दैवी-शक्ति द्वारा गुप्त रहस्यों का उद्घाटन

November 1968

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मनुष्य का स्वभाव है कि जिस बान को वह प्रत्यक्ष ज्ञान द्वारा नहीं जान सकता, उसके लिये वह किसी ऐसे व्यक्ति की सहायता माँगता है, जिसे गुप्त या अप्रकट बातों को जानने की शक्ति प्राप्त हो। कुछ लोगों को यह शक्ति स्वभावतः ही प्राप्त होती है और कुछ अभ्यास और साधन द्वारा भी इसमें निपुणता पा सकते हैं।

ऐसी गुप्त-ज्ञान की प्रक्रियाओं में एक विधि ‘डिवाइविंग’ कहलाती है, जिसका योरोपीय देशों में कहीं-कहीं प्रचार पाया जाता है। यह एक ऐसी विधि है, जिसमें किसी विशेष साधन या अभ्यास की आवश्यकता नहीं होती, अवसर पड़ने पर कोई भी शुद्ध विचारों का और पवित्रता से रहने वाला व्यक्ति इसको प्रयोग में ला सकता है। जो लोग इस विधि में दक्षता प्राप्त कर लेते हैं, वे जमीन के भीतर पानी के सोते, तेल के सोते, धातुओं की खानें आदि का पता निश्चित रूप से बता देते हैं और इससे बहुत अधिक परिश्रम और धन की बचत होती है।

मिश्र के रेगिस्तान में पानी-

यह प्रसिद्ध है कि अँग्रेजी सेना के प्रसिद्ध सेनापति और बाद में इंग्लैंड के युद्ध मन्त्री लार्ड किचनर इस विद्या के विशेष ज्ञाता थे। जब वे मिश्र में स्थित अँग्रेजी सेना में लेफ्टीनेन्ट के पद पर काम करते थे तो सरकार ने ‘कोरोस्को’ के रेगिस्तान में 250 मील लम्बी रेल बनाने की आज्ञा दी। पर उस रेगिस्तान में पानी का सर्वथा अभाव होने से इस कार्य में बड़ी कठिनाई पड़ने लगी और ऐसा जान पड़ा कि रेल नहीं बन पायेगी। जब यह समाचार लार्ड किचनर को मिला तो वे स्वयं उस प्रदेश में पहुँचे और इसी विधि का प्रयोग करके दो जगह कुएँ खोदने का आदेश दिया। उन कुओं से बहुत साफ और मीठा पानी निकला जिससे रेलवे लाइन शीघ्र ही बनकर तैयार हो गई। इसी मार्ग से अंग्रेजी फौजें शीघ्रता से मिश्र भेजी जा सकीं, जहाँ उन्होंने विद्रोहियों को दबा कर सरकारी प्रभाव फिर से जमाया।

इस घटना के फल से उस प्रदेश के प्राचीन निवासी लार्ड किचनर को ‘जादूगर’ मानने लगे। इसके बाद और भी कितने ही लोगों ने उसी रेलवे लाइन के पास कुआँ खोदने का प्रयत्न किया, पर किसी को सफलता न मिल सकी।

श्री लायड जार्ज का कृषि फार्म-

प्रथम महायुद्ध के अवसर पर इंग्लैंड के प्रधान-मन्त्री श्री लायड जार्ज थे। महायुद्ध के कुछ वर्ष पश्चात उन्होंने एक बड़ी जमीन खेती और फलों का बगीचा लगाने के लिये खरीदी थी। उसका तमाम इन्तजाम बहुत ठीक था, पर पानी की अक्सर कमी हो जाती थी। इससे यह आशंका पैदा हो गई कि अगर किसी वर्ष बरसात कम हुई तो ‘फार्म’ को अवश्य हानि उठानी पड़ेगी।

इस कमी को पूरा करने के लिये श्री लायड जार्ज ने कई युक्तियाँ सोचीं, पर कोई कारगर न जान पड़ी। अन्त में एक दिन वे अपने एक पड़ोसी किसान के पास पहुँचे। उन्होंने देखा था कि उनके आस-पास के सब खेत जब सूखे से रहते हैं, तब भी किसान की जमीन सदा हरी-भरी और तरोताजा बनी रहती है। उन्होंने उसके पास जाकर पूछा कि उसको पानी कहाँ से मिलता है। किसान ने कहा कि मेरी स्त्री दैवी विधि से ‘डिवाइनिंग’ से पानी का पता लगाना जानती है। उसके बतलाने से जो कुआँ खोदा गया उससे काफी पानी निकलता है।

