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November 1968

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समष्टि से प्रेम किये बिना हम व्यष्टि से कैसे प्रेम कर सकते हैं? सारे विश्व का यदि एक अखंड रूप से चिन्तन किया जाय, तो वही ईश्वर है, और उसे पृथक-पृथक रूप से देखने पर वही यह दृश्यमान संसार है- व्यष्टि है। विराट् ब्रह्म, अखंड चिन्तन वह इकाई है। जिसमें लाखों छोटी-छोटी इकाइयों का योग है। उसी के ध्यान से ही सारे विश्व को प्रेम करना सम्भव है।


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