति को एक ही परामर्श रहा है- ‘अपनी परछाई से आगे देखो। जिस स्थिति में आज पड़े हो उससे बढ़कर उपलब्धियां पाने के सपने देखो।’ प्रस्तुत मनोभूमि और योग्यता से सन्तुष्ट न रहो। प्रगति की समस्त संभावनायें चिन्तन और व्यक्तित्व का स्तर ऊंचा उठाने के साथ अविच्छिन्न रूप से जुड़ी हुई हैं।

हम अपने आपको देखें, समझें, अपनी कमियों को तलाश करें और उन्हें सुधारने में लग जायें। यह विश्वास किया ही जाना चाहिए कि हर प्रगतिशील मनुष्य में पाई जाने वाली विशेषतायें अपने अन्दर बीज रूप में मौजूद हैं। यदि उन्हें सींचा संजोया जाये तो कोई कारण नहीं कि नगण्य दीखने वाला व्यक्तित्व और निराशाजनक वातावरण, उठता उभरता दिखाई न पड़े।

दूसरों की शिकायतें करने से कुछ लाभ नहीं। किसी का सद्भाव और सहयोग तभी मिलता है जब उसके सत्परिणाम का भरोसा हो। दीन दुखियों की क्वचित् सहायता ही उदारमना लोग करते हैं जबकि वे अपने व्यावसायिक साझीदार को जरूरत पड़ने पर अपनी बड़ी धन राशि निस्संकोच प्रस्तुत कर देते हैं। देखना चाहिए कि क्या हमने अपने को इतना प्रामाणिक और विश्वस्त बना लिया है जिससे यह आशा की जा सके कि सहयोग देने पर उसका सत्परिणाम ही निकलेगा। दूसरों की सहायताओं की आशा करने के लिए अपनी दीनता का अथवा कठिनाइयों का प्रदर्शन पर्याप्त नहीं वरन् यह सिद्ध किया जाना चाहिए कि प्रगति के प्रचण्ड अभियान में हमें किसी की क्वचित् सहायता भर अभीष्ट है। सफलता तो इसके बिना भी मिल सकती है। जो यह सिद्ध कर सकता है उसी के लिए प्रचुर सहयोग के लिए दुनिया सहायता का द्वार खोलती है।

किसी समय के हेय और पिछड़ी स्थिति में पड़े हुए व्यक्तियों में से भी कितने ही ऐसे होते हैं जो अपने बलबूते पर प्रगति के उच्च स्तर तक जा पहुंचते हैं। मनस्वी लोगों की मान्यता होती है कि- ‘जो ललकारेगा उसे मिलेगा।’ ईसा कहते थे ‘जो खटखटायेगा उसके लिए खोला जायेगा।’ निस्सन्देह चुनौतियां स्वीकार करने वाले दुस्साहसी लोग ही जीवन मंथन में से कुछ मूल्यवान रत्न प्राप्त करते हैं। गहरे पानी में डुबकी लगाये बिना मोती कहां हाथ आते हैं?

गई गुजरी स्थिति में पड़े हुए लोग जब ऊंची सफलताओं के सपने देखते हैं तो स्थिति और लक्ष्य के बीच भारी अन्तर प्रतीत होता है और लगता है कि इतनी चौड़ी खाई पाटी न जा सकेगी। किन्तु अनुभव से यह देखा गया है कि कठिनाई उतनी बड़ी थी नहीं जितनी कि समझी गई थी। धीमी किन्तु अनवरत चाल से चलने वाली चींटी भी पहाड़ों के पार चली जाती है फिर धैर्य, साहस, लगन, मनोयोग और विश्वास के साथ कठोर पुरुषार्थ में संलग्न व्यक्ति को प्रगति की मंजिलें पार करने चलने से कौन रोक सकेगा?

ज्ञानियों का कथन है- अपने जीवन को प्यार करो- वह तुम्हें प्यार करेगा। अपने को सुन्दर बनाओ और सुविकसित होने का प्रयत्न करो। फिर देखो कि सुरम्य अनुकूलतायें और सघन सफलतायें किस तरह तुम्हारा स्वागत करने के लिए आतुर हो रही हैं।


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