श्री लायड जार्ज ने तुरन्त ही उस महिला को अपने यहाँ बुलाया और जब उसने पानी के स्त्रोत का ठीक पता बता दिया तो वहीं पर कुआँ खुदवाया गया, जिससे हर रोज 3 लाख गैलन पानी निकलने लगा। तब से फार्म की उपज काफी बढ़ गई और वह सदा हरा-भरा रहने लगा।

वास्तव में दैवी-विधि से जमीन के भीतर पानी के स्रोत का पता लगाना बड़ी उपयोगी और प्राचीन विद्या है। पुराने समय में पानी के लिये संसार भर में कुआँ खोदने के सिवा और कोई उपाय था ही नहीं। नल तो अभी थोड़े ही समय से लगने लगे हैं। ऐसी दशा में अनेक व्यक्ति इस विद्या का अभ्यास करते थे। फिर विशेष आत्म-शक्ति वाले तो जहाँ बतलाते थे, वहाँ पानी अवश्य निकलता था। ‘बाइबिल’ में लिखा है कि एक पहाड़ी स्थान में जब मूसा के अनुयायी प्यासे मरने लगे तो उसने एक चट्टान को तुड़वाया, जिसके नीचे से मीठे पानी का स्त्रोत निकला और सबने अपनी प्यास बुझाई। इस तरह की घटनायें हमारे देश में भी नानक, तुकाराम और अनेक अत्य सच्चे सन्तों के सम्बन्ध में सुनने में आती हैं। वे सब कार्य उनकी दैवी-शक्ति से ही पूरे हो सके थे।

डिवाइनिंग द्वारा रोग-निदान-

स्विट्जरलैंड का एक दैवज्ञ इसी तरह की एक पेड़ की डाली द्वारा, जिसे ‘डिवाइनिंग राड’ कहते हैं, रोगों का भी पता लगा सकता है। इंग्लैंड की ‘रॉयल इंजीनियरिंग सेना’ के कप्तान ए. जे. एडेनी उसके पास गाये थे। उसने दैवी-विधि द्वारा उनको बतला दिया कि उनके दाहिने कूल्हे में गठिया की बीमारी है। इसी विधि से उसने एक अन्य व्यक्ति के पेट का कैंसर बता दिया था, यद्यपि डाक्टर बहुत प्रयत्न करने और ‘एक्सरे’ से जाँच करने पर भी उसका निर्णय न कर सके थे।

युद्ध में दैवज्ञों का महत्व-

युद्ध-काल में प्रायः ऐसे अनेक समस्यायें उठ खड़ी होती हैं, जिनको वैज्ञानिक तरीकों के बजाय ऐसी दैवी-विधि से ही शीघ्र हल किया जा सकता है। गत युद्ध के समय तो कुछ लोगों ने यह प्रस्ताव किया था कि प्रत्येक सेना के साथ एकाध दैवज्ञ भी रहना चाहिये। अब भी कभी-कभी ऐसा किया जाता है, पर वह निजी तौर पर ही होता है। उन्हीं दिनों अँग्रेजी सेना सेल्सबरी के मैदान में नकली युद्ध का अभ्यास करने के लिये एकत्रित हुई थी। जहाँ इस सेना का कैम्प लगाया गया था, वहां आस-पास में पानी निकालने की इंजीनियरों ने बहुत चेष्टा की, पर उनको बार-बार असफल होना पड़ा।

इससे अधिकारियों को बड़ी चिन्ता हुई, क्योंकि यदि वहाँ से कैम्प को हटाकर अन्यत्र लगाया जाता तो लाखों रुपये की बर्बादी होती। इसलिये लाचार होकर एक दैवज्ञ महिला मिस पेनरोज को बुलाया गया। यह पहिले ब्रिटिश कोलम्बिया में दैवी-विधि से पानी ढूँढ़ने का कार्य करती थी। उसने आते ही पानी के स्त्रोत का पता लगा लिया और सेना की सारी कठिनाई दूर हो गई।

दैवज्ञों का कहना है कि वे पानी की तरह जमीन के भीतर की अन्य वस्तुओं, जैसे धातु आदि का भी पता लगा सकते हैं। ऐसी हालत में वे अपनी लड़ने वाली सेना, जल और वायु के जहाजों को यह बतला सकते हैं कि शत्रु का गोला-बारूद का भण्डार कहाँ छिपा है अथवा गोताखोर नाव समुद्र के भीतर कहाँ छिपी है।

सामयिक पत्रों में छपा था कि जर्मनी का हिटलर दैवी-विधि विद्याओं पर बहुत विश्वास रखता था और बिना दैवज्ञों की सम्मति के युद्ध का कोई नया कार्य नहीं करता था। उसी समय इंग्लैंड में एक दैव-विद्या का ज्ञाता आ गया था, जिसका नाम लुई डी व्होल था। वह दरअसल हँगरी का रहने वाला था और पहिले उसने कुछ समय तक जर्मनी में रहकर हिटलर के प्रधान सलाहकार विलियम क्राफ्ट के साथ काम भी किया था। वह क्राफ्ट के आध्यात्मिक सिद्धान्तों और गणना-प्रणाली को अच्छी तरह जानता था और इसलिये इस बात का शीघ्र पता, लगा लेता था कि युद्ध में हिटलर द्वारा कौन-सा नया कदम उठाया जाने वाला है।

एक दिन किसी दावत में उसकी भेंट ब्रिटेन के विदेश-मन्त्री लार्ड हैलिफैक्स (भारत के भूतपूर्व गवर्नर जनरल) से हो गई। बातचीत में उसने हिटलर की अत्यन्त गुप्त महत्त्वपूर्ण बातें लार्ड हैलिफैक्स को बतलाई, जो उनको मनोरंजक जान पड़ी और उन्होंने हँसते हुये डी. व्होल से कह दिया कि “अगर तुम्हारी भविष्यवाणी सत्य निकली तो मैं तुम्हें एक खास काम सौपूँगा।”

डी. व्होल की भविष्यवाणी ठीक साबित हुई और लार्ड हैलिफैक्स ने उसे सेना में सम्मिलित करके कप्तान का पद दिया और वह दैवी-विधि द्वारा हिटलर की चालों के बारे में पता लगाने लगा। उसकी भविष्यवाणियाँ अधिकाँश में ठीक साबित हुई और उनसे सेना अधिकारियों ने काफी लाभ भी उठाया।

योरोप, अमेरिका में छोटे-बड़े सभी कार्य संगठन और सहयोगपूर्वक होते हैं और इसी से उनकी उचित प्रगति भी होती रहती है। इंग्लैंड के दैवज्ञों ने भी बहुत वर्ष पूर्व अपनी एक संस्था स्थापित करली थी, जिसके संचालक कर्नल ए. एच. बैल थे। इसकी तरफ से कई पुस्तकें भी इस सम्बन्ध में प्रकाशित की गई थीं। फ्राँस में भी इस विद्या के कई अच्छे जानकर पाये जाते हैं।

‘डिवाइनिंग’ की विधि का विवेचन करने से हम इसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि वह एक शुद्ध आध्यात्मिक विद्या है। उसमें किसी प्रकार के वैज्ञानिक यन्त्र अथवा रासायनिक द्रव्य आदि का कोई प्रयोजन नहीं होता। केवल उसके करने वाले व्यक्ति की आत्म-शक्ति और समग्र विश्व मैं व्याप्त चैतन्य सत्ता (ईश्वरीय शक्ति) पर उसका दृढ़ विश्वास हो सकता है और उसी के आधार पर उसे सत्य-संकेत प्राप्त हो सकता है।

अध्यात्मवादियों के अनुसार आत्मा की शक्ति अनंत है और यदि वह सत्य का ध्यान रखकर किसी विषय पर विचार करेगा, तो चैतन्य-सत्ता उसका सत्य मार्ग-दर्शन ही करेगी। इसी सिद्धान्त के आधार पर तरह-तरह की प्रश्नावलियाँ तैयार की गई हैं, जिनमें सामान्य व्यक्ति भी अपनी समस्याओं का हल ढूंढ़ा करते हैं। पर जब लोग इसे पेशा बना लेते हैं और लालच में पड़कर धूर्तता से काम लेने पर उतारू हो जाते हैं, तो यही विद्या अन्ध-विश्वास और अविश्वास की जननी बन जाती है। इसलिये दैवी-विद्याओं में सत्यनिष्ठा रखना ही हमारा परम कर्तव्य है।


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